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Friday, December 23, 2011

तुमको मेरी याद आएगी ?


कुहासे की शीतल छुअन के साथ
साँसों की सुलगी  तपन के साथ
ये रुत भी बीत जायेगी
तुमको मेरी याद आएगी ?

चाय की चुस्की के साथ
बर्फीली हवा की घुड़की के साथ
जब सन्नाटी रात सताएगी
तुमको मेरी याद आएगी ?

गुलाबी से मौसम नीला होगा
गालो का रंग जर्द पीला होगा
आँखे भाप से धुन्ध्लायेगी
तुमको मेरी याद आएगी ?

Friday, December 16, 2011

बड़ी वफ़ा से निभाई तुमने

लिखूं क्या तुम्हारे बारे में ,कोई इतना बे-वफ़ा कैसे हो सकता है ..कितना कोसती हूँ तुम्हे जानकर शायद किसी पल नाराज़ होकर कह उठोगे "कुछ तो मजबूरिया रही होंगी ,कोई यूँही तो बे-वफ़ा नहीं होता ".. और मैं कहूँगी कम से कम शेर तो अपना use किया करो ..

पर तुम तो दुनिया की भीड़ में इस तरह गायब हुए जैसे कभी मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा थे ही नहीं ...माना मैंने भी तम्हे काट फेंका एक  पल में पर तुम नाखून तो नहीं थे ना ..के ना दर्द होता ना अफ़सोस ..जहाँ से काटा था तुमको वो हिस्सा आज भी दुःख रहा है ..नहीं जानती थी ..एक पल का आवेश ज़िन्दगी भर का दर्द दे जाएगा 
..सोचा था तुम्हारे बिना जीना आसान रहेगा ..आखिर ऐसा क्या है तुममें के तुम्हारे बिना मैं रह ना सकूं ..पर हर सुबह मुझे मेरे खालीपन का एहसास दिलाती है ..... माना मैं गलत थी पर क्या इतनी गलत के मेरी गलती तुम माफ़ ना कर पाओ..हर बार भ्रम होता है तुम मुझे देख रहे हो ...पर तुम कहीं नहीं होते .... सिवा मेरे दिल के ..
ये आग मैंने खुद लगाईं और मैं ही सुलग रही हूँ राख होने के इंतज़ार में पर पता नहीं कैसी लकड़ी है ये देह ये आत्मा सालो से सुलग रही है ..तुम्हारी दूरी की आंच ना बुझ रही है ना कम हो रही है ,


अक्सर लगता है तुम शायद अपनी दुनिया बसा चुके होगे ..प्यारी सी बीवी ..दो बच्चे सब होंगे तुम्हारे पास ...पर दिल डरता है तुम्हारे सुकूं से कहीं एक उम्मीद आज भी बाकी है के तुम भी मेरा इंतज़ार कर रहे होगे ..ये अहम् की दिवार इतनी बढ़ गई के मैं इस पार रह गई और तुम शायद उस पार ...लोग कहते है दुनिया बहुत छोटी है ...अक्सर लोग मोड़ों पर मिल जाया करते है पर तुम किस मोड़ पर रुक गए जहाँ से मैं तुम्हे ना देख पा रही हूँ ना ढूंढ पा रही हूँ
आखिर मुझमें ऐसा भी तो कुछ नहीं जो तुम लौट कर आ जाते या फिर जाते ही ना....... 

Friday, November 25, 2011

प्यार के पापकार्न

आजकल जहाँ से गुजरते है एक सोंधी सी खुशबू ठिठकने पर मजबूर कर देती है लगता है कहीं ना कहीं कुछ पापकार्न पक रहे है ये मक्के वाले नहीं ,जी ये तो प्यार वाले पापकार्न है ,छोटे शहरों में जो मोहल्ले की छतों पर,पार्क के कोनो में हुआ करता था आज वो हर सड़क और गली ,मॉल और पार्क ,कैफे और बाज़ार में सामने दिखता है .

मारल पुलिस प्लीज़ माफ़ करो मुझे तो ये गुलाबी मौसम बहुत  पसंद है , जब हवा में सिर्फ प्यार छाया हो .

माना छतें और शामें आज की तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी से माइनस हो चुकी है पर दिल तो वही है ना और दिलदार भी साथ ही है, फिर ज्यादा कुछ करना भी तो नहीं है,बस एक कॉम्प्लीमेंट ,एक गुलाब ,एक कप चाय या छोटी सी वाक. सारा नज़ारा बदल देगा .सब सामने ही है पर रोज़ कि व्यस्तताओं  नें आँखों  पर काला चश्मा लगा दिया है 

 सिर्फ युवा  ही नहीं आज हर जोड़ा खुलकर अपने प्यार का इज़हार करता है,चाहें जन्मदिन हो ,valentine डे या यूँही , आखिर बुराई क्या है ,जिस जीवन साथी ने हर सुख दुःख में आपका साथ दिया है अगर उसका हाँथ थाम कर दुनिया के नज़ारे देखने निकल पड़े तो भवें क्यों तिरछी क्यों की जाए,चाहें बरसात के मौसम में एक साथ भुट्टे का मज़ा लेना हो या खोमचे पर खड़े होकर चाट खाना और अपनी "प्रियतमा" को गोलगप्पे खाते हुए देखना.

कुछ द्रश्य जो आज से कुछ साल पहले तक शायद दीखते नहीं थे आज आम है .ऐसे दृश्य हमें एहसास दिलाते है ज़िन्दगी सिर्फ भागने के लिए नहीं है ,कुछ पल सुकूं से गुज़ारने के लिए भी है,किसी रिश्ते में बंधने से पहले वो पल जैसे भी हो निकाले जाते थे और जिए भी जाते थे डर था ना अपने साथी को खोने का ,और आज जब वो साथ है तो वक़्त की कमी का रोना क्यों ?

तीन घंटे पिक्चर हाल में गुजारना कुछ लोगों को पैसे या टाइम की बर्बादी लग सकता है पर कोई बताये सिर्फ साथ रहने के लिए अपनी व्यस्त शाम में से तीन घंटे कौन निकाल पाता है, कितने लोग है जो शाम को जल्दी आकर कहते है चलो तैयार हो जाओ कहीं घूम कर आते है , आसमान में बादल छाते  है ,बरस जाते है जब तक हम आप बाहर निकलते है तब हमें सिर्फ कीचड और ट्रेफिक जाम याद आता है,
 
आज कोई बुजुर्ग जोड़ा जब मॉल में एक कॉफ़ी टेबल पर एक साथ सुकून से काफ़ी का मज़ा ले रहा होता है तो कितने युवा जोड़ों के दिल में यही उम्मीद जगाती है काश हमारा बुढ़ापा भी ऐसे हाँथ में हाँथ डालकर बीते एक दुसरे के साथ. अजीब बात है सबको रश्क है टीनएजर युवाओं से रश्क कर रहे है "जब हम Independent  होंगे तो जैसे चाहें एन्जॉय करेंगे ", युवा अधेड़ों से रश्क करते है "यार हम भी सेटल   हो जाए फिर लाइफ जियेंगे " और बुजुर्ग पीछे मुड कर देखते है और सोचते है काश ..थोडा वक़्त अपने लिए भी निकाला होता . बस यूँही फिसल जाते है हसीं लम्हें रेत कि मानिंद हांथों से
बड़ों के लिहाज के चलते ऐसे पलों का मज़ा सिर्फ पहाड़ों पर छुट्टियों के दौरान ही उठाते थे ना ,आज वीकेंड वही मौक़ा देता है हर हफ्ते आप पर है आप कितना एन्जॉय कर पाते है ,प्यार तब भी था प्यार अब भी है बस पहले जताते नहीं थे अब छिपाते नहीं.
भले ही युवा जोड़ों को गुटर-गूं करते देख दिल में टीस उठे कभी उनको बे-शर्म भी कह दे पर वो टीस खुद वो लम्हे ना एन्जॉय कर पाने की होती है, तो रोका किसने है ज़िन्दगी तो यूँही भागती रहेगी जब तक जोड़ों के दर्द आपको धीमे चलने के लिए मजबूर नहीं कर देंगे क्या पता तब वक़्त हो ,पैसा हो पर साथी ना हो ,लम्हे तो चुराने ही पड़ेंगे ना ,

ये प्यार के पोपकोर्न है आपके हाँथ थामने भर से खिल उठेंगे और अपनी सोंधी खुशबू से मजबूर कर देंगे कि बस एक रूमानी सा ब्रेक तो बनता ही है ना .

