कायर ही तो है
देखी है पीठ
हर अवसर पर
प्रत्यंचाए तनी थी
रणभेरी बजी थी
गूंजी थी टंकार
और वह
ढूंढ रहा था
ऐसा स्थान जहां
ना पहुंचे आर्तनाद
ना कोई चीत्कार
वही था आयोजक
वही निमित्त था
कल तक चिंघाड़ता
अट्टहास करता
आज काँप रहा है
भावी रक्तपात
भांप रहा है
छाया में गिद्ध
देखता है प्रतिदिन
उनके आभासी नख
भेदते है आत्मा
सोचा ना था उसने
जब शिराओ से
निकल बहेगा
गिरेंगे मुंड
विजय का रस
कसैला करेगा
देह को उसकी
श्मशान जीवित हो
धिक्कारेंगे
और अपनी छाया
दोषी ठहरायेगी
रक्त मज्जा से सने
अमृत कलश को
चख पायेगा
मृत्यु के दावानल में
स्वयं जीवित रह पायेगा
देखी है पीठ
हर अवसर पर
प्रत्यंचाए तनी थी
रणभेरी बजी थी
गूंजी थी टंकार
और वह
ढूंढ रहा था
ऐसा स्थान जहां
ना पहुंचे आर्तनाद
ना कोई चीत्कार
वही था आयोजक
वही निमित्त था
कल तक चिंघाड़ता
अट्टहास करता
आज काँप रहा है
भावी रक्तपात
भांप रहा है
छाया में गिद्ध
देखता है प्रतिदिन
उनके आभासी नख
भेदते है आत्मा
सोचा ना था उसने
जब शिराओ से
निकल बहेगा
गिरेंगे मुंड
विजय का रस
कसैला करेगा
देह को उसकी
श्मशान जीवित हो
धिक्कारेंगे
और अपनी छाया
दोषी ठहरायेगी
रक्त मज्जा से सने
अमृत कलश को
चख पायेगा
मृत्यु के दावानल में
स्वयं जीवित रह पायेगा