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Monday, September 23, 2013

बेतरतीब मैं (तेईस सितम्बर )



बेतरतीब मैं (तेईस सितम्बर )

तुम सोचते हो ज़हर मुझे मार देगा  गलत हो मैं ज़हर गले से उतरने नहीं देती मैंने मासूम दिल को बचा रखा है, नीलकंठ हूँ ,मेरा पीला पड़ता चेहरा पतझड़ की आमद का अंदेसा देता है फ़िक्र मत करो मैं अगली बहार के लिए तैयार हूँ

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छिछिली नीयत वाले और ओछी सोच वाले ज्यादा है उनके चेहरे एक ख़ास तरह की मुस्कान से ढके है , ज्यादा मिठास से उनके वजूद में उभर आया लिजलिजापन,छिप नही पाता,वो शुभचिंतक ,सह्रदयता , निछ्चलता के मुखौटे लिए हमारे आस पास अपने आप को बेच रहे है, मेरे गले पर जमा ज़हर अपनी तेज़ी से मेरी आँखों को साफ़ रखता है और उनके मुखौटे पिघला देता है
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एक देह के भीतर कितने महायुद्ध जारी है , मारने वाले हम, मरने वाले हम,
किसी पल कोई हिस्सा देह की सीमा तोड़कर आज़ाद हो जाएगा तो क्या ये युद्ध का अंत होगा,शायद नहीं भीतर विजयी होने वाला, बाकि देह आत्माओ से भिड जाएगा ,युद्ध कभी समाप्त नहीं होते ....अनवरत चलते है
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मैंने तुमसे आज सुबह सीखी है जिद और सर उठाकर रहना,आघातों का सामना करना ,तूफानों में खड़े रहना ,पददलित होने पर उठ खड़े होना अपनी मिट्टी पकड़ कर रहना
घास मेरी वर्तमान गुरु

Saturday, September 21, 2013

लव हेट रिलेशन विद गुडगाँव (१)


कितना बंजारा जीवन जीते है ,अलग परवरिश अलग बोली कई बार अलग देस ..हर बार अलग सांचे में उतरना होता है ..पर ये भी इतना सहज कहाँ है ..गंगा किनारे फर्रुखाबाद में पली बढ़ी दुनिया बड़ी आसान थी  पैदल पूरे कसबे का चक्कर लगा लेते ..हर दूसरी दूकान पर कोई ना कोई पहचान वाला होता जो गर्माहट भरी मुस्कान से स्वागत करता ..आधा मोहल्ला चाचा ,मामा बुआ जैसे संबोधन  वाले प्यारे चेहरों से भरा मिलता जलेबी से ज्वेलरी बिना पैसे खरीद कर घर ला सकते थे ..

बड़े शहर के नाम पर दो तीन बार दिल्ली देखा और कुछ साल लखनऊ में बिताये पर लगा ज़िन्दगी ऐसे ही गुज़र जायेगी ..आत्मविश्वास से भरे ,अपनी मेधा के प्रमाणपत्र हाँथ में लिए जब गुडगाँव  में कदम रखा ..तो एक बार होश ही उड़ गए सब कुछ चमकीला लगा  वो शहर जो दिन और रात दोनों में भव्य लगता है ...रौनक ही रौनक . बड़े बड़े माल भीड़ से भरे , बड़ी बड़ी बातें और बड़ी बड़ी सैलरी आँखे विस्मय और अविश्वास से चौड़ी हो जाती ...छोटे से घर वो भी करोड़ों के


चमकीले चेहरे ,सब सजा संवरा, दुनिया की हर कम्पनी यहाँ जिनके नाम पता थे और जिनके नाम आज भी पता नहीं है ,आश्चर्य ये होता कैसे लोग होंगे जो इन शीशा जड़ी इमारतों में काम करते होंगे, इन माल में खरीदारी करते होंगे

अपने पास झोला भर डिगरिया थी पर दिन-ब-दिन आत्मविश्वास कम हो रहा था , कैसे शामिल होऊं मैं इस दुनिया में ,.कुछ बोलने से पहले सौ बार सोचना क्या पता कौन सा उच्चारण आपको देहाती का तमगा दिलवा दे ..पर सपने तो थे बोर्डरूम में बड़ी बड़ी मीटिंग्स का हिस्सा बनने  के , अपने घर की सबसे स्मार्ट लड़की आज  घबरा रही थी

