मैं क्या सोचती हूँ ..दुनिया को कैसे देखती हूँ ..जब कुछ दिल को खुश करता है या ठेस पहुंचाता है बस लिख डालती हूँ ..मेरा ब्लॉग मेरी डायरी है ..जहाँ मैं अपने दिल की बात खुलकर रख पाती हूँ
Wednesday, August 5, 2015
Thursday, June 18, 2015
बेतरतीब मैं 18-जून २०१५
बेतरतीब मैं 18-जून २०१५
(१)
(२)
वक़्त बदलते देर नहीं लगती वैसे ही इंसान को बदलते ,कठिन समय में सामने वाले का व्यवहार भी कठिन हो जाता है ,जैसे -जैसे आप अपने बल पर परेशानियों से पार पाकर ऊपर उठते हो ,वही चेहरे जो एक समय मुहं छिपाते थे ,मुस्कुराते हुए नज़र आते हैं, एक बन्दर की तकलीफ पर पूरा झुण्ड एक साथ आ सकता है पर इंसान ने अपने पूर्वज से ये नहीं सीखा
(३)
सफल वर्तमान के साथ अतीत की गलियों में लौट -लौटकर जाना एक नशा सा होता है , कितनी बार सोचो नहीं जाना उतनी बार सम्मोहित से लौट लौट कर जाते हैं,उन पलों को जब आप गिरे थे,अपमानित हुए थे, आंसू पिए थे ,सब जश्न में थे और आप अकेले , आज आप जश्न में हैं तो किसी को अकेले में मत रहने देना
(४)
हाँथ में महंगा फोन ,कंधे पर महंगा पर्स आँखों पर चश्मा ,उसने वो सब बटोर लिया था जो उसको रईस और खुश दिखा सकते थे,आँखों में काजल की लकीरे गहरी करते हुए अपनी उदासी को काला करना चाहती थी काश काजल आँखों के भीतर भी लगा सकते।
Friday, June 5, 2015
ये मैं तो नहीं हूँ
१।
सामने से आती एक शक्ल बेहद पहचानी सी लगी ,वही है क्या ? अरे हाँ वही तो है
आठ साल पहले सादा से प्रिंटेड सूट में देखा चेहरा आज किसी महंगे ब्रांड के वन पीस ड्रेस में कुछ अज़नबी सा लगा ,आँखों में पहचान का भाव उभरा और पानी के बुलबुले सा फुट गया और रह गया नीरव स्थिर अज़नबीपन।
या तो उसने पहचाना नहीं या … जाने दो
वो पहचाना अज़नबी साया पास से गुज़र चुका था अपने साथ खुशबू की लकीर छोड़ते हुए, इसको परफ्यूम की जरूरत कब से पड़ने लगी, छत की मुंडेर पर चाहे अनचाहे करीब आते हुए कितनी बार एक मादक सुगंध को जिया था कुछ रजनीगंधा जैसी शायद।
उसके हाँथ आज भी थामने पर पसीजते होंगे क्या सोचते ही होंठों पर मुस्कान तैर गई
पिछले आठ सालों में ज़िन्दगी की दौड़ दौड़ते हुए कभी एहसास ही नहीं हुआ जिनके साथ जीने मरने की कसमें खाई थी आज उनका ख्याल भी नहीं आता
२।
होटल के कमरें में सिगरेट फूंकते हुए निगाह दरवाजे की तरफ लगी है ,भागती ज़िन्दगी में जब कुछ जरूरते जागती हैं तो खाने से बिस्तर तक होम डिलीवरी के ऑप्शन मिल जाते हैं ऐसी ही ऑप्शन पिछले कुछ सालों कमरे में आते जाते रहे है।
अब एक ज़रुरत के लिए ज़िन्दगी भर के बंधन तो नहीं पाल सकता ना
दरवाजा खुलते ही एक खुशबू का झोंका अपनी गर्माहट से भर देता है ,अचानक ये खुशबू खींचकर गली के मोड़ पर खड़ा कर देती है दिल की धड़कने तेज हो रही है , मेकअप की परतों में लिपटा अजनबी चेहरा अपना सा क्यों लग रहा है ,
क्या ये वो है ,काश वो ना हो , उसको अपने साथ चाहा था एक ज़माने में पर
आज इस कमरे में इस बिस्तर पर तो नहीं, उसके करीब आते ही एक ठंडी सांस राहत की भरता हूँ , वो नहीं है।
३।
उस दिन के बाद होटल के कमरें में जा नहीं पाया हूँ ,एक डर भीतर बैठ गया है , उस दिन अगर वो होती तो ,इस बार नहीं थी पर अगली बार हुई तब ,ऐसे कितने चेहरे कितने रिश्ते बनाता बिगाड़ता आया हूँ , कुछ तो बीता है भीतर ही भीतर जिसने आत्मा जैसा कुछ जगा दिया है।
भला -बुरा ,पाप पुण्य कानो में बज रहे है.