Tuesday, November 15, 2011

पाया है थोडा गंवाया बहुत ......

पाया है थोडा
गंवाया बहुत
ज़िन्दगी ने यूँही
सताया  बहुत
मुस्कान का टीका
माथे पे रखकर
आँखों को मेरी
रुलाया बहुत
आसमां की छत पे
लटका के चन्दा
पूनम की रातों ने
लुभाया बहुत 
यूँही छू बैठे
जुल्फें उनकी
भोर तलक हमको
सुनाया बहुत
हमराज़ बने
हमख्याल बने
निभाया तो कम
हाँ मिटाया बहुत
सहेजे जो सपने
जाया हुए
इंतज़ार ने उसके
जगाया बहुत
 

Saturday, November 5, 2011

तुम थोड़ी कम खूबसूरत नहीं लग सकती



क्या तुम थोड़ी कम खूबसूरत नहीं लग सकती ...उसने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा ..कह तो गया फिर मुस्कुरा कर बोला इसमें तुम्हारा क्या दोष इतनी सादगी में भी गज़ब ढाती हो, शायद तुम्हारे जैसे रूप को ज़माने से बचने के लिए परदे का चलन हुआ होगा ... तुम पर शायरी सवार हो रही है ये लो पेन और लिखना शुरू कर दो ..मुझे नहीं समझ आती तुम्हारी सपनो की बातें वो खिलखिला दी .
सच में वैसे तो हर माशूक को अपना महबूब ज़माने से प्यारा लगता है पर वो थी ही पूरा चाँद उसके आते ही आसपास की सारी लडकिया तारों सी लगती और वो उनमें एक दम अलग से जगमगाती हुई .... एक दम धुली -धुली एक दम ताज़ा , पर उसका रुझान सिर्फ इस नाचीज़ शायर में था ..शायरी में बिलकुल नहीं , वो भविष्य की बातें करती और ये सपनो की ,ये कहती सपने बंद आँखों से देखे जाते है और उन्हें पूरा करने के लिए आँखे खोलनी पड़ती है .... अब इसे फितूर कहे या इश्क का सुरूर उसको ना समाज में आना था और ना आया ... दिन ,महीने फिर साल ...
आज वो दुल्हन बनी है सर से पाँव तक सजी हुई ...पूनम का चाँद जिससे निगाह चाह कर भी नहीं हट पा रही थी वो तोहफा लेकर स्टेज पर चढ़ा कुछ तो चुभा दिल में ..पर लबों पर मुस्कराहट उभर आई ..एक साथ चले थे दोनों पर मंजिल अलग अलग थी तो जुदा हो गए .... धीरे से उसके पास जाकर फुसफुसा उठा
"क्या तुम थोड़ी कम खूबसूरत नहीं लग सकती " ..और थोड़ी देर के लिए दोनों की आँखे धुंधली हुई और बचे हुए ख्वाब आँखे छोड़कर बह चले .....



Wednesday, October 19, 2011

देह से इतर

ना तुम देह से परे
कभी सोच पाए ना सोच पाओगे
पलटवार करोगे
जो खुद को कमतर पाओगे
ना दोगे स्थान बराबरी का
स्वयं अर्जित किया
तो खीजोगे तिलमिलाओगे
तुम्हारे जन्म से
तुम्हारी वासनाओ तक
तुम्हारे पेट से लेकर
तृप्त अतृप्त इच्छाओं तक
निचोड़ोगे दबाओगे
पर देह से इतर जो मन है
उसे क्या जान पाओगे

Wednesday, October 12, 2011

माँ व्यस्त रहती है

वो सोच सोच कर रखती है
हर बात मुझे बताने के लिए
मेरे हां, अच्छा कहने  भर से
सार्थक हो जाता है उसका याद रखना
 
बात बड़ी या छोटी कोई फर्क नहीं
बस बात होनी चाहिए जिससे
वो सुन सके और कह सके मुझसे
थोड़ी ज्यादा देर तक

जबसे महसूस किया है उसने
मैं उसके हाल चाल पूछता हूँ
और वो मेरी तबियत पूछती है
और पसर जाता है सन्नाटा
 
दोस्तों के बीच जिस बेटे की बातें
ख़त्म नहीं होती घंटों तक
अपनी माँ से बात करने पर
विषय शब्द ढूंढें नहीं मिलते 
 
पर माँ तो सहेजती है हर घटना
हर विषय हर रंग और हर स्वर
जिससे एक फोन के कटने से
दूसरा फोन आने तक व्यस्त रहती है


Saturday, October 1, 2011

आप तो सुपरवूमन हो -हे देवी माँ



हे देवी  माँ सच्ची अब लिमिट की भी लिमिट क्रोस हो गई है या तो हमें दे दो अष्टभुजा या हम भी चले नौ दिन के अनशन पर, आपके सामने से हटेंगे नहीं, एक तो आपकी मोहिनी सूरत ऊपर से शेर और इतने सारे शस्त्र (लाइसेंस है क्या ?) कोई इम्प्रेस नहीं होगा तो क्या होगा, लाइन तो लगेगी ही ना ,आप तो सुपरवूमन हो और अपन ठहरे आम भारतीय नारी सुबह से  मशीन की तरह जो स्टार्ट होते है रात बिस्तर पर  उल्लुओं और झींगुर को गुड नाईट बोलकर सोने जाते है कई बार चौकीदार भी दांत दिखाता है "मेमसाब आप तो जाग ही रही है कहें तो मैं थोड़ी देर झपकी मार लूं ".  दिन भर की चढ़ी मेकअप की परत के साथ नकली मुस्कान को भी उतार कर किनारे रखते है ..अगले दिन सुबह सुबह फिर जो चिपकानी होगी होंठों पर ,.. इतना टाइम नहीं होता हमारे पास कि जवाब दे सके "क्या हुआ?" "चेहरे पर बारह क्यों बजे है ","तबियत  ख़राब है क्या ".  अजी सरदर्द ,कमर दर्द,एसिडिटी  ये सब तो खाली बैठे  लोगों के शगल है ये राजरोग भोगने और आराम से सबको सुनाने लगे तो पहुँच गए बच्चे स्कूल और पतिदेव और हम ऑफिस. हम नॉन-स्टॉप चलते है कितनी बार पानी पी पी कर भेजा (इंजन ) ठंडा करना पड़ता है ,सच कह रही हूँ माँ कई बार बंद करने की कोशिश की पर इमोशनल धक्के मार मार कर स्टार्ट करवा दी गई. कुछ नहीं तो अपना शेर की भेज दो कुछ दिनों के लिए कितना गुर्राते है सब एक बार दहाड़ देगा ना मेरे फेवर में तो बॉस से बिग-बॉस तक सबकी बोलती बंद. मां अपनी ट्रिक हमारे साथ भी तो शेयर करो कैसे सारे के सारे आपके सामने सर झुका देते है और कान पकड़ कर खड़े रहते है जबकि आप तो बस मुस्कुराती रहती हो कुछ कहती भी नहीं और यहाँ हमने बोलने को मुहं खोला वहां सामने वाला कान बंद करके निकल लेता है. कुछ तो मैजिक  करती ही हो आप की एक झलक  के लिए पहाड़ चढ़ जाते है नंगे पैर दौड़े आते है दारु -चिकन मटन सब छोड़ देते है , यहाँ तो कहते कहते कलेंडर की तारीखे बदल गई पर कुछ नहीं होता कभी कभी लगता है सुबह की चाय की तरह हमारी चक चक की भी आदत पड़ गई है. अरे आप तो मुस्कुराने लगी सोच रही होंगी कितनी शिकायत करती है ये लड़की पर क्या करूं आपसे नहीं कहूँगी तो किससे कहूँगी पर प्रोमिस कीजिये हमारे सारे अकाउंट (प्रोब्लेम्स वाले ) इसी साल सेटल करेंगी और सिर्फ खुशिया की कैरीफॉरवर्ड होंगे टेंशन ,दुःख और आंसू नहीं आपको छ महीने की डेडलाइन देती हूँ वरना अप्रैल में पक्का बैठ जाउंगी अनशन पर अब अन्ना शीतकालीन सत्र का वेट कर सकते है तो मैं क्यों नहीं . 
http://epaper.inextlive.com/12985/INEXT-LUCKNOW/29.09.11#p=page:n=15:z=2

 


Wednesday, September 28, 2011

मैं कुंदन हो जाउंगी



एक दिन पूरा तप जाउंगी
सच मैं कुंदन हो जाउंगी
जिस दिन तुमसे छू जाउंगी
हाँ मैं चन्दन हो जाउंगी
मीठे  तुम और तीखी  मैं
तुम पूरे और रीती  मैं
तुम्हे लपेटूं जिसदिन तन पर
मन से रेशम हो जाउंगी
नेह को तरसी नेह की प्यासी
साथ तुम्हारा दूर उदासी
फैला दो ना बाहें अपनी
सच मैं धड़कन हो जाउंगी
मंथर जीवन राह कठिन है
इन बातों की थाह कठिन है
तुम जो भर दो किरणे अपनी
सच मैं पूनम हो जाउंगी

Thursday, September 22, 2011

एक ख़त.....