एक दिन ऐसी ही चमचमाती शीशे जड़ी इमारत से इंटरव्यू का बुलावा आया हिम्मत बटोरी,शीशे के सामने खुद से सवाल जवाब किये,कई बार यकीन दिलाया ,हाँ मैं तैयार हूँ ,सवाल ही तो पूछेंगे मार तो नहीं डालेंगे ,ज्यादा से ज्यादा मना  कर देंगे , उन बड़ी इमारतों के भीतर कुछ आत्मीयता भरे चेहरे मिले, कुछ जवाब दिए कुछ नहीं दे पाई पर मैं भी उस इमारत का हिस्सा बन गई ...राहत की सांस ली पर ये राहत नहीं आफत की सांस ज्यादा थी। लोगों के साथ घुलना मिलना था काम जल्द से जल्द सीखना था

रोज़ नई  चुनौतियां एक महीने बाद काम मिला विदेशी पार्टनर  से बात करने का ..अभी तक हिन्दुस्तानियों की अंग्रेजी समझ में नहीं आ रही थी उस पर अंग्रेजों की अंग्रेजी हे ! भगवान् , फोन उठाया ,नंबर मिलाया , रिंग टोन के साथ धडकन तेज़ होने लगी ..दुआ तक मांग ली फोन ना उठे तो कह दूँगी , फोन नहीं उठ रहा ..पर फोन उठा सामने वाली कन्या ने इतने प्यार से जो कुछ भी पूछा ..वो मुझे अपनी धड़कन के शोर के सामने सुनाई नहीं दिया ना एक वाक्य बोल पाई ना समझ पाई ..हडबडाहट में फोन काट दिया ... बॉस को बोला लाइन में डिस्टर्बेंस है ..बाद में पता चला भारत से भारत में बात करना भले ही मुश्किल हो पर लन्दन की लाइन कभी खराब नहीं होती .शर्म आ रही थी,एक लड़ाई बिना लड़े हार जाने जैसा  पर दोबारा ऐसा ना हो इस लिए आँखे कान कुछ और खुले रखने शुरू किये ..जो असंभव लगता था आसान  होने लगा ..फोन पर काम के अलावा भी बातें करने लगी लगा जंग जीत ली ...पर पूरी तरह हिंदी माध्यम से पढ़ी इस छात्रा की एक लड़ाई और बाकी थी.

एक सुबह कहा गया तुमको कल कुछ विदेशी मेहमानों के सामने हमारी सेवाओ को प्रेजेंट करना है और जो सवाल पूछे उनके जवाब देने है ..एक और महाभारत ..जैसे तैसे काम सीखा अब आमने -सामने बात करना ..और वो भी इतना महत्वपूर्ण ..बॉस को कहाँ वो बोले तुम कर लोगी सारे देवी देवता मान लिये .. 11,21,51 कितने के प्रसाद बोले याद नहीं ... पर शुरुवाती हडबडाहट के बाद पता नहीं कहाँ से आत्मविश्वास आ गया ..एक प्यारी सी (जिसे सब मोहिनी सी कहते है ) मुस्कान के साथ पूरा प्रेजेंटेशन कर गई

 ...आज 7 साल हो गए ..कोरिया ,जापान, यूनाइटेड किंगडम ,इंडोनेशिया ...ना जाने कितने देशो में बात करती हूँ ..लोगों से आमने सामने मिलती हूँ, बिना तैयारी के भी कई बार मीटिंग्स का हिस्सा बनी हूँ , पर वो पहली कॉल और पहला प्रेजेंटेशन मुझे ये आत्मविश्वास दे गया है नामुमकिन कुछ भी नहीं आपकी आँखे अगर सपने देखती है तो आपके ही भीतर वो जज्बा है जो उन्हें सच कर सकता है , शायद मेरी जड़ों ने मुझे इतनी मजबूती दी के मैं हर मुश्किल को पार कर गई.