हरिद्वार में गंगा किनारे बैठे हुए पानी के शोर में कुछ चीखे कुछ रुदन जैसे सुनाई दे रहे हैं , मेरा अहम उसकी मिन्नतें , मेरी लापरवाही उसकी हताशा ,या कितने मज़बूर मुस्कुराते चेहरे।
पैर पानी में जाते ही दिमाग और दिल में द्वंद शुरू हो जाता है , मैं आज जो हूँ ऐसा तो नहीं था ,कब मैं बदलता गया।
बचपन की मासूमियत से कैशोर्य के अल्हडपन से युवावस्था के जोश तक, तब तक तो सब ठीक था , सपने थे दिल था धड़कन थी दर्द भी था
दिलों का सौदागर कब बना ,पहली बार दिल और भरोसा तोड़ा तो बुरा लगा फिर कम बुरा लगा फिर बुरा लगना बंद हो गया
ये आज अतीत का कौन सा दरवाजा खुल गया है जो दिल दिमाग को भारी किये जा रहा है
घाट पर बैठे पण्डे से माथे पर चन्दन लगवाता हूँ शायद दिमाग को ठंडक मिले
आइना देखता हूँ पर ये मैं तो नहीं हूँ
Wednesday, June 3, 2015
बेतरतीब मैं (३ जून )
बेतरतीब मैं (३ जून )
(१)
दुनिया कीचड है अपने आप को कमल मत समझो कीचड के दाग अगर दामन पर लगे तो खुद से घिन आते देर नहीं लगेगी।
आस पास सूअर घूमते है जिन्हे उसी कीचड में लोटकर आनंद की प्राप्ति होती है आपको दिखाते है ये कीचड तब तक गंदा लग रहा है जब तक बाहर से इसको देख रहे हो एक बार भीतर तो उतरो फिर दुर्गन्ध सुगंध में बदलेगी।
अभी तो ना जाने का ऑप्शन खुला है एक बार उतरे तो बाहर आने का कोई रास्ता नहीं मिलेगा।
कुछ सुख ना मिलें तो बेहतर।
(२)
मोह है इस शहर से इस गली से ,गली के मोड़ पर पान के खोके से रास्ते में पड़ने वाले जामुन के पेड़ से ,साल भर मिलने वाली छाया से , कितनी बार कदम उठाये के वापस लौटा जाए वहीँ ठिकाना बनाया जाए, एक प्याज ,एक चुटकी नमक ,चार रोटी और सत्तू दो वक़्त ये तो जुड़ ही जाएगा।
शायद सुकून की नींद भी मिल जाए जो एक मुट्ठी गोलियां गटककर भी नसीब नहीं होती है ,आसमान के तारे भी नहीं दीखते यहाँ से।
पर कोल्हू के बैल की यात्रा अनवरत होती है एक ही दिशा में उसके थकने तक ,उसके थमने तक
(३)
जब पास समय होता है तो हम व्यस्तता तलाशते है जब व्यस्त होते है तो समय की कमी का रोना रोते है , किसी दिन शायद समझ जाए हमें चाहिए क्या , क्या ये खोज ये मानसिक स्थिति सिर्फ मेरी है या इस यात्रा में मेरे साथ बहुत से साये है।
(४)
पीठ पर एक ज़ख्म उभर आया है , धूप में जलता है ,ठंडी हवा में टीस मारता है कभी कभी इस तरह शांत हो जाता है मानो वो वहां है ही नहीं , कितने आंसू इस ज़ख्म के चलते जाया हुए है , नहीं याद कब मेरी पीठ पर सवार हुआ था रह रह कर अपने अस्तित्व को जताता रहता है।
