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Tuesday, June 28, 2011

सलवटें चेहरे पर

सलवटें चेहरे पर
साफ़ नज़र आती है
करवट बदलकर
जब रात गुज़र जाती है
दिल को निचोड़ते है 
ख़ामोशी के  जोर से
आँखों की कोरों पर
बूँद छलक जाती है
सुलगती है सांसें
चारो पहर रात दिन
दर्द की स्याही चेहरे पर
यूँही तो नहीं उभर आती है
झटक कर दूर करते है
तेरा साया तेरी यादें
तस्वीर मेरी अक्सर
मुझपे ही बिफर जाती है 

Thursday, June 23, 2011

उदासी

उसकी उदासी बेहद संक्रामक है ,वो गहरी उदास आँखों वाला लड़का जब भी क्लास में अपनी सीट लेता ,उसकी आँखों की उदासी मेरी भी आँखों में भी उतर आती ,जब मुस्कुराता होगा तो कैसा दिखता होगा ये सवाल मुझे और जाने किस किस को परेशान करता होगा ,हिम्मत भी नहीं होती की सामने जाकर पूछ लूं ,पर कुछ तो है उन उदास आँखों  में जो खुद से जुदा नहीं होने देती,नहीं नहीं अगर आप सोच रहे हो मुझे उससे प्यार है तो आप गलत हो मेरी ये बेचैनी प्यार की नहीं बल्कि उत्सुकता की है ..किसी रहस्य को जानने की ,ऐसा क्या है जीने उसके चेहरे पर सदा के लिए अपना मकान बना लिया है .......
उसका कोई दोस्त भी नहीं जो कुछ पता चले ,जब निगाह मिलती है तो उनमें इस कदर अजनबीपन पसरा रहता है की मेरी निगाह कतरा कर वहाँ से लौट आती है,एक दो बार आवाज़ सुनी है उसकी ,मीठी है बार कम बोलता है ना तो उससे भी अंदाजा लगाना मुश्किल है,मैंने कितनी कहानियों को उसके इर्द-गिर्द बुन लिया ,या अपनी कहानियों में उसे ले जाकर फिट करने की कोशिश की पर कहानी का अंत क्या करू ..एकतरफा अंत करना अन्याय नहीं होगा क्या किरदार के साथ ,अब आपको फिर लगने लगा मुझे उससे प्यार है ,अरे नहीं भाई ,वो मेरी कहानी का एक पात्र है अब उस पर निगाह नहीं रखूंगी तो कहानी के साथ न्याय कैसे करूंगी ...
आज कई दिन क्र बाद वो वापस क्लास में आया है अजीब सा लग रहा है ....अजीब हाँ उसके चेहरे पर चमक और मुस्कान दोनों है हाँथ में मिठाई का डिब्बा सब आश्चर्य से देख रहे है उसको पहली बार खुश देखा है ,उसकी मंगेतर एक साल पहले कोमा में चली गई थी दुर्घटना के बाद आज होश में आई है ..उसकी आँखों में उदासी दूर दूर तक नहीं है चमक है ...
मिठाई मुह में रखते ही अचानक अपनी आँखे कुछ गर्म सी लगने लगी आइना देखा तो ....आँखों में कुछ था ... मैंने कहा था ना उसकी उदासी संक्रामक है ..

Thursday, June 16, 2011

मिथ्या देव

 
सहज है ना 
थूक देना किसी पर
आक्षेप लगाना
अकर्मण्य होने पर
कहना तू व्यर्थ है
जीवन बोझ है तेरा
क्षणभर में
धूसरित करना
किसी का अस्तित्व 
अपमानित करना
दिखाता है 
कुंठाओं का बोझ
ढो रहे है सब
आत्मग्लानि छुपा
पोषित कर अंतर्पशु को
करते है आदर्श जीवन
का दिखावा
श्रेष्ट सिद्ध कर स्वयं को
बन बैठते है
आज के देवता
मिथ्या देव

Wednesday, June 8, 2011

कुछ पल यूँही

(१)
किसी का खरीदूं
अपना बेच दूं
ज़मीर का सौदा
इतना आसान है क्या
(२)
सारे बड़े सम्मानित
उद्योगपति नेता अभिनेता
पहले आइये पहले पाइए
नया पता "तिहाड़"
(३)
भगवा हो या सफ़ेद हो
भ्रष्ट हो या नेक हो
खून पसीना तो
हमारा ही बहाते है
पाँव रखते है
हमारे शीश पर
स्वयं शिखर पर
चढ़ जाते है
(४)
हे स्विस बैंक
अकाउंट धारी
सौ तालो में बंद
सम्पति तुम्हारी
नीद भूख प्यास
सब तुमने हारी
(५)
हाय धरती पुत्र
कैसे चैन से सोते हो
खुले आकाश के नीचे
छोड़कर अपनी सारी सम्पति
जो तुमने कमाई है
हड्डियां जलाकर अपनी