डिअर X ,

तुम तो जानते ही हो  तुम से मेरा रिश्ता facebook से ही है , तुम्हारी हर बात स्टेटस अपडेट जैसी जिसे मैं पढ़ती ,गुनती और like  करती और एक दम से कमेन्ट भी कर देती हूँ ..तुम भी उस कमेन्ट पर अपना कमेन्ट करते हो और इसी तरह हम दोनों दुनिया से बे-खबर खोये रहते है  तुम्हे याद है ना जब हम आर्कुट पर थे कितना सताया था दुनिया ने ,मेरे तुम्हारे दिल की बातें गली गली डिसकस हुई थी मोहल्ले के चबूतरो से गाँव की चौपालों तक ..हर जानने वाला  हमारी ख़ास बातें आम कर रहा था उफ़ कितनी बदनामी ,तुम्हारी नीली शर्ट वाली तस्वीर चाह कर भी तुम्हे सेक्सी नहीं कह पाई वही ना दुनिया का डर ....
कितना मज़ा आता है ना दुनिया को दूसरों के प्रोफाइल में झाँकने में ,तसवीरें पलटने में ,एक से दुसरे ,दुसरे से तीसरे दोस्तों पर टाइम पास करने में, ये दुनिया दो प्यार करने वालों को कभी सुकून  से चैट नहीं करने देगी , मुझे कभी कभी डर लगता है कहीं तुमने भी तो दो प्रोफाइल नहीं बना रखे एक मेरे लिए और एक ...नहीं नहीं ऐसा सोचने से पहले पूरा facebook  हैक हो जाए ,सर्वर बैठ जाए ,सोशल नेट्वोर्किंग तबाह हो जाए ,क्या करूं मेरी फ्रेंडलिस्ट में दोस्त तो हज़ारों है पर कमिटेड तो मैं तुमसे ही हूँ ना, पता नहीं तुम्हे मेरे कुछ ख़ास दोस्तों से क्यों परेशानी होती है क्या तुम नहीं जानते वो तो सिर्फ टाइम पास है ..अब एक स्टेटस पर 40 -45 लिखे और कमेन्ट ना हो तो बताओ कैसे दिल लगेगा ,और तुम भी ना रहते कितने दूर हो क्या मैं जानती नहीं वो नासपीटी angel इन sky इसी ताक में रहती है के तुम कुछ लिखो और वो फट्ट से like कर दे ..हर वक़्त तुम्हे इम्प्रेस करना चाहती है ,पिछले हफ्ते उसकी जिस तस्वीर पर तुमने उसे "nice क्लिक" लिखा था उसका पोस्टर बना कर कमरे की दीवार पर लटका दिया है ,हिम्मत तो देखो ,सच कहती हूँ किसी दिन दिमाग खराब हुआ तो उसको फेसबुक की वाल पर बिना रस्सी लटका दूँगी , और R .I .P  भी लिखकर like  कर दूँगी ,अब तुम कहोगे मैं पजेसिव हो रही हूँ ,हाँ तो इसमें बुराई  क्या है ? जिससे सारे एकाउंट्स के paaswords  शेयर किये हो उससे इतनी भी उम्मीद करना बेमानी है क्या, मैं तुम्हारी और तुम मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा है मैं कोई स्टेटस  नहीं जिसे जब चाहा पोस्ट किया जब दिल में आया डिलीट कर दिया,खुदा ना करे वो दिन आये ,  प्लीज़ मेरे लिए अपनी privacy सेट्टिंग ओनली मेरे लिए कर दो ना प्यार में सब पब्लिक होना अच्छा नहीं होता. मेरा बस चले तुम्हारा शेयर का आप्शन ही disable कर दूं .

तुम्हारी

http://epaper.inextlive.com/12500/INEXT-LUCKNOW/22.09.11#p=page:n=15:z=1

Wednesday, September 14, 2011

कहो प्रिये क्या लिखूं

कुछ शब्दों के अर्थ लिखूं
कुछ अक्षर  यूँही  व्यर्थ लिखू
एक प्रेमकथा ,संवाद लिखू
संबंधो के सन्दर्भ लिखूं
इस जीवन का सार लिखूं
अंतर्मन का प्रतिकार लिखूं
नयनो में उपजा रोष लिखूं
या अपनों से  प्रतिशोध लिखूं
भस्म हुई वो निशा लिखूं
दग्ध ह्रदय की व्यथा लिखूं
हतप्रभ हूँ मैं और क्षोभित भी
मन मेरा है उद्वेलित भी
भेजूं मैं मेघ या पत्र लिखूं
प्रियतम प्रियतम सर्वत्र लिखूं

Tuesday, September 6, 2011

उत्सव मुझको प्रिय नहीं


उत्सव मुझको प्रिय नहीं
एकांत रुदन ही भाता है
भीगी आँखों से मेरा
अंतस धुल सा जाता है

भीड़  मुझे नरमुंड लगे
मित्र काग के झुण्ड लगे
परिचित चीलों गिद्धों  से
पहले कौन नोच खाता है

जितने आवरण मुख पर है
उतनी पीड़ा भीतर है
विद्रोह कष्ट  की ज्वाला से
मेरा स्व: जलता जाता है

उत्सव मुझको प्रिय नहीं

Tuesday, August 30, 2011

ईद ऐसी भी

जब भी ईद आती है तो जुबां पर  सेवईयों की मिठास उभर आती है और साथ में याद आता है डिग्री कालेज  जहाँ मैं  कंप्यूटर पढ़ा रही थी दिवाली पर एक बड़ा आयोजन किया था तो ईद पर उम्मीदें बढ़ गई थी स्टुडेंट्स की कुछ तो ख़ास होगा ...समझ में नहीं आ रहा था कैसे मनाये कुछ संकोच भी था काफी स्टुडेंट्स थे ..... ईद मनाने के नाम पर सिर्फ  सेवईयों और चाँद के अलावा कुछ भी नहीं पता था ,कंप्यूटर क्लास की फीस मात्र 80 /- रुपये थी हर वर्ग की छात्राएं थी ...जब कोई हल नहीं मिला तो छात्राओ से ही सुझाव मांगे गए और उनका उत्साह और जोश देखकर मानो हमारी सारी परेशानिया छूमंतर हो गई ... स्टुडेंट्स ने हमको सारी तैयारी से बरी कर दिया ईद मनाने का मौक़ा ज्यादातर स्टुडेंट्स को कभी नहीं मिला था तो वो भी बेहद उत्साहित थी ईद के एक दिन बाद का दिन तय हुआ ...जब हम पहुंचे क्लास का सारा फर्नीचर बाहर था ..फर्श पर दरी के ऊपर खुबसूरत फूलों और बूटों से सजी चादरें बिछी थी बोर्ड पर नमाज़ पढ़ती लड़की का स्केच था, सेवियों की मीठी मीठी खुशबू आ रही थी सब एक दुसरे से गले मिले और ईद की मुबारकबाद दी,कुछ छात्राओ ने ईद की अहमियत भी बताई संकोच के परदे हट रहे थे अब मौहोल बेहद सहज हो चला था ....सारी मुस्लिम छात्राए अपने घरों से सेवइया लाइ थी ... डिब्बे खुले पर हर डिब्बा अलग किसी में केसर ,कोई मेवे से भरा ,तो किसी में सिर्फ सेवइया, कुछ चेहरों में संकोच उभर आया ...फिर धर्मसंकट ईद में अगर एक दिल में भी कसक रह गई तो दिल में हमेशा खटकेगा .... तभी एक छात्रा एक बड़ा बर्तन ले आई और सारी सेवइया मिला दी ....कुछ निगाहें तल्ख़ हुई ,कुछ मायूस और कुछ में मासूमियत भरी मुस्कान बिखर  गई ......और वो ईद बेहद मीठी और यादगार ईद बन गई ... उसके बाद हर ईद पर सेवईयों को मिस करते है
आप सभी की ईद मीठी हो ...

