बेतरतीब मैं (२९. ०७. १६ )
(१ )
प्यासे शहर ने बारिश की दुआ मांगी और इस बार आसमान का दिल पिघला नहीं बल्कि फट पड़ा, झूले पड़ी आम की डालें टूट गई, बूंदों में भीगने वाले नन्हे नन्हे कोंपल हवा और पानी के थपेड़े झेल झेल के बेहोश हो गए
इस सावन ने ज़मीन को तृप्त नहीं किया बस रौंद दिया
(२)
जब चली ठंडी हवा जब उठी काली घटा मुझको ए जाने वफ़ा तुम याद आये .......
आज आसमान जब बादलों की सियाही लपेट कर काला हुआ तो दिल तेरा साथ पाने को मचल उठा हमारी ज़िन्दगी से शाम वैसे ही लापता है तो भरी दोपहर हुई शाम को बस जी लेने का जी हो उठा, उस ज़माने में तो सात समंदर पार कर दो प्रेमी मिल लेते थे आज इन शीशे की इमारतों को पार करना दुश्वार है
(३ )
सुनो ! बारिश तुम्हें क्या याद दिलाती हैं
मुझे हरियाली ,गर्म भुट्टे ,चाय और मस्ती तुम्हे?
मुझे जलभराव ,गड्ढे जाम ,गन्दगी और मक्खियां
उसके बाद एक अपनी बारिश की रूमानियत में गम हो गया
और दूसरा शाम को घर समय से पहुँचने की फ़िक्र में
(४)
जा बरसो मेह खेतों में
जहाँ बीज का निखरे रूप
जा बरसों मेह उन गाँवों में
जहाँ सूखे पड़े ताल कूप
जा बरसो मेह मरुथल में
जहाँ धरा तपाती नित धूप
#हिंदीब्लॉगिंग
(१ )
प्यासे शहर ने बारिश की दुआ मांगी और इस बार आसमान का दिल पिघला नहीं बल्कि फट पड़ा, झूले पड़ी आम की डालें टूट गई, बूंदों में भीगने वाले नन्हे नन्हे कोंपल हवा और पानी के थपेड़े झेल झेल के बेहोश हो गए
इस सावन ने ज़मीन को तृप्त नहीं किया बस रौंद दिया
(२)
जब चली ठंडी हवा जब उठी काली घटा मुझको ए जाने वफ़ा तुम याद आये .......
आज आसमान जब बादलों की सियाही लपेट कर काला हुआ तो दिल तेरा साथ पाने को मचल उठा हमारी ज़िन्दगी से शाम वैसे ही लापता है तो भरी दोपहर हुई शाम को बस जी लेने का जी हो उठा, उस ज़माने में तो सात समंदर पार कर दो प्रेमी मिल लेते थे आज इन शीशे की इमारतों को पार करना दुश्वार है
(३ )
सुनो ! बारिश तुम्हें क्या याद दिलाती हैं
मुझे हरियाली ,गर्म भुट्टे ,चाय और मस्ती तुम्हे?
मुझे जलभराव ,गड्ढे जाम ,गन्दगी और मक्खियां
उसके बाद एक अपनी बारिश की रूमानियत में गम हो गया
और दूसरा शाम को घर समय से पहुँचने की फ़िक्र में
(४)
जा बरसो मेह खेतों में
जहाँ बीज का निखरे रूप
जा बरसों मेह उन गाँवों में
जहाँ सूखे पड़े ताल कूप
जा बरसो मेह मरुथल में
जहाँ धरा तपाती नित धूप
आ बरसों मेह मेरे आँगन
सजा लूँ में अपना रूप#हिंदीब्लॉगिंग