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Friday, January 28, 2011

शायद तुम्हारी दादी भी यही कहानिया सुनाती होंगी


कोई तो कहे की मेरे
ख्वाब सारे सच है
चाँद पर बुढ़िया
मौत के बाद बने
तारे सच है
होते है उड़ने वाले
कालीन कहीं पर
राजकुमारी के बाल
सच में लगते है
ज़मीन पर 
चूमते ही प्रिंस के
जागती है राजकुमारी
किसी बाग़ में अब  भी
खेलती है परिया सारी
शायद मेरे बचपन
के साथ गुम हो गए 
मेरे तकिये के नीचे से
सपने चोरी हो गए
किसी और को भी
मन भाती होंगी
शायद तुम्हारी दादी भी
यही कहानिया सुनाती होंगी

Tuesday, January 25, 2011

तिरंगा

आज जब ऑफिस में छोटा सा तिरंगा दिल के पास लगाया तो कुछ ऐसा अनुभव हुआ ...खून थोडा और गर्म लगा और धड़कन  की रफ़्तार और तेज़ महसूस हुई, कई दिनों से समाचार पढ़कर ऐसा लग रहा था क्यों तिरंगा फ़हराने पर लड़ाई हो रही है ...पर आज जब तिरंगा दिल के पास लगा तो महसूस हुआ ये सिर्फ तीन रंगों का झंडा नहीं है और भी बहुत कुछ है ... इसको पहनने का सौभाग्य सबको नहीं मिलता ...और मरने के बाद तिरंगे में लिपटने का सौभाग्य भी सबके नसीब में नहीं होता .
आम भारतीय की तरह मेरे लिए भी स्कूल छूटने  के बाद २६ जनवरी और पंद्रह अगस्त छुट्टी के दिन ही रहे है ..... पर पता नहीं आज ऐसा क्यों लग रहा है शायद इस मानसिकता से बाहर निकलू  और सभी को शुभकामनाये दूं ...क्यों नहीं इस दिन को दिवाली या ईद की तरह मना सकते ,क्यों नहीं गले मिल बधाई दे सकते अपने गणतंत्र के लिए ...
जानती हूँ बहुत निराशा है ,भ्रटाचार है , अन्याय है और बहुत बेबस से है हम पर ...जब देश गुलाम था तब भी ऐसा ही माहौल रहा होगा ..तब दुश्मन बाहर से आया था उसे खदेड़ दिया ..पर आज के दुश्मन हमारे बीच ही बैठे है ..मुश्किल है बहुत ही मुश्किल पर कहीं तो इस रात की सुबह होगी ...

Monday, January 24, 2011

आकर्षण

(वर्जित की कामना  ..मानव मन की चाह रही है ...बस यही कहती है ये कहानी ...इसको एक बार फिर पोस्ट कर रही हूँ)

ये तन ऐसा है जो मन के हिसाब से चलता है पर दिमाग की बिलकुल नहीं सुनता, आज मेरा मन पता नहीं क्या क्या सोच रहा है शादी के आठ साल बाद आज ये इतना बेचैन क्यों है ,कितनी खुशहाल ज़िन्दगी चल रही है घर परिवार भरा पूरा है, ऐसा कुछ नहीं जिसकी कमी हो ,प्यार करने वाला पति दो प्यारे प्यारे बच्चे, बचा समय में घर पर पास के बच्चों को पेंटिंग और क्राफ्ट सिखा लेती हूँ, पूरे हफ्ते सब अपने में व्यस्त रहते है और रविवार को सारा दिन मस्ती...मेरी ज़िन्दगी ऐसी ही चलती रहती अगर मेरी मुलाक़ात इनके बचपन के दोस्त वैभव से नहीं होती....








वैभव और उसकी पत्नी मेधा ट्रान्सफर होकर लखनऊ आये तो उन्होंने इनसे संपर्क किया , अपने बचपन के दोस्त को करीब पाकर ये भी बहुत खुश थे, तीन दिनों में उनकी शिफ्टिंग और सब कुछ सेट हो गया, दोनों का स्वभाव बहुत अच्छा था, हमारा उनसे मिलना अक्सर होने लगा,बच्चों का मन भी उनके बेटे विशाल में रम गया......