Friday, July 29, 2011

सडको पर खर्च होती ज़िन्दगी


भले ही हमने सड़क पर जन्म नहीं लिया
और पले भी नहीं किसी फुटपाथ पर
पर बिता रहे है बेशकीमती हिस्सा ज़िन्दगी का 

चमकीली पथरीली काली सडको पर
खर्च करते हुए बे-भाव 

अपनी अलसाई सुबहें और धूसर शामें
काला धुँआ सोखते हुए फेफड़ों में

तकरीबन बहरे हो चुके है
सुन-सुनकर होर्न का चीखना
 तभी तो सड़क पर लहुलूहान
जिस्मों की चीखे नहीं सुनाई देती
सारे आवेग ,कुंठाए ,आक्रोश क्षोभ
रख देते है एक्सीलेटर पर
भागते चले जाते है दिशाहीन से
जाम में फसे हुए चिपट जाते है
प्रेत से आवेग और कुंठाए
 चीखते है बकते  है गालियाँ
मारने दौड़ते अनजान लोगों को
यही सड़क बन जाती है रणक्षेत्र
बलि होते निर्दोष असहाय
सड़क पार करते करते पार कर जाते है
अपने जीवन की रेखा

Friday, July 22, 2011

नंदलाल के संग

जय जय श्री राधे सरकार
जमुना जी के घाट पर अदभुत रचा प्रसंग
केश खोल राधा खड़ी नंदलाल के संग
चन्दन दतिया पकड़ राह्यों अलक सुलझाए
अतुल श्याम छवि देखकर राधे रही मुसकाय
कौतुक निरख  नंदलाल के गोपी भई निहाल

राधेरानी के केशन में  भले फसे गोपाल
अपनी माया डालकर सब जग रहा नचाय
ऐसे त्रिभंगी लाल को राधे रही सताय
चरण कमल में राख लो  "सोनल" की  अरदास
तव  सुमिरन मात्र मिटे जन्म-जन्म के त्रास .

Thursday, July 14, 2011

गूंगे बहरे लोग !!!


जाओ चेहरा धोकर 
शांत हो जाओ
तुम्हारा भी  लहू
नालियों में ही बहेगा
 २
नाक पर रखकर रूमाल
पार कर लो वो गली
जहाँ मांस के जलने की
सडांध अभी ज़िंदा है
आखिर अपने अन्दर
की सडन के साथ भी तो
जी ही रहे हो ना

नहीं सुने मैंने कोई धमाके कल रात
कई सदियों से मुझे  कुछ सुनाई नहीं देता
नहीं चीखे ना आहें ना रुदन ना कलपना
मेरी आँखों को दर्द दिखाई नहीं देता
४ 
नसे अब फड़कती नहीं
जवानियाँ  आई नहीं कौम पर
पत्थर से जड़ हो चुके है
तालिया बजा देते है मौन पर

पीढ़ी
दर पीढ़ी रीढ़ की हड्डी
गिरवी रखते रखते
देखो नई नस्ल
बिना इसके पैदा होने लगी

Thursday, July 7, 2011

बड़े मियाँ दीवाने

उम्र के उस मोड़ पर खड़े बड़े मियाँ अब आप नाम पूछोगे ,अमां यार रहने दो नाम जान कर कौन सा तीर मार लोगे बस आप तो इश्टोरी के मजे लो ,हाँ तो उम्र के उस मोड़ पर बड़े मियाँ  खड़े थे जहाँ जवानी छोड़ कर भागती है और बुढ़ापा अपनी ओर खींचता है और इंसान उसी लकीर पर तब तक खड़ा रहना चाहता है जब तक खड़ा रह सके ..पकते बाल पहले मेहँदी फिर हिजाब से रंगे जाते है ..महीन लकीरे दाढ़ी मूंछो से छुपाई जाती है ...हलके रंगों से गहरे रंगों की ओर फिर से दौड़ा जाता है .....और पड़ोस के जवान होते बच्चो को ध्यान से सुनकर ..नए शब्द और मुहावरे सीखे जाते है ...मतलब सींग तुड़ा कर ...समझ गए ना आप .

अब
बड़े मियाँ  तो अपने को स्मार्ट समझ रहे होते है और आसपास के बच्चे उनकी स्मार्टनेस देखकर ठहाके लगा रहे होते और नवयुवतिया समझने की कोशिश कर रही होती है "ये अंकल को हुआ क्या है ".  
बड़े मियाँ सोचते हाय हम इस समय जवान क्यों ना हुए इतनी रंगीन ज़िन्दगी तो हमारी जवानी में ना थी ,इतना खुलापन ,इतनी आज़ादी . अब बड़े मियाँ एक डोर पकड़ते है तो दूसरी हाँथ से छूट जाती है...इक चीज़ जो बड़े मियाँ की उम्र से ज्यादा तेजी से बढ़ रही है वो है उनका ईगो  गलती से एक हसीना (जिसपर ये फ़िदा थे ) अंकल कह कर निकल गई ..तो ईगो में आग लगनी थी तो लग गई पर फुकने से किसका भला हुआ है . आफिस में अपने टार्गेट हर रोज सेट करते आइये उनके टार्गेट देखे और समझे कोई फायदा नहीं टार्गेट धरे के धरे रह गए हिम्मत ही नहीं  जुटा पाए बड़े मियाँ
मीता- बहनजी टाइप, जिसने अपनी दुनिया अपनी चोटी में बाँध रखी   है अगर उसने अपनी चोटी खोली तो शायद भूकंप आ जाए .
रीता -जो दुनिया को अपनी जूती पर रखती है ,उसके द्वारा उच्चारित सुभाषित देल्ली बेल्ली को भी मात करते है .
अनीता -चालु चैप्टर जी इसी नाम से बुलाते है है उसे ,उसका कोई काम कभी नहीं अटकता और वो अपने साथ किसी को अटकने नहीं देती 


गीता -बेचारी मीता और अनिता के बीच का पात्र है मीठी होने की कोशिश में चिपचिपी हो जाते है और सब पीछा छुडाते नज़र आते है,अगर मीता के साथ रहती है तो परेशान और अगर अनिता के साथ तो महापरेशान .


सविता- इन २०+ कन्याओं में ये ४५  + महिला जो सामान भाव से सबसे मित्रता रखती है वो भी
बड़े मियाँके दौर से गुज़र रही है पर बेहतर तरीके से (इनकी कहानी फिर कभी ,कृपया याद दिला दीजिएगा )

अब बात आई
बड़े मियाँ की उनको आपकी सलाह की ज़रुरत है कौन सा टार्गेट सेट करे और क्यों ?


(सत्य घटना पर आधारित ,पात्रों के नाम काल्पनिक है और लय में रखे गए है , अगर किसी को यह पात्र अपने जैसा लगता है तो इसमें लेखक का नहीं आपकी उम्र का दोष है "टेक इट easy " }




Monday, July 4, 2011

स्वाहा !


स्वाहा !
दोष मेरे
कष्ट मेरे
भाव सारे
भ्रष्ट मेरे

पाप मेरे
श्राप मेरे
पीर मेरी
संताप मेरे

लोभ मेरे
मोह मेरे
नियति के
भोग मेरे

सारे संकट
सारे कंटक
मोह मेरे
शोक मेरे

स्वाहा !

