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Thursday, March 28, 2013

बेवजह

जिरह-ए-जुल्फ में उलझा हुआ हूँ
बेवजह शानो पर बिखरा हुआ हूँ
पास होकर भी दूरियां मीलों की
हूँ अश्क़, आँख से फिसला हुआ हूँ

अधूरी ग़ज़ल का मिसरा हुआ हूँ
कहीं ख़याल में अटका हुआ हूँ
किस लम्हा मुकम्मल हो जाऊं
हूँ ग़ज़ल, बहर से भटका हुआ हूँ

यूँ अपने आप से बिगड़ा हुआ हूँ
छोड़ दुनिया आज तनहा खड़ा हूँ
सामने आँखों के अँधियारा घना है  
हूँ सितारा,राह से भटका हुआ हूँ

कल तुझमें डूबकर तुझसा हुआ हूँ
सांस की उस छुअन से तप रहा हूँ
मुझको रोक ले ख़ाक होने से पहले
हूँ शरारा, ईमान से बुझता हुआ हूँ

15 comments:

  1. देवी तुम्हारे चरण कहाँ हैं ....
    शुरू की आठ लाइन तो जानलेवा हैं ..

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  2. बेहद सुन्दर .... गज़ब |

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  3. बहुत सुन्दर...गज़ब लिखा |

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  4. क्या बात है -आप तो सिद्धहस्त गज़लकार हैं !

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  5. अधूरी ग़ज़ल का मिसरा हुआ हूँ
    कहीं ख़याल में अटका हुआ हूँ
    किस लम्हा मुकम्मल हो जाऊं
    हूँ ग़ज़ल, बहर से भटका हुआ हूँ


    हम भी तारीफ़ कर दे रहे हैं। गजल मुकम्मल होने की शुभकामनायें भी।

    चरण भेज दिये गये क्या लंदन? :)

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  6. वाह सोनल....
    दाद कबूल करो !!!!

    मुकम्मल ग़ज़ल के लिए बार बार वाह वाह...
    और हाँ..
    चरण भेज दिये गये क्या लंदन? :)
    अनु

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  7. अधूरी ग़ज़ल का मिसरा हुआ हूँ
    कहीं ख़याल में अटका हुआ हूँ
    किस लम्हा मुकम्मल हो जाऊं
    हूँ ग़ज़ल, बहर से भटका हुआ हूँ
    गजब की गज़ल
    बधाई

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  8. बहुत खूब, बहुत सुन्दर..

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  9. बहुत खूबसूरती से लिखा है आपने.

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  10. वाह वाह वाह वाह ! दाद के सिवा कोई और लफ्ज़ दिल से निकल ही नहीं रहा है ! तो दाद क़ुबूल फरमाएं !

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  11. बेहतरीन ग़ज़ल बार बार पढने की इच्छा होती है
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