बरहाल जब तक तुम थे ये नहीं था अब ये है और तुम लौटे नहीं_
(१)
दुनिया कीचड है अपने आप को कमल मत समझो कीचड के दाग अगर दामन पर लगे तो खुद से घिन आते देर नहीं लगेगी।
आस पास सूअर घूमते है जिन्हे उसी कीचड में लोटकर आनंद की प्राप्ति होती है आपको दिखाते है ये कीचड तब तक गंदा लग रहा है जब तक बाहर से इसको देख रहे हो एक बार भीतर तो उतरो फिर दुर्गन्ध सुगंध में बदलेगी।
अभी तो ना जाने का ऑप्शन खुला है एक बार उतरे तो बाहर आने का कोई रास्ता नहीं मिलेगा।
कुछ सुख ना मिलें तो बेहतर।
(२)
मोह है इस शहर से इस गली से ,गली के मोड़ पर पान के खोके से रास्ते में पड़ने वाले जामुन के पेड़ से ,साल भर मिलने वाली छाया से , कितनी बार कदम उठाये के वापस लौटा जाए वहीँ ठिकाना बनाया जाए, एक प्याज ,एक चुटकी नमक ,चार रोटी और सत्तू दो वक़्त ये तो जुड़ ही जाएगा।
शायद सुकून की नींद भी मिल जाए जो एक मुट्ठी गोलियां गटककर भी नसीब नहीं होती है ,आसमान के तारे भी नहीं दीखते यहाँ से।
पर कोल्हू के बैल की यात्रा अनवरत होती है एक ही दिशा में उसके थकने तक ,उसके थमने तक
(३)
जब पास समय होता है तो हम व्यस्तता तलाशते है जब व्यस्त होते है तो समय की कमी का रोना रोते है , किसी दिन शायद समझ जाए हमें चाहिए क्या , क्या ये खोज ये मानसिक स्थिति सिर्फ मेरी है या इस यात्रा में मेरे साथ बहुत से साये है।
(४)
पीठ पर एक ज़ख्म उभर आया है , धूप में जलता है ,ठंडी हवा में टीस मारता है कभी कभी इस तरह शांत हो जाता है मानो वो वहां है ही नहीं , कितने आंसू इस ज़ख्म के चलते जाया हुए है , नहीं याद कब मेरी पीठ पर सवार हुआ था रह रह कर अपने अस्तित्व को जताता रहता है।
बरहाल जब तक तुम थे ये नहीं था अब ये है और तुम लौटे नहीं_
Wednesday, May 20, 2015
दुश्मन मसीहा
किस्सों में ज़िक्र उसका भी होगा
बिछाए कांटे जिसने मेरी राहों में
वो ना होता तो ये सफर न होता
झूमते रहते बहारों की पनाहों में
दर्द लहू उसका भी शामिल था
एक आह थी मेरी हज़ार आहों में
ना जाने बना कैसे हमसफ़र वो
कोई नेकी थी ढेरभर गुनाहों में
बिछाए कांटे जिसने मेरी राहों में
वो ना होता तो ये सफर न होता
झूमते रहते बहारों की पनाहों में
दर्द लहू उसका भी शामिल था
एक आह थी मेरी हज़ार आहों में
ना जाने बना कैसे हमसफ़र वो
कोई नेकी थी ढेरभर गुनाहों में
Wednesday, May 13, 2015
फिर आसमा से टूटकर बरसा नशा
बेतरतीब मैं (१३ मई २०१५ )
फिर आसमा से टूटकर बरसा नशा
फिर हमपर मयकशी का इलज़ाम लगा
