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Wednesday, November 20, 2013

बावरी मैं (बीस नवम्बर )



बावरी मैं (बीस नवम्बर )
(बावरों का कोई ठिकाना नहीं,अपने रिस्क पर पढ़े )

जानेमन सुनो
गए तो हो हज़ार मील दूर पर जाने नहीं दिया मैंने तुम्हारे साथ तुमको, करवट की सलवट अभी भी वही है बचाकर रखूंगी अपनी बेचैन सलवट के साथ, ताकि तुम आओ तो मिलान कर सकूं, यूँ तो तुम्हारा बंजारापन जाहिर था मुझपर पर तुम्हारा तो तन बंजारा है ,और मैं मन से बंजारन कही यूँ  ना हो के तुम लौटो तो मैंने बसेरा बदल लिया हो ... अरे नाराज़ काहे होते हो ज़रा सुनो तो रूठने मनाने के लिए यहाँ आना पडेगा तुमको मेरे पास, मैंने मोबाइल बंद कर दिया है ,इन्टरनेट भी इस्तेमाल नहीं कर रही इंतज़ार कर रही हूँ , एक चिट्ठी का ज़रा कलम तो उठाओ , एक पोस्ट कार्ड ही डाल दो के मैं पढ़ सकूं मजमून और छू सकूं तुम्हारी खुशबू ,चेहरा तो आँखों के सामने है ही.
बदलता मौसम बिलकुल तुम जैसा हो चला है हरजाई कहीं का ... जब चादर लपेटूं तो पसीने में भीग जाती हूँ और ना लपेटूं तो तन अपना नहीं रहता ज्वर सा लगता है , जिस दिन मौसम का मिजाज समझ लूंगी उस दिन तुम्हे भी समझ पाऊं , कई बार लगता है हम यहाँ क्यों जन्मे ... जहां सब बदल जाता है , किसी ऐसे देस में होते के जहां सारा साल एक सा मौसम रहता और तुम भी एक से ... पर मेरे मन का मौसम तो बदलता रहता है ...
अब जल्दी आओ
तुम्हारी बावरी