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Tuesday, November 27, 2012

मेरे शहर में



मेरे शहर में
शाम नहीं होती
देखा नहीं किसी नें
ढलते सूरज को
हाँ, वालपेपर पर
कई बार देखा है ,
ऑफिस से  निकलते है
बंधुआ मजदूर
अँधेरे में मुह छिपाए
कंधे झुकाए रोबोट 
नशे में डुबो देते है
पूरा दिन और तनाव
पर शाम को तो
उन्होंने भी नहीं देखा
आसमान के रंग
को लेकर अक्सर
बहस छिड़ती है
छ बाय छ के
पिंजरे से कभी
आकाश दिखा नहीं
जो घोसलों को
लौटते है बिना पिए
उनके चूजे भी
सीमेंट में पलते है
सीमेंट में बढ़ते है
शाम को वो भी जानते नहीं
कुछ बूढ़े बाते करते है
गोधूलि बेला की
पर ऐसा कुछ
मेरे शहर में नहीं होता 
दिन और रात के सिवा
कुछ नहीं देखा
मेरे शहर में
किसी ने भी
शाम को नहीं देखा

Thursday, November 22, 2012

घुंघराली जलेबियाँ





ये मौसम का ही कसूर है और उस पर हमारी भुक्खड़ तबियत ..ज़रा मौसम बढ़िया हुआ तो मुह में पानी आते देर नहीं लगती ...इसे ही नीयत और लार गिरती है गरम जलेबी पर ..बचपन से आज तक लाल लाल रस में डूबी ..प्यार से अपने पास बुलाती है जितना सुकून गर्म जलेबी को खाने में मिलता है उतना किसी मिठाई को नहीं।। सुबह का नाश्ता गर्म जलेबी के बिना पूरा ही नहीं होता कटोरी भर दही और प्लेट भर जलेबी और क्या चाहिए ...अमृत ..परमानन्द . .... जब नन्हे मुन्ने थे लहंगा पहन कर कन्या भोज के लिए तैयार हो जाते थे ...दही जलेबी की कन्या जो खाने को मिलती थी , घर में मेहमान आये तो जलेबी का नाश्ता, ननिहाल (इलाहबाद ) में बिलकुल अलग पैकिंग में जलेबी देख कर दिल बाग़ बाग़ हो जाता था चोकोर डिब्बा कुछ पत्तलों से बना ..अभी भी वो कहीं भूले भटके दिख जाए तो अपने राम को जलेबी ही याद आती है
सब मिलता है गुडगाँव में पर जलेबी में वो बात नहीं ..केसर का स्वाद अपने ठेठ देहाती स्वाद से मैच नहीं करता ऐसा लगता है ..अलता महावर से सजी गाँव की गोरी को स्कर्ट पहना दिया हो बेमेल और बे- ढब (किसी केसर प्रेमी की भावनाए आहत हो तो प्लीज पुलिस में ना जाए ). देसी जलेबी के नाम पर पुराने शहर में एक ही ठिकाना है जहां लाइन लगाकर जलेबी खरीदनी पड़ती है ..पर  जुबान से मजबूर इंसान करे भी तो क्या उससे ही काम चला लेते है , कई अलग अलग शहरों में जलेबी की फॅमिली से मिलना हुआ है ... पनीर की जलेबी ,गुड़ की जलेबी ,विशाल जलेबा ...
अरे आप लोग सोचने लग गए कितनी केलोरी होती है ,चीनी और घी के अलावा कुछ नहीं होता ,बहुत नुक्सान करती है तो भाई जलेबी की खिलाफत सुनने वाले कान हम बक्से में बंद रखते है ... और हाँ ..जो सबसे ज्यादा समझा रहे है इस सीजन शादियों में जलेबी के स्टाल पर ही पाए जायेंगे ... जलेबी प्रेमियों के बीच हुई बहस में अक्सर जलेबी के बेस्ट पार्टनर पर अंतहीन बहस छिड़ते देखा है ...दूध के साथ ,रबड़ी  के साथ या दही के साथ या यूँही ... अभी तक तो सर्वसम्मति हुई नहीं
जबान अपनी अपनी ..स्वाद अपना अपना
कुछ आपको पता हो तो हमारा भी जलेबी ज्ञानं बढाइये ...प्यार से खाइए ...मिठास बढाइये
 चाशनी से तरबतर
घुंघराली जलेबियाँ
उकसाती है अक्सर
तोड़ दो सारी कसमें
और थाम लो हमें
मेनका -उर्वशी सी
घुंघराली जलेबियाँ
बनती है सुबह -सुबह
तोड़ने को सारे प्रण
बस आज और, बस
कल से मत देखना
उलझी लिपटी सी
घुंघराली जलेबियाँ
कहती है चख लो
गुनाहों  के ढेर से
मीठा टुकड़ा गुनाह का 


Tuesday, November 20, 2012

मौन


सूरज भी मुश्किलों
 से उगा आज सुबह 
चिड़िया नहीं निकली
अपने  घोसलों से
बच्चे म्यूट मोड में
लगातार बिलखे
गाय दूध देने से
कर रही थी इनकार
तीन दिनों से
 ठहर -ठहर कर
वो भर रही थी सांस
इस घबराहट में
क्या पता खुदा
आक्सीजन की भी
सप्लाई रोक दे ...

Tuesday, November 6, 2012

आईने में अक्स




आईने में अक्स जिसका  है 
मुझसे  इसका एक रिश्ता है 
देखकर अक्सर मुस्कुराता है
किसकी सूरत से मिलता है ?

रोक देता है सरेराह मुझको 
आप बनता कभी बिगड़ता है 
सामने बैठो तो वादे हज़ार 
वरना  पहचान से मुकरता है .

मासूम ऐसा शक ना हो ज़रा 
सांस की आंच से पिघलता है 
संग फिरता है हमसाया होकर 
मुझे तो मुझ सा ही लगता है .