बारिशें किसी भी मौसम में आपको डिस्ट्रैक्ट कर सकती हैं ,कुछ जादू सा चलता है और आप मज़बूर हो जाते हो।
कागज़ की नाव चलाने वाली बारिशें , किसी नज़र की छुअन से सिहर जाने वाली बारिशें,किसी के जल्दी घर वापसी की दुआ मनाने वाली बारिशें
और भी कई मूड में बरस रही है ये बारिशें
आफिस के कांच के भीतर से बाहर सब धुंधला दिख रहा है अच्छा है ना.बाहर सड़क है ,ट्रैफिक है भीड़ है ,ये तो मेरी बारिशों का हिस्सा नहीं हो सकते
मेरी बारिशों में पहाड़ है उन पर झुके बादल है , मेरे हाँथ में छतरी के वाबजूद भीगती मैं
पहाड़ ना सही समंदर का किनारा ही हो जहां खारी लहरों के साथ मीठी बूँदें मुझे भिगो दे ,खैर आंसू भी तो खारे ही होंगे
मेरी मोहब्बत की कहानियों में बारिशें नहीं हैं बल्कि बारिश ही मेरी मोहब्बत है।
कई गहरी नीली शामें जब आसमान स्लेटी बादलों से खेल रहा था ,हवा में सीली सी गंध हाँथ में एक कप कॉफ़ी लिए आसमान को निहारते हुए मैंने गुडगाँव में चेरापूँजी को जिया है,
कल्पनाओ के पंख पर सवार मुक्त हो लेती हूँ मैं.
भर जाती हूँ भीतर तक तो खुलकर रो लेती हूँ मैं
Tuesday, May 12, 2015
गाँव सिसक रहे हैं
शहर सुलग रहे हैं
गाँव सिसक रहे हैं
सड़कों पे खून फैला
जंगल दहक रहे है
हर हाँथ लिए ख़ंजर
बदहवास फिर रहे है
वहशत हँस रही है
जो इंसान मर रहे हैं
किसके लिए जाने
महल ये सज रहे हैं
गली गली वीराना
शमशान खुल रहे है
ये कौन सा मौसम
आया है इस चमन में
पेड़ों पर फल नहीं हैं
इंसान लटक रहे है
गाँव सिसक रहे हैं
सड़कों पे खून फैला
जंगल दहक रहे है
हर हाँथ लिए ख़ंजर
बदहवास फिर रहे है
वहशत हँस रही है
जो इंसान मर रहे हैं
किसके लिए जाने
महल ये सज रहे हैं
गली गली वीराना
शमशान खुल रहे है
ये कौन सा मौसम
आया है इस चमन में
पेड़ों पर फल नहीं हैं
इंसान लटक रहे है
Saturday, March 28, 2015
खोई लड़की
बालों में तितली सजाती लड़की
बादल से बिजली चुराती लड़की
गुलाबी अरमान तालों में रखती
बादल से बिजली चुराती लड़की
गुलाबी अरमान तालों में रखती
खुद को दुनिया से छुपाती लड़की
सौ तालों में फड़फड़ाती लड़की
सच पर सबसे भिड़ जाती लड़की
जलाकर आई सारे नकाब परदे
सच पर सबसे भिड़ जाती लड़की
जलाकर आई सारे नकाब परदे
हर जीत पर मुस्कुराती लड़की
चाँद पर कदम बढाती लड़की
दुनिया खूबसूरत बनाती लड़की
भर देती घर तेरा मोहब्बत से
तूने क्यों कोख में मिटा दी लड़की
दुनिया खूबसूरत बनाती लड़की
भर देती घर तेरा मोहब्बत से
तूने क्यों कोख में मिटा दी लड़की
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