मैंने और मेधा ने लगभग सब कुछ बाँट लिया अपनी रुचियाँ अपने सपने ,अपने विचार वैभव और ये भी हमारी बातों में बहुत रस लेते...दिन बीते होली आ गई, हम सारे होली की प्लानिंग करने लगे बच्चे तो हद से ज्यादा उत्साहित थे ,हमारे घर में होली का कार्यक्रम रखा गया , सुबह सुबह सब एक दुसरे के रंग लगाने में लग गए,मैंने मेधा को रंग लगाया और होली की बधाई दी,फिर मैं वैभव को रंग लगाने बड़ी और मैंने उनके गालों पर रंग मॉल दिया फिर क्या था वैभव और इन्होने मिलकर मुझे बुरी तरह से रंग लगाया..रंग लगवाते हुए अचानक मुझे वैभव का स्पर्श कुछ अजीब सा लगने लगा, मैं सहज नहीं हो पा रही थी मैंने वैभव की तरफ देखा तो उसकी आँखों में कुछ अजीब सी चमक थी......तभी बच्चे आ गए और हमारा रंग लगाने का कार्यक्रम ख़त्म हो गया...





होली तो चली गई पर अकेले में मुझे वो स्पर्श अचानक याद आता और मेरे मन में वैसी ही गुदगुदी होती जैसी शायद इनके पहले स्पर्श से हुई थी...वैभव अब भी आते पर मैं अब उतनी सहज नहीं रह पाती...उसकी आँखों में मेरे लिए आकर्षण साफ़ दिखता मेरे जन्मदिन पर मुझे हाँथ मिलाकर विश करते समय उसने मेरा हाँथ ज़रा जोर से दबा दिया और सर से पाँव तक मैं सिहर गई..





मेरे होंठों पर एक रहस्यमयी सी मुस्कान हमेशा रहने लगी, हमारी विवाहित ज़िन्दगी में जो ठंडापन आ रहा था वो कुछ कम होने लगा..मैं जब इनको स्पर्श करती या ये मुझको बाँहों में लेते तो मेरे मन में अचानक वैभव की छवि आ जाती और मैं और जोश के साथ इनसे लिपट जाती, ये मुझे छेड़ते क्या बात है आजकल तुम बदली बदली सी लगने लगी हो...मैं अपने मन में भी वैभव के लिए आकर्षण महसूस कर रही थी..दिमाग कह रहा था "क्यों अपना बसाया परिवार उजाड़ रही है " पर दिल ओ सपने बुन रहा था "इसमें बुराई क्या है किसी को मैंने बताया थोड़े ही है".........





मन हमेशा से ऐसा पाने को लालायित रहता है जो वर्जित हो मैंने कितनी बार कल्पना में अपने को वैभव की बाहों में देख लिया था और मन का चोर कहता था अगर ये सच में हो गया तो कैसा रहेगा,क्या वैभव भी ऐसा ही सोचते है मेरे बारे में ....





क्रिसमस की छुटियों आ गई और हमदोनो परिवारों नें मनाली जानें का कार्यक्रम बना लिया...सच कहूं इनके साथ जाने से ज्यादा मेरा मन वैभव के पास होने के एहसास से खुश था पैतीस साल की उम्र में मुझ में सोलह साल की लड़की सा अल्हडपन आ गया था,सारे रास्ते हम हंसी मज़ाक करते गए बीच बीच में वैभव मुझपर एक प्यार भरी निगाह डाल देता,...दोनों शायद अपने अपने दिल के हांथों मजबूर हो रहे थे, और इस सब में ये भूल बैठे थे की हमारे साथ हमारे जीवन साथी भी हैं ,जो शायद इस बदलाव को महसूस कर रहे थे....





