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Wednesday, April 11, 2012

हे सीता


सीता तुम थी शक्ति
फिर क्यों दी अग्निपरीक्षा
यदि न रहती मौन तब तुम
बच जाती फिर कितनी सीता
वन वन भटकी थी  तुम
पतिव्रत धर्म निभाने को
कठिन समय में त्यागा राम ने
एक मर्यादापुरुषोत्तम कहलाने को
क्यों न प्रश्न किये तब तुमने
क्यों न तब धिक्कार किया
सीता को बेघर करने का
तुमने ही अधिकार दिया
तुमने ली  समाधि जिस पल
तुम तो जीवन से मुक्त हुई
पर तुम जैसी कितनी सीतायें
जीते जी अभिशप्त हुई

24 comments:

  1. परीक्षा उसीकी होती है
    जिसमें सामर्थ्य हो
    तुमने माना - मैं शक्ति थी
    ...... अर्थ का अनर्थ दुनिया ने बनाया
    सिर्फ सीता को ढूँढा
    राम बनने की जहमत नहीं उठाई

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    1. हे बेटी ....

      किसने अधिकार दिया है तुमको
      मेरे राम पर यह आरोप लगाने का ?
      अनसमझी बातें अनेकों कहकर
      उन्हें क्रूर पति जतलाने का ?

      अपने पैमानों से तुम जब जब भी
      प्रेम हमारा तौलोगे
      उसे समझ नहीं पाओगे तुम और
      जाने क्या कुछ बोलोगे |

      जिस राम ने मेरे प्रेम विरह में
      महाभयंकर रावण से युद्ध किया
      कैसे मान लिया तुमने यह
      के उसने मुझको छोड़ दिया ?

      जो राम हर इक जीव प्राणी का
      हर सांस कदम हर थामे हैं ?
      कैसे तुम सब ने मान लिया यह
      के वो मुझसे बेगाने हैं ???????????

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  2. हर घटना कुछ कहती है .... एक प्रश्न छोड़ती रचना

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  3. हर स्त्री सीता नहीं होती......और ना हर पुरुष राम..................
    जाने विधाता कैसे खेल रचाता है....

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  4. हम्म ..वो समय और था..परन्तु आज भी हर सीता अग्नि परीक्षा देती है.

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  5. शक्ति मर्यादा के सामने बहुधा शान्त हो जाती है।

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  6. aarop nahi sawaal poochh rahi hoon

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  7. एक सार्थक प्रश्न उठाती बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...

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  8. बहुत सही प्रश्न पूछती कविता! सच में काश सीता ने अग्निपरीक्षा न देकर अपना रौद्र रूप दिखा दिया होता। तो शायद समाज यह न सोचता कि स्त्री व अग्नि एक दूजे के लिए बनी हैं!
    घुघूती बासूती

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  9. बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर

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  10. हे बेटी ....

    किसने अधिकार दिया है तुमको
    मेरे राम पर यह आरोप लगाने का ?
    अनसमझी बातें अनेकों कहकर
    उन्हें क्रूर पति जतलाने का ?

    अपने पैमानों से तुम जब जब भी
    प्रेम हमारा तौलोगे
    उसे समझ नहीं पाओगे तुम और
    जाने क्या कुछ बोलोगे |

    जिस राम ने मेरे प्रेम विरह में
    महाभयंकर रावण से युद्ध किया
    कैसे मान लिया तुमने यह
    के उसने मुझको छोड़ दिया ?

    जो राम हर इक जीव प्राणी का
    हर सांस कदम हर थामे हैं ?
    कैसे तुम सब ने मान लिया यह
    के वो मुझसे बेगाने हैं ???????????

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  11. do bar ek tippani kar chuki hoon - spam se nikal lijiyega :)

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  12. राम के व्यक्तित्व के इस पहलू पर काफी प्रश्न उठ चुके हैं। बचपन में ही इस विषय पर ओशो के कटाक्षों को पढ़ चुका हूँ। पर जिस युग में रामकथा लिखी गई उस युग को आज के समय में आदर्श कहाँ माना जाता है ? कौन सी स्त्री आज सीता सरीखी बनना चाहती है ?
    बहरहाल कविता में एक प्रवाह है जो अच्छा लगता है।

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  13. नए परिप्रेक्ष में नए भाव लिए. मैथिली के सन्दर्भ में ही मेरी एक कविता है.
    http://swarnakshar.blogspot.ca/2012/04/blog-post.html

    शीघ्र अपने देश लौटने वाला हूँ....
    व्यस्तता के कारण इतने दिनों ब्लॉग से दूर रहा.
    नयी रचना समर्पित करता हूँ. उम्मीद है पुनः स्नेह से पूरित करेंगे.
    राजेश नचिकेता.
    http://swarnakshar.blogspot.ca/

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  14. शायद सीता को इस युग का इतना भान नहीं होगा ... वो तो राम मय हो चुकी थीं ... हर कदम राम के लिए ही तो था ...

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  15. सोनल जी,
    राम राम....
    नहीं सीता सीता!!!
    गुड कुएस्चन!
    आशीष
    --
    द नेम इज़ शंख, ढ़पोरशंख !!!

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  16. gahan sunder abhivyakti ....!!
    shubhkamnayen ...!!

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  17. पढना सुखद अनुभव rahaa

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