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Wednesday, April 11, 2012

हे सीता


सीता तुम थी शक्ति
फिर क्यों दी अग्निपरीक्षा
यदि न रहती मौन तब तुम
बच जाती फिर कितनी सीता
वन वन भटकी थी  तुम
पतिव्रत धर्म निभाने को
कठिन समय में त्यागा राम ने
एक मर्यादापुरुषोत्तम कहलाने को
क्यों न प्रश्न किये तब तुमने
क्यों न तब धिक्कार किया
सीता को बेघर करने का
तुमने ही अधिकार दिया
तुमने ली  समाधि जिस पल
तुम तो जीवन से मुक्त हुई
पर तुम जैसी कितनी सीतायें
जीते जी अभिशप्त हुई

Monday, April 9, 2012

मेरा गाँव (हाइकु)

तेज  गति  से
बढ़ा है मेरा गाँव
पिछड़े लोग .....

तरक्की हुई
चमका मेरा  गाँव
सिमटे  लोग .....

रंगी दीवारे
जगमग चौराहे
भौचक लोग .....

गोली धमाके
ढोल ताशे बजे औ'
सिहरे लोग .....

नकली ख़ुशी
झूठे उत्सव मने
सिसके लोग .....

चौपालों पर
जो साथ रहे ,अब
बिखरे लोग ......

Tuesday, April 3, 2012

गुनाह ज्यादा है ...वक़्त कम.

आज दिल कुछ अजीब से लम्हात में जी रहा है ,बड़ा सुकूं है जबके चारो ओर शोर है ...शरीर ऐसा शांत है मानो कितनी मुद्दत के बाद गहरी नींद सोये हो, आस पास की हलचल धीरे धीरे कम होती लग रही है और फिर एक मनचाहा सन्नाटा सा पसर जाता है,आज लगता है उपरवाला मुझे स्पा treatment  देने के मूड में है ,मेरा माथा  धीरे धीरे सहलाकर सारी हलचले शांत कर रहा है ,कोई दर्द नहीं कोई ख़याल नहीं ..बस एक गहरा नीला रंग वही रंग जो सुबह सूरज उगने से पहले आसमां का होता है, आज से पहले ऐसा लगता था मानो सुकूं बस मौत के बाद ही मयस्सर होगा ... खैर मौत किसने देखी है ! इस नीले रंग में ये सफ़ेद सा साया किसका है क्या खुदा मेरे सामने आ गया ..... अब कैसे हो ...कैसा महसूस कर रहे हो ...एक दूर से आती गहरी आवाज़ .....अचानक तेज़ हो जाती है और सारे शोर ज़िंदा अचानक सफ़ेद साए के इर्द गिर्द कई चेहरे उगने लगते है ...मैं इन्हें पहचानता हूँ आर ये मुझे पहचानते है ...कौन है ये लोग ...जो  फ़िक्रमंद निगाहों से मुझे देख रहे है ........ मेरा सुकूं अचानक बुलबुले सा फूटता है ,और मैं चिहुक उठा हूँ जैसे किसी ने तेज़ चिकोटी काट ली ....
" चक्कर कैसे आ गया " मेरी पास की सीट पर बैठने वाली निशा पूछती  है , पिछले दस मिनट से बेहोश हो.
आँख पूरी तरह खुलती है ,शरीर  इतना कमज़ोर महसूस हो रहा है जैसे मानो पत्थर उठा रखे हो ...सारा सुकूं कपूर की तरह उड़ गया. ढेर सारे सवाल हिदायतों और फलो के साथ मुझे रूम पर छोड़ गए. जानता हूँ ज्यादा वक़्त नहीं है मेरे पास .... डॉक्टर बता चुका है ..कभी भी विदा हो सकता हूँ दुनिया से ...क्या पता आज ही वो दिन था ...फिर वापस क्यों लौट आया ... एक क़र्ज़ बाकी है शायद चुका दूं तो बरी हो जाऊं ...दादी कहती थी सारा हिसाब यहीं धरती पर चुकाना पड़ता है. अच्छा बुरा सब कुछ ...आज दादी तुम बहुत याद आ रही हो ...अगर तुम इतनी जल्दी ना जाती तो शायद आज मैं कुछ और होता ...घर पर बात करूँ ? पिछले तीन साल से ना मैंने कोई फोन किया ना कोई फोन आया .... कहूंगा क्या "मैं मरने वाला हूँ " .. वो तो पहले ही कह चुके है "तू हमारे लिए मर चुका है "... एक बार कोशिश करूँ ? जाने दो जब मैंने अपनी ज़िन्दगी खुद चुनी थी और किसी की बात नहीं सुनी थी तो मौत के लिए उनको क्यों परेशान करूँ ..... सच में हर इंसान को ज़िन्दगी में एक बार मौत को करीब से ज़रूर देखना चाहिए ... आँखे बंद करने से पहले मौत इंसान के भीतर की आँखे खोल देती है.... अपनों के आंसू जो नाटक ,ड्रामा लगते थे आज कितने सच्चे लग रहे है ... अपने लिए ये तन्हाई मैंने खुद ही चुनी थी ...मैंने हर वो काम किया जो मुझे मना किया गया ... हर नियम तोड़ा,जिसने मुझे प्यार किया उसका मैंने फायदा उठाया ...नीरू आँख बंद करके मुझपर यकीन करती रही और मैं इस्तेमाल ...घर वालो को यकीन था वो बहु बनेगी उनके घर की ...सबके सपने आशाये जुड़े थे ...और कितनी आसानी से मैं उसे छोकर आगे बढ़ गया ....मेरा सारा परिवार उसके साथ खड़ा था और मैं एक दम अलग, उन्होंने मुझे कोसा ,अपने संस्कारो को कोसा ...मां ने अपनी कोख तक को कोसा पर ..पता नहीं किस धुन में मैं घर से निकल आया ...अनजान शहर में ...अपनी शर्तों पर जीने के लिए ... मैंने नहीं सोचा था ..मेरे हिसाब किताब का दिन इतनी जल्दी आ जाएगा ... गुनाह ज्यादा है ...वक़्त कम...सज़ा तो यहीं पूरी  करनी होगी ...