Thursday, June 2, 2011

माचिस की डिब्बी

मई के महीने में शीत लहर सी दौड़ गई ...अन्दर तक काँप गई वो  नहीं वो नहीं हो सकता यहाँ  क्या कर रहा है .... क्या कशमकश है जिसकी एक झलक देखने को सारी दोपहर खिड़की पर गुज़ार देती थी लू के थपेड़े भी ठन्डे मालूम पड़ते थे आज उससे सामना होने के अंदेशे से कलेजा मुह को आने लगा है.... किसी अनहोनी कि आशंका से वो घबरा उठी.
 हे भगवान् वो  ना हो .... उसके  के होंठ बुदबुदा उठे , पहली बार अपनी सहेली दिशा के घर मिली थी उसकी  बुआ का बेटा था गर्मी की छुटियों बिताने, पहली नज़र में  कुछ अजीब सा लगा था पर जब उसने मुस्कुरा कर देखा तो आँखे और दिल दोनों उसके पास कब ट्रांसफर हो गए पता ही नहीं चला ... कितनी दोपहर दोनों साथ रहते एक दिन जब बातों बातों में  उसने  हँसते हुए धीरे से हथेली दबा दी थी पूरी कि पूरी पसीने से भीग गई थी ...बस चिट्ठियों का सिलसिला चल निकला ...माचिस की डिब्बी में सात तह में मुड़े ख़त ...उस दौर में उन खतों से ज्यादा कुछ भी कीमती नहीं था ..पर जला कर फ्लश करने पड़ते थे पर उससे पहले हज़ार बार चूमे जाते ....
उसके जाने के बाद दिशा को हमराज़ बनाया ...
अब उसकी चिठियाँ किसी और  के पते से उसके  के हांथो तक आती  .... हर शब्द नए सपनो तक ले जाता ..आँखे कुछ मुंदी और कुछ खुली सी रहती हर वक़्त हलकी हरारत सी ...पर इलाज करने वाला तो बहुत दूर बैठा था ..फोन पर बात ना करने का फैसला हम दोनों का ही था और चिट्ठिया जलाने का भी .... इस दफा गर्मी की छुटिया कुछ देर से आई या साल बहुत धीरे बीता निगाहें किसी ऐसे को ढूंढ रही थी जो वहां नहीं था ..... पर वो आया अभी भी उतना ही मासूम लग रहा था और वही मुस्कराहट जिसने मुझे खुद को खोने पर मजबूर कर दिया था ...
उसने फरमान भेजा ..मिलना है ..
पर कहाँ ?उसका  सवाल था
जहां तन्हाई मिले .... उसने मुस्कुरा कर कहा
दो लोग एक साथ कभी तन्हा नहीं होते .. और तन्हाई वो सेफ नहीं ...वो मुस्कुरा दी
तुम्हे किससे डर लगता है ...मुझे से या मेरे साथ तन्हाई में मिलने से
मुझे खुद से डर लगता है वो खिलखिला दी... पर पता नहीं क्यों वो खुद इस डर को जीना चाहती थी पिछले एक साल कई बार वो तन्हाई में मिलना चाह रहा था हर ख़त में पूछता था आज उसकी बे-ताबी उसकी आँखों से साफ़ झलक रही थी
 वो जब मिले तो जाना ख़त दर ख़त दोनों का रिश्ता कितना मज़बूत हो चुका है दोनों असहज थे ..फिर सहज हुए फर असहज हुए ... उसके बालों से गुलाब की  भीनी महक आ रही थी ... कुछ देर बाद वो महक उसके वजूद का हिस्सा बन गई ..
ना फूल सदा रहते है ना खुशबू ...उसका रिश्ता तय हो गया बहुत रोई ..गिड़गिड़ाई  किसी तरह उसको फोन किया ...
"नहीं तुम ऐसा नहीं कर सकती ..मैं अभी ट्रेनिंग पर हूँ ६ महीने नहीं आ सकता"
"मैं घर वालों को नहीं समझा सकती"
"मैं तुम्हारे ख़त तुम्हारे ससुराल पोस्ट कर दूंगा ,अगर मेरी नहीं तो किसी कि भी नहीं "
प्यार, यादें ,मायका सब छोड़ कर जाना पड़ा ..और रमते रमते रम गई .... जो नहीं मिला उसका क्या गम करे जो मिला वो भी तो बुरा नहीं ...
आज २ साल बाद खुमारी ,खुशबू ,तन्हाई  ,माचिस की डिब्बी और उसमें दबे ख़त सब ज़िंदा हो गए ...
वो सामने खड़ा था और शायद पहचानने कि कोशिश कर रहा था ... एक कसक सी आँखों में उतरी फिर अजनबी सन्नाटा  पसर गया ... उसने देखकर भी नहीं देखा ...बड़ी देर तक उसकी धड़कन तेज़ रही ....
आज दो दिलो ने वाकई सन्नाटे को देर तक सुना