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Friday, August 31, 2012

नीला उजास




सत्य है  वह 
या  भ्रम था 
मयूर वर्णी 
उसका तन था 
वैजयंती में 
पिरो गया वह 
वंशीधुन में 
डुबो गया वह 
नयन भी 
मुंदने ना पाये 
अधर भी 
खुलने ना पाये 
मोह मंतर 
पढ़ गया वह 
नीला उजास
भर गया वह 
चाँद उजला 
अब नहीं है 
भोर भी अब 
सुरमई है 
अधखुली आँखे 
भ्रमित मन 
पौ फटी है 
या ढला दिन

Wednesday, August 22, 2012

बंजर दिन बंजर रात ...

बंजर दिन
बंजर रात
सूनी आँखे
सूनी बरसात
कोरे कागज़
कोरी किस्मत
मौन अधर
कैसे हो बात
शब्द अधूरे
सन्दर्भ अधूरे
छितरे रिश्ते
बिखरे ख्वाब
मौन घाव
मुखर वेदना
कठिन घडी
कैसे हो पार



Tuesday, August 7, 2012

यही फ़िज़ा की मोहब्बत का हश्र है दुनिया



सुहाग बनके तुझे ही फ़िज़ूल बेच गया
गुलाबी फूल दिखाकर बबूल बेच गया
यकीन था तुझे जिस शख़्स के उसूलों पर
सर ए बाज़ार वो सारे उसूल बेच गया
ये कैसा सौदा किया है दिखा के आईना
तुझे वो रास्ते की गर्द औ धूल बेच गया
जिन्हें सजाती रही अपनी सेज पर हर शब 
तुझे वो तेरी ही तुरबत के फूल बेच गया
बनी  तमाशा तेरी  वस्ल भी जुदाई भी
नमक जख्मो के वास्ते नामाकूल बेच गया
यही फ़िज़ा की मोहब्बत का हश्र है दुनिया
वो बन के चाँद तुझे तेरी भूल बेच गया

Wednesday, August 1, 2012

सावन में नैहर की यादें



सावन में नैहर की यादें
पाँव में  जैसे पायल बांधे
झूले सखियाँ हंसी ठिठोली
मेहँदी राखी चन्दन रोली
देह धरी है पिया के घर में
मन मैके की देहरी फांदे
नभ से बरसे शोर मचाकर 
नयनन रोके ज़ोर लगाकर 
आंसू हुए खारे से सादे
घेवर फेनी खीर बताशे
तीज का मेला खेल तमाशे
पैरो में क्यों बेडी सी  बांधे 
सावन में नैहर की यादें