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Friday, November 25, 2011

प्यार के पापकार्न

आजकल जहाँ से गुजरते है एक सोंधी सी खुशबू ठिठकने पर मजबूर कर देती है लगता है कहीं ना कहीं कुछ पापकार्न पक रहे है ये मक्के वाले नहीं ,जी ये तो प्यार वाले पापकार्न है ,छोटे शहरों में जो मोहल्ले की छतों पर,पार्क के कोनो में हुआ करता था आज वो हर सड़क और गली ,मॉल और पार्क ,कैफे और बाज़ार में सामने दिखता है .

मारल पुलिस प्लीज़ माफ़ करो मुझे तो ये गुलाबी मौसम बहुत  पसंद है , जब हवा में सिर्फ प्यार छाया हो .

माना छतें और शामें आज की तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी से माइनस हो चुकी है पर दिल तो वही है ना और दिलदार भी साथ ही है, फिर ज्यादा कुछ करना भी तो नहीं है,बस एक कॉम्प्लीमेंट ,एक गुलाब ,एक कप चाय या छोटी सी वाक. सारा नज़ारा बदल देगा .सब सामने ही है पर रोज़ कि व्यस्तताओं  नें आँखों  पर काला चश्मा लगा दिया है 

 सिर्फ युवा  ही नहीं आज हर जोड़ा खुलकर अपने प्यार का इज़हार करता है,चाहें जन्मदिन हो ,valentine डे या यूँही , आखिर बुराई क्या है ,जिस जीवन साथी ने हर सुख दुःख में आपका साथ दिया है अगर उसका हाँथ थाम कर दुनिया के नज़ारे देखने निकल पड़े तो भवें क्यों तिरछी क्यों की जाए,चाहें बरसात के मौसम में एक साथ भुट्टे का मज़ा लेना हो या खोमचे पर खड़े होकर चाट खाना और अपनी "प्रियतमा" को गोलगप्पे खाते हुए देखना.

कुछ द्रश्य जो आज से कुछ साल पहले तक शायद दीखते नहीं थे आज आम है .ऐसे दृश्य हमें एहसास दिलाते है ज़िन्दगी सिर्फ भागने के लिए नहीं है ,कुछ पल सुकूं से गुज़ारने के लिए भी है,किसी रिश्ते में बंधने से पहले वो पल जैसे भी हो निकाले जाते थे और जिए भी जाते थे डर था ना अपने साथी को खोने का ,और आज जब वो साथ है तो वक़्त की कमी का रोना क्यों ?

तीन घंटे पिक्चर हाल में गुजारना कुछ लोगों को पैसे या टाइम की बर्बादी लग सकता है पर कोई बताये सिर्फ साथ रहने के लिए अपनी व्यस्त शाम में से तीन घंटे कौन निकाल पाता है, कितने लोग है जो शाम को जल्दी आकर कहते है चलो तैयार हो जाओ कहीं घूम कर आते है , आसमान में बादल छाते  है ,बरस जाते है जब तक हम आप बाहर निकलते है तब हमें सिर्फ कीचड और ट्रेफिक जाम याद आता है,
 
आज कोई बुजुर्ग जोड़ा जब मॉल में एक कॉफ़ी टेबल पर एक साथ सुकून से काफ़ी का मज़ा ले रहा होता है तो कितने युवा जोड़ों के दिल में यही उम्मीद जगाती है काश हमारा बुढ़ापा भी ऐसे हाँथ में हाँथ डालकर बीते एक दुसरे के साथ. अजीब बात है सबको रश्क है टीनएजर युवाओं से रश्क कर रहे है "जब हम Independent  होंगे तो जैसे चाहें एन्जॉय करेंगे ", युवा अधेड़ों से रश्क करते है "यार हम भी सेटल   हो जाए फिर लाइफ जियेंगे " और बुजुर्ग पीछे मुड कर देखते है और सोचते है काश ..थोडा वक़्त अपने लिए भी निकाला होता . बस यूँही फिसल जाते है हसीं लम्हें रेत कि मानिंद हांथों से
बड़ों के लिहाज के चलते ऐसे पलों का मज़ा सिर्फ पहाड़ों पर छुट्टियों के दौरान ही उठाते थे ना ,आज वीकेंड वही मौक़ा देता है हर हफ्ते आप पर है आप कितना एन्जॉय कर पाते है ,प्यार तब भी था प्यार अब भी है बस पहले जताते नहीं थे अब छिपाते नहीं.
भले ही युवा जोड़ों को गुटर-गूं करते देख दिल में टीस उठे कभी उनको बे-शर्म भी कह दे पर वो टीस खुद वो लम्हे ना एन्जॉय कर पाने की होती है, तो रोका किसने है ज़िन्दगी तो यूँही भागती रहेगी जब तक जोड़ों के दर्द आपको धीमे चलने के लिए मजबूर नहीं कर देंगे क्या पता तब वक़्त हो ,पैसा हो पर साथी ना हो ,लम्हे तो चुराने ही पड़ेंगे ना ,