Tuesday, June 28, 2011

सलवटें चेहरे पर

सलवटें चेहरे पर
साफ़ नज़र आती है
करवट बदलकर
जब रात गुज़र जाती है
दिल को निचोड़ते है 
ख़ामोशी के  जोर से
आँखों की कोरों पर
बूँद छलक जाती है
सुलगती है सांसें
चारो पहर रात दिन
दर्द की स्याही चेहरे पर
यूँही तो नहीं उभर आती है
झटक कर दूर करते है
तेरा साया तेरी यादें
तस्वीर मेरी अक्सर
मुझपे ही बिफर जाती है 

Thursday, June 23, 2011

उदासी

उसकी उदासी बेहद संक्रामक है ,वो गहरी उदास आँखों वाला लड़का जब भी क्लास में अपनी सीट लेता ,उसकी आँखों की उदासी मेरी भी आँखों में भी उतर आती ,जब मुस्कुराता होगा तो कैसा दिखता होगा ये सवाल मुझे और जाने किस किस को परेशान करता होगा ,हिम्मत भी नहीं होती की सामने जाकर पूछ लूं ,पर कुछ तो है उन उदास आँखों  में जो खुद से जुदा नहीं होने देती,नहीं नहीं अगर आप सोच रहे हो मुझे उससे प्यार है तो आप गलत हो मेरी ये बेचैनी प्यार की नहीं बल्कि उत्सुकता की है ..किसी रहस्य को जानने की ,ऐसा क्या है जीने उसके चेहरे पर सदा के लिए अपना मकान बना लिया है .......
उसका कोई दोस्त भी नहीं जो कुछ पता चले ,जब निगाह मिलती है तो उनमें इस कदर अजनबीपन पसरा रहता है की मेरी निगाह कतरा कर वहाँ से लौट आती है,एक दो बार आवाज़ सुनी है उसकी ,मीठी है बार कम बोलता है ना तो उससे भी अंदाजा लगाना मुश्किल है,मैंने कितनी कहानियों को उसके इर्द-गिर्द बुन लिया ,या अपनी कहानियों में उसे ले जाकर फिट करने की कोशिश की पर कहानी का अंत क्या करू ..एकतरफा अंत करना अन्याय नहीं होगा क्या किरदार के साथ ,अब आपको फिर लगने लगा मुझे उससे प्यार है ,अरे नहीं भाई ,वो मेरी कहानी का एक पात्र है अब उस पर निगाह नहीं रखूंगी तो कहानी के साथ न्याय कैसे करूंगी ...
आज कई दिन क्र बाद वो वापस क्लास में आया है अजीब सा लग रहा है ....अजीब हाँ उसके चेहरे पर चमक और मुस्कान दोनों है हाँथ में मिठाई का डिब्बा सब आश्चर्य से देख रहे है उसको पहली बार खुश देखा है ,उसकी मंगेतर एक साल पहले कोमा में चली गई थी दुर्घटना के बाद आज होश में आई है ..उसकी आँखों में उदासी दूर दूर तक नहीं है चमक है ...
मिठाई मुह में रखते ही अचानक अपनी आँखे कुछ गर्म सी लगने लगी आइना देखा तो ....आँखों में कुछ था ... मैंने कहा था ना उसकी उदासी संक्रामक है ..

Thursday, June 16, 2011

मिथ्या देव

 
सहज है ना 
थूक देना किसी पर
आक्षेप लगाना
अकर्मण्य होने पर
कहना तू व्यर्थ है
जीवन बोझ है तेरा
क्षणभर में
धूसरित करना
किसी का अस्तित्व 
अपमानित करना
दिखाता है 
कुंठाओं का बोझ
ढो रहे है सब
आत्मग्लानि छुपा
पोषित कर अंतर्पशु को
करते है आदर्श जीवन
का दिखावा
श्रेष्ट सिद्ध कर स्वयं को
बन बैठते है
आज के देवता
मिथ्या देव

Wednesday, June 8, 2011

कुछ पल यूँही

(१)
किसी का खरीदूं
अपना बेच दूं
ज़मीर का सौदा
इतना आसान है क्या
(२)
सारे बड़े सम्मानित
उद्योगपति नेता अभिनेता
पहले आइये पहले पाइए
नया पता "तिहाड़"
(३)
भगवा हो या सफ़ेद हो
भ्रष्ट हो या नेक हो
खून पसीना तो
हमारा ही बहाते है
पाँव रखते है
हमारे शीश पर
स्वयं शिखर पर
चढ़ जाते है
(४)
हे स्विस बैंक
अकाउंट धारी
सौ तालो में बंद
सम्पति तुम्हारी
नीद भूख प्यास
सब तुमने हारी
(५)
हाय धरती पुत्र
कैसे चैन से सोते हो
खुले आकाश के नीचे
छोड़कर अपनी सारी सम्पति
जो तुमने कमाई है
हड्डियां जलाकर अपनी

Thursday, June 2, 2011

माचिस की डिब्बी

मई के महीने में शीत लहर सी दौड़ गई ...अन्दर तक काँप गई वो  नहीं वो नहीं हो सकता यहाँ  क्या कर रहा है .... क्या कशमकश है जिसकी एक झलक देखने को सारी दोपहर खिड़की पर गुज़ार देती थी लू के थपेड़े भी ठन्डे मालूम पड़ते थे आज उससे सामना होने के अंदेशे से कलेजा मुह को आने लगा है.... किसी अनहोनी कि आशंका से वो घबरा उठी.
 हे भगवान् वो  ना हो .... उसके  के होंठ बुदबुदा उठे , पहली बार अपनी सहेली दिशा के घर मिली थी उसकी  बुआ का बेटा था गर्मी की छुटियों बिताने, पहली नज़र में  कुछ अजीब सा लगा था पर जब उसने मुस्कुरा कर देखा तो आँखे और दिल दोनों उसके पास कब ट्रांसफर हो गए पता ही नहीं चला ... कितनी दोपहर दोनों साथ रहते एक दिन जब बातों बातों में  उसने  हँसते हुए धीरे से हथेली दबा दी थी पूरी कि पूरी पसीने से भीग गई थी ...बस चिट्ठियों का सिलसिला चल निकला ...माचिस की डिब्बी में सात तह में मुड़े ख़त ...उस दौर में उन खतों से ज्यादा कुछ भी कीमती नहीं था ..पर जला कर फ्लश करने पड़ते थे पर उससे पहले हज़ार बार चूमे जाते ....
उसके जाने के बाद दिशा को हमराज़ बनाया ...
अब उसकी चिठियाँ किसी और  के पते से उसके  के हांथो तक आती  .... हर शब्द नए सपनो तक ले जाता ..आँखे कुछ मुंदी और कुछ खुली सी रहती हर वक़्त हलकी हरारत सी ...पर इलाज करने वाला तो बहुत दूर बैठा था ..फोन पर बात ना करने का फैसला हम दोनों का ही था और चिट्ठिया जलाने का भी .... इस दफा गर्मी की छुटिया कुछ देर से आई या साल बहुत धीरे बीता निगाहें किसी ऐसे को ढूंढ रही थी जो वहां नहीं था ..... पर वो आया अभी भी उतना ही मासूम लग रहा था और वही मुस्कराहट जिसने मुझे खुद को खोने पर मजबूर कर दिया था ...
उसने फरमान भेजा ..मिलना है ..
पर कहाँ ?उसका  सवाल था
जहां तन्हाई मिले .... उसने मुस्कुरा कर कहा
दो लोग एक साथ कभी तन्हा नहीं होते .. और तन्हाई वो सेफ नहीं ...वो मुस्कुरा दी
तुम्हे किससे डर लगता है ...मुझे से या मेरे साथ तन्हाई में मिलने से
मुझे खुद से डर लगता है वो खिलखिला दी... पर पता नहीं क्यों वो खुद इस डर को जीना चाहती थी पिछले एक साल कई बार वो तन्हाई में मिलना चाह रहा था हर ख़त में पूछता था आज उसकी बे-ताबी उसकी आँखों से साफ़ झलक रही थी
 वो जब मिले तो जाना ख़त दर ख़त दोनों का रिश्ता कितना मज़बूत हो चुका है दोनों असहज थे ..फिर सहज हुए फर असहज हुए ... उसके बालों से गुलाब की  भीनी महक आ रही थी ... कुछ देर बाद वो महक उसके वजूद का हिस्सा बन गई ..
ना फूल सदा रहते है ना खुशबू ...उसका रिश्ता तय हो गया बहुत रोई ..गिड़गिड़ाई  किसी तरह उसको फोन किया ...
"नहीं तुम ऐसा नहीं कर सकती ..मैं अभी ट्रेनिंग पर हूँ ६ महीने नहीं आ सकता"
"मैं घर वालों को नहीं समझा सकती"
"मैं तुम्हारे ख़त तुम्हारे ससुराल पोस्ट कर दूंगा ,अगर मेरी नहीं तो किसी कि भी नहीं "
प्यार, यादें ,मायका सब छोड़ कर जाना पड़ा ..और रमते रमते रम गई .... जो नहीं मिला उसका क्या गम करे जो मिला वो भी तो बुरा नहीं ...
आज २ साल बाद खुमारी ,खुशबू ,तन्हाई  ,माचिस की डिब्बी और उसमें दबे ख़त सब ज़िंदा हो गए ...
वो सामने खड़ा था और शायद पहचानने कि कोशिश कर रहा था ... एक कसक सी आँखों में उतरी फिर अजनबी सन्नाटा  पसर गया ... उसने देखकर भी नहीं देखा ...बड़ी देर तक उसकी धड़कन तेज़ रही ....
आज दो दिलो ने वाकई सन्नाटे को देर तक सुना

