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Tuesday, December 17, 2013

मेरी चिट्ठियाँ




तुमको लिखी वो तुमने पढ़ी 

खयालो से कभी ना आगे बढ़ी 

अक्सर किताबों में दबकर रही 

मुझ जैसी तनहा मेरी चिट्ठियाँ ...

किसी पंक्ति पर खुलकर हंसी

किसी शब्द से झलकी बेबसी

खुलके ना कह पाई बात कभी

मर्यादा से बंधी मेरी चिट्ठियाँ ...

देने से पहले कई बार पढ़ी

हज़ार टुकडो में कई बार फटी

मैंने लिखी और मुझ तक रही

अंतर्मुखी सी मेरी चिट्ठियाँ ....

रात ख़्वाबों में उठकर चली

तकिये के नीचे दबकर रही

सोये रहे तुम पर जागी रही

करवटें बदलती मेरी चिट्ठियाँ ....




Thursday, December 5, 2013

बहुत काम है मुझको



बहुत काम है मुझको
लाल सूरज उगाना है
नया सा राग गाना है  
सितारे बाँध रख छोड़े
ओस बिंदु उठाना है
संवरने की कहाँ फुर्सत
अभी दिन भी सजाना है
जुगनू को सुलाना है
कलियों को जगाना है
भोर से रूठ छिप बैठी
उसे अब खींच लाना है
तुम्हारे जागने से पहले
दुनिया को सजाना है