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Wednesday, July 18, 2012

विभीषिका

कायर ही तो है
देखी है पीठ
हर अवसर पर 
प्रत्यंचाए तनी  थी
रणभेरी बजी थी
गूंजी थी टंकार
और वह
ढूंढ रहा था
ऐसा स्थान जहां
ना पहुंचे आर्तनाद
ना कोई चीत्कार
वही था आयोजक
वही निमित्त था
कल तक चिंघाड़ता
अट्टहास करता
आज काँप रहा है
भावी रक्तपात
भांप रहा है
छाया में गिद्ध
देखता है प्रतिदिन
उनके आभासी नख
भेदते है आत्मा
सोचा ना था उसने
जब शिराओ से
निकल बहेगा
गिरेंगे मुंड
विजय का रस
कसैला करेगा
देह को उसकी
श्मशान जीवित हो
धिक्कारेंगे
और अपनी छाया
दोषी ठहरायेगी
रक्त मज्जा से सने
अमृत कलश को
चख पायेगा
मृत्यु के दावानल में
स्वयं जीवित रह पायेगा

Tuesday, July 10, 2012

रिश्तों की पैरहन.

उसे प्यार नहीं था पर कर रही थी कोशिश प्यार करने की क्योंकि यही रिवाज़ है, हर लड़की को चाहना होता है अपने होने वाले पति को, और और समझाना होता है यही है वो राजकुमार जिसका इंतज़ार करती आ रही है सदियों से,जब नख से शिख तक माप तौल चल रही होती है लड़की की, उसके पिता के बजट की, तब भी उसे अपने होने वाले पति में ढूंढना होता है महान आदर्श पुरुष.जो हर तरह से उसके योग्य है ,उसके माँ पिता तो बस माध्यम है चुना तो स्रष्टि ने है ना उसके लिए, अपने सपनो के खांचे में फिट करके देखती है नहीं होता ,तो  अटाने की कोशिश करती है वैसे ही जैसे कोई नया सूट जो एक साइज़ छोटा हो उसे शरीर पर चढ़ा लिया जाए 

...क्योंकि बस वही है उसके पास वही सर्वश्रेष्ट है ,ये कोशिश जिसे अडजस्ट करना कहते है चलती रहती है ताउम्र, कुछ खुद को घोल देती है रोज़ थोडा थोडा और सुकून से सांस लेती है अब घुटन नहीं होती पर अपने को खोने का दर्द और टीस सालती है हमेशा जिसे एक नकली मुस्कान से ढका करती है ,

जो नहीं घुल पाती उनका शरीर झाँकने लगता है उधडी सिलाइयों से और पड़ते है गहरे निशान, देखने वाले निगाहों से और इशारों से कोंचते है ,उधडे रिश्तों को ,और वो बिता देती है पूरी उम्र घुटन में ,उनके भीतर की उमस उन्हें ही भिगोती है पसीजती है ,सूखती है पर उतार नहीं पाती वो रिश्ते कैसे सामना करेंगी दुनिया का रिश्तों की पैरहन के बिना निर्वस्त्र रह जायेंगी,
कुछ के पास वो पैरहन भी नहीं होता बेलिबास होती है क्योंकि उनका रिश्ता किसी और को ढक रहा होता है और वो सोचती है कोई नहीं देख रहा ,मांग के सिन्दूर को गहरा करती है ,मंगलसूत्र कुछ और बड़ा, आत्मविश्वास का पाउडर चेहरे पर कुछ ज्यादा जिससे चेहरा सफ़ेद दिखे ,पर चेहरा सफ़ेद दिखने की कोशिश में पीला दिखता है रक्तहीन, वे दिखाती है मेरे पास सब है ,उस राजा की तरह जो हवा का लिबास ओढ़े सड़क पर निकल गया था ...खुद को मुगालते में रखती है,

एक नई कौम अंकुरित हुई है हाल में उसी मिट्टी से,संस्कारों की खाद से सींची हुई, जिसके चेहरे पर आत्मविश्वास थोपा हुआ नहीं है,जड़े ज्यादा गहरी है, प्यार करने की कोशिश की बजाय प्यार करने में यकीन करती है,अडजस्ट करने के नाम पर इनकार करती है एक नाप बड़े या छोटे रिश्तो में उतरने के लिए या खुद चुनती है अपने नाप जिससे सांस ले सके या चुने हुए रिश्तों को परखती है, किसी भी घुटन,उमस को झेलने की बजाय आज़ाद कर लेती है खुद को, रिवाज़ खुद गढ़ने लगी है,रिश्तो के लिबास के बिना भी खुश रहती है क्योंकि वो जान गई है निर्वस्त्र रहना शर्म की बात नहीं है ईश्वर ने रचा है आपको एक खूबसूरत जीवन दिया है ,उसे उसके साथ जियो जिससे प्यार कर सको नाकि प्यार करने की कोशिश में ज़िन्दगी गुज़ार दो ......


Wednesday, July 4, 2012

सावन को झूमकर आना ही पडा

बेहयाई ओढ़े थे तपते दिन
बादलो को पर्दा गिराना ही पड़ा
लू भी ढीठ सताती थी बहुत
आसमां को रहम बरसाना ही पड़ा
कांटे बो गई दोपहर पीठ पर मेरी
बूंदों को मलहम लगाना ही पड़ा
आह मेरी बे-असर रहती कबतक
सावन को झूमकर आना ही पडा