Monday, May 23, 2011

वो मैं और facebook

(१)
मैं उसे सालों से जानता हूँ हमारे ब्रेकप   के बाद भी वो मेरे फसबुक status को चेक करती होगी ...मैंने उसे
फ्रेंडलिस्ट  से हटा दिया है पर उसकी रूम मेट शमा अभी भी जुडी है ..जानता हूँ वो मेरी तस्वीरे चेक कर रही होगी ... पंद्रह दिन उसके बिना बहुत भारी है पर मेरा दिल ये मानने को तैयार नहीं की उसने मुझसे सारे रिश्ते तोड़ लिए है ...... जी भर के घुमा हूँ दोस्तों के साथ  पंद्रह दिनों में जी भर तसवीरें खिचवाई है ..और फसबूक ,ऑरकुट पर पोस्ट भी की है ..आखिर उसे पता तो चले मैं कोई देवदास नहीं हूँ मुझे फर्क नहीं पड़ता. उसके होने ना होने से वो कोई आक्सीजन नहीं है जिसके ना होने से मेरी साँसे बंद हो जाए ...या वो कोई सूरज नहीं इसके ना होने से मेरा चेहरा सूरजमुखी की तरह मुरझा जाए ... इस बार उसको मुझे मनांना होगा बहुत हो गई जबरदस्ती ......
(२)
तस्वीरें तो मुस्कुरा कर खिचवा रहा है पर ये नहीं जानता आँखों में तैरती उदासी छिपाई नहीं जा सकती ..पंद्रह दिन हो गए मुझे पता है उसने गुस्से में मुझे अपनी फ्रेंडलिस्ट से हटा दिया है पर क्या इतनी आसानी से दिल से ,दिमाग से भी disconnect  कर सकता है क्या ..जानती हूँ मुझे भेजने के लिखे मेसेज ड्राफ्ट में संभाल कर रख रहा होगा ..रात भर जागी आँखों की उदासी इन रंगीन तस्वीरों में साफ़ दिखती है ...एक मिस कॉल भी नहीं दिया ,एक SMS  भी नहीं ,ट्विट्टर पर भी तो भेज सकता था सारा दिन इंतज़ार में जाता है ...अगर मुझसे सारे रिश्ते तोड़ रखे है तो अभी भी हाँथ में मेरा दिया ब्रेसलेट क्या कर रहा है ...ठीक से खुश होने का दिखावा करना भी नहीं आता ......पर पंद्रह दिन हो गए अभी तक मनाने भी नहीं आया .....
(३)
वो सामने से आ रही है ,कितनी प्यारी लग रही है जानती है मुझे उसपर नीला रंग कितना पसंद है ..सब नीला पहना है जानता हूँ मुझसे बात नहीं करेगी ...अगर पहले बात कर लेगी तो उसकी ख़ूबसूरती में कमी जो आ जायेगी .....
कैसे दिखावा कर रहा है जैसे मुझे देखा ही नहीं ..पर अजनबी की तरह वर्ताव कर रहा है लगता है बेहद नाराज़ है आज बीस दिन हो गए ........उसके सारे तोहफे लौटा दूँगी आखिर समझता क्या है उसके बिना नहीं रह सकती हूँ क्या ...
अचानक ख्यालों में खोये खोये ..सामने से आती कार  नहीं दिखी एक पल में वो उसकी बाहों में थी ...वो गुस्से में चिल्ला रहा था " कभी सड़क पर ठीक से नहीं चलोगी ,पता नहीं ध्यान कहाँ  रहता है अभी कुछ हो जाता तो " .
"तुम्हारे बिना जी कर भी क्या करुँगी " 



वो मैं और facebook
....

Friday, May 20, 2011

मायावी


आज पूरे चाँद की रात है ..उसने कान में फुसफुसाते हुए कहा ..

तो ? वो तुनक उठी

आज ना मिलो तो बेहतर .. बहुत रोशनी होगी ना छत पर .. उसने समझाया

अरे ये तो मेरी लाइन होनी चाहिए थी ना ..वो खिलखिला उठी ..

उसकी जिद थी भी गज़ब और हिम्मत उससे भी ज्यादा वरना ..तीन छत पार कर जाने का माद्दा मुझमें तो नहीं था

पर वो बेफिक्र आधी रात अपनी छत पर मेरा इंतज़ार कर रही थी ..और मैं दुनिया की फिक्र में घुला जा रहा था ...दिन में अगर कभी गली में आती जाती दिख जाती तो इतनी अजनबी निगाह डालती के एक बार यकीन नहीं होता की ये वही है ...

एक तो चांदनी रात ऊपर से सफ़ेद दुपट्टा डाले शरारत भी आँखों से मुझे देख रही है .... कितनी मायावी सी लग रही है ..क्या लडकिया वास्तव में इतनी खूबसूरत होती है ...एक बार दिल किया उसके पैर देखूं ...कही उलटे तो नहीं

दादी कहती थी चांदनी रात में ऎसी खूबसूरत चुड़ैले सफ़ेद कपडे पहन कर घूमती है ...अनायास अपनी सोच पर मेरी हसी छूट गई

क्या सोच रहे थे बोलो ना ...उसने अपनी बाहें मेरे गले में डालते हुए कहा ..फिर आदतन खुद ही बोली "मैं सुन्दर लग रही हूँ आ ..सब कहते है सफ़ेद रंग मुझे सूट करता है "

दिल किया एक बार बता दूं .... चुड़ैल .... पर फिर जो होता उसे संभालना मेरे बस की बात नहीं थी .. .... उसको बाहों में भर लिया ..उसको गले लगाना हमेशा सुकूं ही देता है ऐसा लगता है ...कोई मंतर चल गया हो ..... और जब दो दिल मिल रहे हो ..तो ज्यादा दिमाग नहीं चलाना चाहिए











Wednesday, April 20, 2011

मैं शर्मिन्दा ना होती इंसान होने पर ...

कभी कभी आँखे ऐसे दौर से गुज़रती है जब उनमें पानी की कमी नहीं रहती ..दिल का भारीपन जुबां को खुलने नहीं देता ..आखिर भारी दिल ..छलकने को तैयार आँखे और सुस्त जुबान कभी एक सुर में नहीं रह सकते ...कोई ना कोई धोखा दे ही जाएगा ..और हम शर्मिन्दा हो जायेंगे अपने इंसान होने पर ...
..रोबोट सी ज़िन्दगी जीते हुए बरस बीत गए ..थोडा थोडा करके साल डर साल अपने अन्दर की इंसानियत काट कर समय के साथ बहती चली गई ..पर कुछ हिस्से नहीं काट पाई जो मेरे दिल और आँहो से जुड़े थे ..आज भी वही बचे हुए हिस्से दिल में तीस पैदा करते है और आँखों में reaction सा हो जाता है और फिर मैं शर्मिन्दा हो जाती हूँ अपने इंसान होने पर ...
कुछ समय पहले इंसान से जानवर बनने का चलन था मैंने भी कोशश की ..शायद जानवर बनकर राहत पा जाऊं ..दिन बीते साल बीते पर ना पूरी इंसान रह पाई ना जानवर ...जब भी जानवर बनने की कोशिश की ...पता नहीं कहाँ से एक लकीर इंसानियत की चेहरे पर उभर आई और दिल ने बगावत कर दी ...काश कभी तो ये दिल दिमाग की सुन लेता ..और मैं शर्मिन्दा ना होती इंसान होने पर ...
इसी दौरान रोबोट का दौर आया हर चीज़ में छोटी सी मशीन ज़िन्दगी कितनी आसान सी लगने लगी भावनाओं वाले प्रोग्राम की फाइल hidden कर दी और सुकूं की ज़िन्दगी चलने लगी ...जब मशीन बनने लगे तो एहसास हुआ आस पास इंसान है ही नहीं सिर्फ मशीने ही मशीने है ...गलती तो मेरी ही थी ना कहाँ मशीनों में इंसान ढूंढ रही थी .... बड़े गर्व के साथ मशीनों में शामिल हो गई ...चोट देने लगी चोट खाने लगी दर्द अब कहीं नहीं था ये मेरी सोच थी ....

