कितना बंजारा जीवन जीते है ,अलग परवरिश अलग बोली कई बार अलग देस ..हर बार
अलग सांचे में उतरना होता है ..पर ये भी इतना सहज कहाँ है ..गंगा किनारे
फर्रुखाबाद में पली बढ़ी दुनिया बड़ी आसान थी पैदल पूरे कसबे का चक्कर लगा
लेते ..हर दूसरी दूकान पर कोई ना कोई पहचान वाला होता जो गर्माहट भरी
मुस्कान से स्वागत करता ..आधा मोहल्ला चाचा ,मामा बुआ जैसे संबोधन वाले
प्यारे चेहरों से भरा मिलता जलेबी से ज्वेलरी बिना पैसे खरीद कर घर ला
सकते थे ..
बड़े शहर के नाम पर दो तीन बार दिल्ली देखा और कुछ साल लखनऊ
में बिताये पर लगा ज़िन्दगी ऐसे ही गुज़र जायेगी ..आत्मविश्वास से भरे ,अपनी
मेधा के प्रमाणपत्र हाँथ में लिए जब गुडगाँव में कदम रखा ..तो एक बार होश
ही उड़ गए सब कुछ चमकीला लगा वो शहर जो दिन और रात दोनों में भव्य लगता है
...रौनक ही रौनक . बड़े बड़े माल भीड़ से भरे , बड़ी बड़ी बातें और बड़ी बड़ी
सैलरी आँखे विस्मय और अविश्वास से चौड़ी हो जाती ...छोटे से घर वो भी करोड़ों
के
चमकीले चेहरे ,सब सजा संवरा, दुनिया की हर कम्पनी यहाँ जिनके नाम
पता थे और जिनके नाम आज भी पता नहीं है ,आश्चर्य ये होता कैसे लोग होंगे जो
इन शीशा जड़ी इमारतों में काम करते होंगे, इन माल में खरीदारी करते होंगे
अपने
पास झोला भर डिगरिया थी पर दिन-ब-दिन आत्मविश्वास कम हो रहा था , कैसे
शामिल होऊं मैं इस दुनिया में ,.कुछ बोलने से पहले सौ बार सोचना क्या पता
कौन सा उच्चारण आपको देहाती का तमगा दिलवा दे ..पर सपने तो थे बोर्डरूम में
बड़ी बड़ी मीटिंग्स का हिस्सा बनने के , अपने घर की सबसे स्मार्ट लड़की आज
घबरा रही थी
एक दिन ऐसी ही चमचमाती शीशे जड़ी इमारत से इंटरव्यू का
बुलावा आया हिम्मत बटोरी,शीशे के सामने खुद से सवाल जवाब किये,कई बार यकीन
दिलाया ,हाँ मैं तैयार हूँ ,सवाल ही तो पूछेंगे मार तो नहीं डालेंगे
,ज्यादा से ज्यादा मना कर देंगे , उन बड़ी इमारतों के भीतर कुछ आत्मीयता
भरे चेहरे मिले, कुछ जवाब दिए कुछ नहीं दे पाई पर मैं भी उस इमारत का
हिस्सा बन गई ...राहत की सांस ली पर ये राहत नहीं आफत की सांस ज्यादा थी।
लोगों के साथ घुलना मिलना था काम जल्द से जल्द सीखना था
रोज़ नई
चुनौतियां एक महीने बाद काम मिला विदेशी पार्टनर से बात करने का ..अभी तक
हिन्दुस्तानियों की अंग्रेजी समझ में नहीं आ रही थी उस पर अंग्रेजों
की अंग्रेजी हे ! भगवान् , फोन उठाया ,नंबर मिलाया , रिंग टोन के साथ धडकन
तेज़ होने लगी ..दुआ तक मांग ली फोन ना उठे तो कह दूँगी , फोन नहीं उठ रहा
..पर फोन उठा सामने वाली कन्या ने इतने प्यार से जो कुछ भी पूछा ..वो मुझे
अपनी धड़कन के शोर के सामने सुनाई नहीं दिया ना एक वाक्य बोल पाई ना समझ पाई
..हडबडाहट में फोन काट दिया ... बॉस को बोला लाइन में डिस्टर्बेंस है
..बाद में पता चला भारत से भारत में बात करना भले ही मुश्किल हो पर लन्दन
की लाइन कभी खराब नहीं होती .शर्म आ रही थी,एक लड़ाई बिना लड़े हार जाने
जैसा पर दोबारा ऐसा ना हो इस लिए आँखे कान कुछ और खुले रखने शुरू
किये ..जो असंभव लगता था आसान होने लगा ..फोन पर काम के अलावा भी बातें
करने लगी लगा जंग जीत ली ...पर पूरी तरह हिंदी माध्यम से पढ़ी इस छात्रा की
एक लड़ाई और बाकी थी.
एक सुबह कहा गया तुमको कल कुछ विदेशी मेहमानों के
सामने हमारी सेवाओ को प्रेजेंट करना है और जो सवाल पूछे उनके जवाब देने है
..एक और महाभारत ..जैसे तैसे काम सीखा अब आमने -सामने बात करना ..और वो भी
इतना महत्वपूर्ण ..बॉस को कहाँ वो बोले तुम कर लोगी सारे देवी देवता मान
लिये .. 11,21,51 कितने के प्रसाद बोले याद नहीं ... पर शुरुवाती हडबडाहट
के बाद पता नहीं कहाँ से आत्मविश्वास आ गया ..एक प्यारी सी (जिसे सब मोहिनी
सी कहते है ) मुस्कान के साथ पूरा प्रेजेंटेशन कर गई
...आज 7 साल हो गए
..कोरिया ,जापान, यूनाइटेड किंगडम ,इंडोनेशिया ...ना जाने कितने देशो में
बात करती हूँ ..लोगों से आमने सामने मिलती हूँ, बिना तैयारी के भी कई बार
मीटिंग्स का हिस्सा बनी हूँ , पर वो पहली कॉल और पहला प्रेजेंटेशन मुझे ये
आत्मविश्वास दे गया है नामुमकिन कुछ भी नहीं आपकी आँखे अगर सपने देखती है
तो आपके ही भीतर वो जज्बा है जो उन्हें सच कर सकता है , शायद मेरी जड़ों ने
मुझे इतनी मजबूती दी के मैं हर मुश्किल को पार कर गई.
(ये सीरिज़ लम्बी
चलेगी आखिर रिश्ता भी तो लंबा है)