मेधा बहुत समझदार थी, एक स्त्री होने की वजह से उसकी छठी इन्द्रिय ज्यादा सक्रिय थी, शाम को ये और वैभव जब बच्चों को झूले पर ले गए तो मैं और मेधा अकेले बातें करने लगे,





मेधा बोली " नीतू बहुत ठण्ड हो रही है इससे अच्छा हम लखनऊ में ही रहते "





मैंने उसकी बात को मज़ाक में लेकर बोला "क्यों क्या मज़ा नहीं आ रहा ..इतना अच्छा मौसम इतना सुकून मेरा तो यहाँ से जाने का मन ही नहीं कर रहा लगता है बस समय यहीं रुक जाए "





"यही अंतर होता है नीतू किसी को एक एक पल भारी सा लगता है और किसी के लिए समय के पंख लग जाते है " मेधा ने दार्शनिक से संदाज़ में बोला





"तेरे मन में क्या है मुझको तो बता सकती है " मैंने अपने मन के चोर को दबा कर पूछा





"नीतू मैं थोड़े समय से वैभव में बदलाव महसूस कर रही हूँ, मेरा भ्रम भी हो सकता है,मुझे कभी कभी लगता है जैसे ये मेरे साथ होकर भी एरे साथ नहीं है " मेधा के गेहुएं चेहरे पर चिंता की लकीर खीच गई





मेरा चेहरा फक पड़ गया ऐसा लगा बीच बाज़ार में निर्वस्त्र हो गई हूँ ,अबी तक दिमाग की बातों को दिल सामने आने नहीं दे रहा था पर अब दिमाग दिल पर हावी होने लगा " अगर मेधा नें वैभव में परिवर्तन महसूस किया है तो इन्होने भी तो महसूस किया होगा " मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही थी की मैं मेधा से निगाह मिलाऊं .





"मैडम होटल चलें बहुत थक गया हूँ " सामने से इन्होने मुस्कुराते हुए कहा "तुमको क्या हुआ " इन्होने मेरा उतरा चेहरा देखकर पूछा "





"मैं भी बहुत थक गई हूँ " मैंने सकपका कर जवाब दिया





मयंक सो गए पर मेरी आँखों से नींद तो कोसों दूर थी "मैं क्या करने जा रही थी ,अपना पति ,अपने बच्चे अपनी दोस्ती सब कुछ इतने सारे रिश्ते एक पल के आकर्षण पर दांव पर लगा रही थी " मेरी आँखों से आंसू बह निकले और मैंने अपने पास लेते हुए मयंक को देखा जो बच्चों जैसी निश्तित्ता के साथ सोये हुए थे अचानक मैं माक से लिपट गई ,मयंक नें मुझे रजाई में खीच लिया और मैं उनके सीने से लग कर सो गई .....





सुबह जब आँख खुली तो मन हल्का हो चुका था आसमान के साथ मन से भी बादल छंट चुके थे, मुझे सुकून था मैंने अभी कुछ खोया नहीं था अब मुझे वैभव को भी उस आकर्षण से बाहर निकालना था जिसके चलते हम दोनों अपने रिश्तों में ज़हर घोलने चले थे....





"आज स्कीइंग करने चलते है " वैभव नें मेरी तरफ देखते हुए कहाँ बच्चे भी हाँ में हाँ मिलाने लगे





"अगर आप लोगों को प्रॉब्लम ना हो आप लोग बच्चों को लेकर चले जाओ, आज हमारा मूड होटल में ही रहने का है" मैंने रोमांटिक अंदाज़ में मयंक के गले में बाहें डालते हुए कहा.





"आप अपना सेकंड हनीमून मनाइए बच्चे हमारे साथ चले जायेंगे, मयंक आज नीतू मैडम मूड में है ज़रा संभल कर " मेधा ने मुस्कराते हुए अपनी दाई आँख दबा दी...





मयंक,मेरे और मेधा के ठहाके गूँज उठे और शायद वैभव भी मेरा इशारा समझ गया और मुस्कुरा दिया...