एक दिन फिर ..वो सामने आ गया ..इंसान कही का ...अभी भी दिल ,सितारे ,रेशम फूलों की बातें करता है ....बेवक़ूफ़ मेरे रेशमी दुपट्टे को हाँथ में लेकर कहता था "कितने निर्दोष कीड़ो की जान गई है इस दुपट्टे को बनाने में "
दर्द और उसका एहसास सब ज़िंदा रखा है उसने ...बहुत कोशिश की मैं उससे दूर रहूँ जिससे इंसान होने की बीमारी ना लगे बड़ी मुश्किल से खुद को मशीन बनाया है ... पर
नहीं रोक पाई ना ...आज शर्मिन्दा हूँ इंसान होने पर ..
(इस पोस्ट में जो कुछ लिखा है उसके लिए पूरी तरह डा. अनुराग आर्य जी का facebook status ज़िम्मेदार है )

Monday, April 4, 2011

सपनो को सोने ना देंगे

दिन मुश्किल ही सही ,
दिल उदास ही सही
आंख नम होने ना देंगे

रात भारी ही सही
राह लम्बी ही सही
सपनो को सोने ना देंगे

दुश्मन मज़बूत ही  सही
दोस्त कम ही सही
हौसले कम होने ना देंगे

उम्मीद कम ही सही
रौशनी गुम ही सही
रुमाल भिगोने ना देंगे

हर लम्हा जियेंगे
जोश और जूनून से
 
जियेंगे जी भर ज़िन्दगी ढोने ना देंगे



Thursday, March 17, 2011

होली ....

होली ..हर उम्र में होली का अपना मज़ा होता है ..मन फागुन की बयार में बौराने लगता है आज भी बौइरा रही हूँ पर तुम पता नहीं कहा हो ..शायद कंधे पर लैपटॉप डाले ऑफिस की तरफ जा रहे होगे ...या अपनी शॉप पर बैठे होगे ..तुम कहाँ हो और आज क्या कर रहे हो मुझे कुछ भी नहीं पता पर हर होली  दिल में टीस जरूर दे जाती है ..... मेरी भटकी आँखों को कई बार ... निलय ने पकड़ा है  "किसे ढूंढ रही हो सपना " और मैं मज़ाक में कहती हूँ "जब तुम सामने हो तो मुझे किसी को ढूँढने की जरूरत नहीं ....
आज बरसो बाद सिगरेट पीने की इच्छा हो रही है ..मन कर रहा है दो कश भरु और और मुह से धुएं के साथ अपने अन्दर से तुम्हे भी बाहर निकाल दूं .. तुम्हारी यादें कसैली सी लगने लगी है ..तुमने जब हांथों में रंग लेकर मेरी तरफ पहली बार शरारत से देखा था तो सच मानो मेरे गाल भी उतने ही बेताब थे जितने तुम्हारे हाँथ ...और मैं बिलकुल नहीं चाहती थी कोई मेरे गालों पर तुमसे पहले गुलाल लगाये ...सारी रात इसी इंतज़ार में थी ...तुम कौन सा रंग लगाओगे ... सुर्ख लाल ..जो मैं तुम्हारे हांथो से अपनी मांग में देखना चाहती  थी ,चमकीला  हरा जो शायद मेरी कलाइयों में चूड़ी बन खनकेगा ..पीला जो हांथो में हल्दी बन सजेगा या फिर रुपहला मेरे सपनों की तरह.
तुम जब मेरी ज़िन्दगी में शामिल होने लगे थे तब बहुत कच्ची उम्र में थी मैं ..अल्हड पर तुमको देखते ही मानो किस अनुशासन से बंध जाती थी ..कितनी बार सोचती तुम कुछ कहो ..पर नहीं इसी अबोले पलो के बीच दिवाली से होली आ गई ....और मेरे मन में आकर्षण के बीज में अंकुर फूटने लगे ..कभी कभी जब तुम्हे सोचती तो शारीर से ना जाने कैसी सोंधी सी महक उठती और मैं कस्तूरी मृग की तरह बौरा उठती .... सब जादू सा लगता ...सपने सा ..सपना का सपना ...
तुम जब मेरी तरफ रंग लगाने के लिए बढे ..तो मैं सकुचा रही थी पर ..ये अनुभव बिलकुल वैसा नहीं था ...मेरे कोमल सपने एक पल में कुचल गए ...तुम्हारे हांथो में काला रंग था जो तुम बड़ी कठोरता से मेरे मुह पर मेरे गले पर लगा रहे थे ..और तुम्हारे दोस्तों की आवाजें "छोड़ना मत " ,"मौके का फायदा उठा यार ", "तेरी तो सेटिंग है "... कानो में पिघले सीसे की तरह उतर रहे थे मैं अपने को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी ..बीच बीच में उठती ..शराब की तीव्र गंध में जो कस्तूरी  खोई वो आज तक नहीं  मिली ....
उस होली ने छोड़ा मुह पर काला रंग जिसको कितना उतारने की कोशिश की पर आज भी ..कहीं मन के कोने में रह गया है ..जो हर होली रंगों को देखते ही पूरे अस्तित्व को अँधेरे में डाल देता है ........
आज फिर होली है हर तरफ रंग है निलय आने जाने वालो को बोल रहे है सपना को रंग पसंद नहीं है ..और गुलाल के टिके लगा रहे है ...निलय के मनपसंद त्यौहार पर मेरा ना होना उसे मायूस तो करता है पर कभी भी उसने जबरदस्ती नहीं की ..जब भी वो नए शादीशुदा जोड़ो को होली में मस्ती करते देखता तो उसकी उम्मीद भरी आँखे मेरी तरफ उठ जाती ..ये हमारी शादी के बाद दूसरी होली है ..मैं निलय का चेहरा देख रही हूँ ...कितना प्यार करता है मुझे ...कितना सुरक्षित महसूस करती हूँ उसकी बाहों में ....और मैं किस के लिए  लिए निलय को तकलीफ दे रही हूँ जिससे मेरा कोई रिश्ता भी नहीं है 
अचानक सारी कालिमा ख़त्म होने लगती है और थाली में सजे रंग मानो आवाज़ देते है आओ और सजा लो हमें अपनी ज़िन्दगी में ..मेरे हांथो में गुलाबी रंग लिए मैं निलय पर टूट पड़ती हूँ और बिना उसे संभलने का मौक़ा दिए रंगों में सराबोर कर डालती  हूँ ... निलय की आँखों में कई रंग तैर जाते है ..भौचक्का .... विस्मय ...आश्चर्य .. शरारत ..फिर...  कितनी देर हम दोनों होली खेलते  रहे याद नहीं....इस होली की यादें ऐसी बनी की अब शायद कोई और होली कभी याद ना आये .....