ये प्यार के पोपकोर्न है आपके हाँथ थामने भर से खिल उठेंगे और अपनी सोंधी खुशबू से मजबूर कर देंगे कि बस एक रूमानी सा ब्रेक तो बनता ही है ना .

Tuesday, November 15, 2011

पाया है थोडा गंवाया बहुत ......

पाया है थोडा
गंवाया बहुत
ज़िन्दगी ने यूँही
सताया  बहुत
मुस्कान का टीका
माथे पे रखकर
आँखों को मेरी
रुलाया बहुत
आसमां की छत पे
लटका के चन्दा
पूनम की रातों ने
लुभाया बहुत 
यूँही छू बैठे
जुल्फें उनकी
भोर तलक हमको
सुनाया बहुत
हमराज़ बने
हमख्याल बने
निभाया तो कम
हाँ मिटाया बहुत
सहेजे जो सपने
जाया हुए
इंतज़ार ने उसके
जगाया बहुत
 

Saturday, November 5, 2011

तुम थोड़ी कम खूबसूरत नहीं लग सकती



क्या तुम थोड़ी कम खूबसूरत नहीं लग सकती ...उसने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा ..कह तो गया फिर मुस्कुरा कर बोला इसमें तुम्हारा क्या दोष इतनी सादगी में भी गज़ब ढाती हो, शायद तुम्हारे जैसे रूप को ज़माने से बचने के लिए परदे का चलन हुआ होगा ... तुम पर शायरी सवार हो रही है ये लो पेन और लिखना शुरू कर दो ..मुझे नहीं समझ आती तुम्हारी सपनो की बातें वो खिलखिला दी .
सच में वैसे तो हर माशूक को अपना महबूब ज़माने से प्यारा लगता है पर वो थी ही पूरा चाँद उसके आते ही आसपास की सारी लडकिया तारों सी लगती और वो उनमें एक दम अलग से जगमगाती हुई .... एक दम धुली -धुली एक दम ताज़ा , पर उसका रुझान सिर्फ इस नाचीज़ शायर में था ..शायरी में बिलकुल नहीं , वो भविष्य की बातें करती और ये सपनो की ,ये कहती सपने बंद आँखों से देखे जाते है और उन्हें पूरा करने के लिए आँखे खोलनी पड़ती है .... अब इसे फितूर कहे या इश्क का सुरूर उसको ना समाज में आना था और ना आया ... दिन ,महीने फिर साल ...
आज वो दुल्हन बनी है सर से पाँव तक सजी हुई ...पूनम का चाँद जिससे निगाह चाह कर भी नहीं हट पा रही थी वो तोहफा लेकर स्टेज पर चढ़ा कुछ तो चुभा दिल में ..पर लबों पर मुस्कराहट उभर आई ..एक साथ चले थे दोनों पर मंजिल अलग अलग थी तो जुदा हो गए .... धीरे से उसके पास जाकर फुसफुसा उठा
"क्या तुम थोड़ी कम खूबसूरत नहीं लग सकती " ..और थोड़ी देर के लिए दोनों की आँखे धुंधली हुई और बचे हुए ख्वाब आँखे छोड़कर बह चले .....