Tuesday, January 18, 2011

उसकी आँखें


उसकी आँखें
गहरी आँखें
दरवाजे पे
ठहरी आँखे
बरस बीते
अबतक सीली
तारो सी
रुपहली आँखें
दिलतक आई
मैंने पाई
प्यार भरी
रसीली आँखें
आँखों में
अबतक ज़िंदा है
दर्द पगी
पनीली आँखें 


 

Wednesday, January 12, 2011

क्षणिकाए

(१)
एक का दर्द
दूजे का तमाशा है
लोकतंत्र की
यही भाषा है
(२ )
एक हाँथ में छाले
दूजे में प्याले है
वाह ऊपर वाले
तेरे खेल निराले है
(३)
वोट लिया
फिर खून पिया
फिर बोटी नोची
फिर खाल खींची
कहीं देखी है
जनसत्ता ऐसी
(४)
बुजुर्ग घर में
औरत शहर में
बच्चे स्कूल में
सुरक्षित नहीं


Tuesday, January 11, 2011

पीला दुपट्टा

१००% इस बार प्यार के लफड़े में नहीं पडूंगा ...अपने से मानो पक्का वादा कर रहा था वो  , पर इस वादे को टूटने में ३० सेकेण्ड से भी कम समय लगा ...जब पीला दुपट्टा लहराती वो पास से गुज़र गई ...लगा जोर से चली हवा से खेत  में खड़ी सरसों की फसल झूम उठी हो ....दिल इतनी जोर से धड़का की बस यही आखिरी पल है इसके बाद मैं और दुनिया दोनों ख़त्म ..निगाह उसकी पीठ पर तब तक चिपकी रही जब तक वो पूरी काया से एक पीले बिंदु में नहीं बदल गई .... कितनी खराब आदत है मेरी ..अगर किसी को देखता हूँ तो इतना डूब जाता हूँ की सामने वाले को एहसास होता है घूरने का ..
पर मैं घूर नहीं रहा होता ....कई बार झिडकी ...डांट खाने के बाद भी ये आदत सुधरती नहीं .... ये लडकिया कितनी रंगों से भरी होती है ..कई बार लगता है कुदरत के सारे रंग कितनी सहजता से लपेट लेती है अपने तन पर ...और हिस्सा बन जाती है प्रकृति का .
सावन में हरा ...बसंत में पीला ...और करवाचौथ में लाल हर रंग मौसम के साथ ... शायद हर दिन उत्सव सा मनाती है....
वैसे भी शायर आधे पागल होते है ..हर बात में रस और कविता बुन लेते है ..जबसे मेरे क्लास की लड़कियों को मेरे शायर होने का पता चला है बुरा नहीं मानती ..कहती है लिखने के लिए प्रेरणा चाहिए जब तक तुझे परमानेंट प्रेरणा नहीं मिलती तब तक ... ऐसे ही चला ...
बस कोई मुझे seriously लेता ही नहीं ... अगर इज़हार-ए-इश्क  करता हूँ तो मज़ाक  समझ लेती है ...
और मैं हंस पड़ी ..
वो बोला देखा तुमने भी मज़ाक में लिया ना मेरी बात को ..
१००% इस बार प्यार के लफड़े में नहीं पडूंगा

Monday, January 3, 2011

उफ़ ये अलसाई सी सुबह !


एक अलसाई सुबह
गर्म रजाई सी सुबह
जब छेड़ा था तुमने
कितना शरमाई थी सुबह
लट को हटाया जब  फूंक से
गालो पर उभर आई थी सुबह
माथे पर तेरे चुम्बन से
किस्मत पर इतराई थी सुबह
किसी के आने की आहट से
तकिये के नीचे दबाई थी सुबह
कितनी हडबडाकर  तुमने
गालो से मिटाई थी  सुबह
 नए साल में जाने से
थोडा हिचकिचाई थी सुबह
लगी जब तुम्हारे गले
मेरे मन भाई थी सुबह
उफ़ ये अलसाई सी सुबह !