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Tuesday, April 23, 2013

काबुलीवाले ! अब मत आना

मैंने कभी नहीं सोचा था मैं ये रचनाएँ पोस्ट करुँगी, जिन मासूम चेहरों पर सिर्फ बेफिक्री होनी चाहिए उनके साथ हर जगह वेहशीपन हो रहा है,चाहें अपने हो या पराये, घरों में अनाथालयों में सब जगह वही हाल है, इस पोस्ट पर कमेंट बंद रख रहीं हूँ  :-(

(१ )
काबुलीवाले !
अब मत आना
तुम्हारी पोटली डराती है
तुम्हारा स्पर्श चौंकाता है
बहेलिये से लगते हो
छिप जाते है खरगोश से
मासूम किन्ही कोनो में 
किलकारी अब सिसकी है 
चहकना सुबकने सा है
(२)
जिन खिलौनों को
उनके बनाने वाले
ठुकरा देते है
उन्हें पाने वाले
मनचाहा खेलते है
तुम कहते हो
ईश्वर है
(३)
सुना है प्रभु
काम बहुत बढ़ गया है
धरती पर विभाग
शिफ्ट कर रहे हो
सदा के लिए
नर्क को नया
नाम दिया था
"अपना घर "
तो बताते तो सही