(ये सीरिज़ लम्बी चलेगी आखिर रिश्ता भी तो लंबा है)


Friday, September 20, 2013

बेतरतीब मैं (बीस सितम्बर)



बेतरतीब मैं
२०.०९.२०१३

आज बरसों बाद हाँथ में कलम उठाई तो लगा लिखना फिर सीखना पडेगा लैपटॉप के कीबोर्ड पर टकटक चलने वाली उंगलिया ऐसे बिहेव कर रही थी जैसे कभी कलम थामी ना थी ,जिस राइटिंग पर नोटबुक पर सितारे जड़े होते थे आज वो बेहूदी और अजीब लग रही थी ,पहचान में नहीं आ रही थी 
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कितना तेज रफ़्तार हो गया है ना सब कुछ जितनी तेजी से विचार मन मेंआते है उससे दुगुनी तेजी से वो टाइप कर दिए और उससे भी तेजी से शेयर इस सारी प्रोसेस के बीच विचार मनन का समय कहाँ बचा,पछतावा कितनी बार उभरता है और फिर उतनी तेजी से धुंधला होकर गायब, ये मन भी आजकल पश्चाताप का बोझ ज्यादा देर अपने तक नहीं रखता 
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मुश्किलों का दौर चल रहा हो और कोई रास्ता ना दिखे ऐसे हालात शायद  जीवन का हिस्सा बन चुके है ज़िन्दगी सुकून में कम बीती तकलीफ में ज्यादा , ऊपर वाले को क्या कहूं प्यार और मार दोनों उसने जी भर दिए है जब प्यार पर नहीं रोका तो मार पर शिकायत कैसे कर सकते है 
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खालीपन उम्र के चौथेपन में जन्मने वाला ये एहसास अभी से अपनी आमद दर्ज करा रहा है दौड़ते भागते आत्मबल के घुटने दर्द कर रहे है रिटायर होने की इच्छा हो रही है ,पर रिटायर होकर क्या करेंगे कुछ ना करने के लिए ही तो रिटायर होना चाहते है ,निष्क्रियता और खालीपन का कोई रिश्ता नहीं ,उलझा से रहे है ये दो शब्द 
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एक डरावने सपने से सुबह हुई है उसका असर अभी तक तारी है ना सुकून की नींद आई ना ताजगी भरी सुबह कोई फूलों से कह दो हर रोज़ उनकी तारीफ़ में गीत नहीं गाये जा सकते वो सिर्फ मंदिर ही नहीं मज़ार और मैय्यत भी याद दिला सकते है

Friday, September 13, 2013

राम ढूंढना रावण में

बैलट बुलेट की छावन में
मेला लगेगा गांवन में
राह हमारी जो पाहुन भूले
नित पधारेंगे आँगन में
भोपू जोर जोर  बजेंगे
हांथी के दूजे दांत दिखेंगे
बरसाती मेढक निकलेंगे
बिन बारिश इस सावन में
भोरे भोरे आन घुसेंगे
देहरी देहरी नाक घिसेंगे
मिश्री वाले बोल बोलकर
आन गिरेंगे पाँवन में
नोट उड़ेंगे वोट बिकेंगे
जात पात पर खूब बकेंगे
नहीं जो संभले डूब गिरेंगे
कागज़ की इन नावन में  
खूब परखना जांच के रखना
सुनना सबकी मनकी करना
बड़ा कठिन है काज भैया
राम ढूंढना रावण में

Monday, September 2, 2013

मंज़र तेरी कब्र पर


दो दिन जुटेंगे मज़ार पर
तेरे चाहने वाले
दिन चार चक्कर लगायेंगे
दुआ मांगने वाले
सूखे फूल और सूखे अश्क
फकत बाकी रहेंगे
कुछ कबूतर के सुफेद जोड़े
तेरे साथी रहेंगे
होकर पत्थरो की कैद में
तू आज़ाद रहेगा
मंज़र यही तेरी कब्र पर
तेरे बाद रहेगा
जीतेजी जो एक दिल भी
रोशन किया तूने
वो नूर इस जहाँ में
तेरे बाद रहेगा