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Sonal Rastogi

Monday, March 7, 2011

..नारी होने की पीड़ा

विश्व महिला दिवस की पूर्व संध्या पर ..अरुणा क्या कहूं तुमसे .तुम जिस परिस्थिति में हो और जितने समय से हो ....तुम्हे तुम्हारे नारी होने की जो सजा मिली है वो अंतहीन है ..आजीवन कारावास भी १४ साल में ख़त्म हो जाती है ...
मैं तुम्हे जानती नहीं हूँ ..जानती तो मैं उन सबको भी नहीं हूँ जो सडको से उठा ली  जाती है ,घरो में मार खाती है , अपने करीबी रिश्तेदारों द्वारा कुचली जाती है ..पर हर खबर चुभती है बहुत गहरे तक ....हम जिन हादसों को सोच कर डर जाते है ..और मानाने लगते है हमारे साथ हमारे करीबियों के साथ वो कभी ना हो ..उनको तुम सबने झेला है ,कल सब नारी की महिमा गायेंगे ...मैं नहीं गा पाउंगी और ना गर्व कर पाउंगी अपने नारी होने पर ... अरुणा तुमको जीने नहीं दिया और अब मरने भी नहीं दे रहे ... जो लोग कामना कर रहे है तुम्हारे मरने की वो तुम्हारे मरने की कामना नहीं कर रहे बल्कि अपने इंसान होने की शर्मिंदगी दूर करना चाहते है ...तुम चली जाओ तो शायद अपने गिल्ट से छुटकारा पा जाए ... किसी की हवस किसी के लिए  कदर भयावह हो सकती है .....
नारी के कपड़ों चरित्र व्यवहार की विवेचना करने वाले उन पशुओ के लिए कभी कुछ नहीं लिखते जो समाज में घूम रहे है ... जिनके लिए १८ साल की युवती और ६ माह की बच्ची में कोई अंतर नहीं है ..शील ,मर्यादा ,कर्त्तव्य की बात तो करेंगे पर सिर्फ नारी के लिए ...पर कभी समझ नहीं पायेंगे नारी होने का भय ..नारी होने की पीड़ा




--



Saturday, March 5, 2011

छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए

मेरी आँखों में आँखे डालकर ..पिछले कई घंटो से तुम समझा रहे हो ...कोशिश कर रहे हो इश्क में सीनिअर जूनियर नहीं होता ..इस बात से क्या फर्क पड़ता है की तुम्हारा दिल २ साल ज्यादा धडका है ..उतना distance  तो मेरे दिल ने जिस दिन तुम्हे देखा था उसी दिन पूरा कर लिया था. और मैं बस तुम्हारी मासूमियत पर मुस्कुरा कर रह जाती हूँ ..जब तुम मुझे कन्विंस कर रहे होते हो तुम्हारे यही शायराना अंदाज़ कुछ बेचैनी ,बेसब्री और कुछ पागलपन की बातें मुझे नई दुनिया में ले जाती है ..जहाँ मैं हूँ कुछ अप्राप्य सी और तुम ... मुझे पाने को व्याकुल .

मेरी मुस्कराहट तुमको थोडा सा झुंझला देती है ..... तुम्हे दुनिया में मुझसे पहले इसलिए भेजा गया कि तुम देख सको क्या फर्क है दुनिया में मेरे आने से पहले और मेरे आने के बाद .. तुम समझ लो कोई तुम्हे मेरे जितना प्यार नहीं कर सकता ..बस इम्तिहान लेना बंद करो ..

इम्तिहान ... याद आया मैं जिन जिन इम्तिहानो से गुजरी हूँ या गुज़र रही हूँ उसकी आंच का एहसास भी नहीं है तुमको भले ही हमारी उम्र में दो साल का अंतर हो पर अनुभव में कम से कम एक दशक का ... तुमको हमेशा मखमल मिला है और मैंने टाट को मखमल में बदला है ..खुरदुरेपन से मुलायमियत तक का सफ़र इतना आसान नहीं होता ...तुम्हारी आँखों में सपनो के बुलबुले देखकर घबराती हूँ जिस दिन धरातल से टकरायेंगे क्या होगा ... तुम्हारी मासूम आँखों में सपने ही सजते है इन्हें भिगोना नहीं चाहती खारे पानी से ..मैं गुनगुना उठती हूँ 

छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए ..ये मुनासिब नहीं ....................................... 



Monday, February 28, 2011

मैं तुमको पहचानता हूँ

 मुझे आज भी गुमां है
मैं तुमको   पहचानता हूँ
तुम्हारी बोलिया सुनकर
तुम्हारा शहर जानता  हूँ
तेरी पायल की आवाजें
तेरी सीढ़ी से मेरे दर तक
उन्हें सुनने की चाहत में
मैं हर शब जागता हूँ
तुम्हारे इत्र की खुशबू
जो खस सी ख़ास होती थी
उसी जादू की  ख्वाहिश में
दुआ दिन रात मांगता हूँ
मेरी  हर नज़्म फीकी है
नमक तुमसे ही आता था
उन बे-स्वाद मिसरों के वास्ते
तुम्हारा स्वाद मांगता हूँ 
तुम्हीं ने तो तो सौपे थे
वो काले धागे नज़र वाले
उनकी गाँठ खोलने को
तुम्हारा साथ चाहता हूँ


Friday, February 25, 2011

मैं जितना पास आउंगी तुम उतना ज़ुल्म ढाओगे

मुझे उम्मीद है तुमसे
के मेरा दिल दुखाओगे
मैं जितना पास आउंगी
तुम उतना  जुल्म ढाओगे
मेरे सपने मेरी बातें
तुम्हे फ़िज़ूल लगते है
बिछा दूं फूल जितने भी
तुम्हें बबूल  लगते है
मिलता है सुकूं तुमको
बहे जो दर्द  आँखों से
सदियों से हुआ गायब
रूमानी चाँद  रातों से
बचे जो आस  के तारे
फूंककर उन्हें बुझाओगे
मेरे लिखे वो महके ख़त
अपने हांथों से जलाओगे
मैं जितना पास आउंगी
तुम उतना ज़ुल्म ढाओगे


Saturday, February 19, 2011

अपनी चाहत पा जाउंगी

आज फिर मैं वही सवाल पूछूंगी
जानती हूँ जवाब क्या आएगा
नए जबाब की चाहत में
वही साल दर साल पूछूंगी
मैं नहीं थकूंगी मांगने से
ना मांगू तो क्या पा जाउंगी
रीती थी तब भी मैं
अब भी रीती रह जाउंगी
सजदा सुबह शाम करो
तो माथे पर भी निशा पड़ते  है
टूटते है जितने ख्वाब
सब मेरे तलवो पे आके गड़ते हैं
ना सजाऊं अगर ख्वाब नए
क्या लहूलुहान होने से बच जाउंगी
जो पाना है वो बहुत मुश्किल है 
पर ज़माने को आसानी से हासिल है  
लगता है इस बार की कोशिश में
अपनी चाहत पा जाउंगी

Tuesday, February 15, 2011

जली फिर रात रूमानी....

थी कल की शाम रूमानी
छलकता जाम रूमानी
निगाहे थी निगाहों तक
नज़र  की प्यास रूमानी
सहेजा भी संभाला भी
सीने से दिल निकाला भी
नहीं था सुर्ख इतना कुछ
जली  फिर रात रूमानी
अजब हालात थे शायद
मेरे जज्बात थे शायद
ना तुम बोले ना मैं बोली
चुपी ना रात रूमानी
कहें कैसे सुनें कैसे
ये किस्से प्यार वाले है
बहुत मीठे है गुड जैसे
यहाँ जितने निवाले है
तुम्हे पाया तो पा बैठी
मैं ये सौगात रूमानी

Tuesday, February 8, 2011

सखि बसंत मादक अधिक...


सखि बसंत मादक अधिक ,करू मैं कौन  उपाय
जिन कारण मैं बावरी ,वो मोहे मिल जाए

उपवन में उत्सव रचा, आवो जी ऋतुराज
करूँ श्रृंगार मैं सुमन का ,बने बिगड़े काज


नयनन ने सुन लीन्ह नयन नयन की बात
री सखि मारक बहुत कामदेव की घात

प्रेमपगी ऋतू बसंत है ,सजन नहीं है पास
भाग्य भया विपरीत मम रही ना कोई आस

पीरी चुनर ओढ़कर ऐसा करूँ श्रृंगार
दमकू मैं कनक सम रवि मलिन पड़ जाए

Monday, February 7, 2011

कई साल पहले ...लिखी थी ये ..किसी ख़ास के लिए

एक  रोज़  मैंने  सोचा  तुमको  एक  rose   दूं  मैं
पर  दिल   मेरा  बोला  क्यों  रोज़  rose दूं  मैं
एक  रोज़  rose लेकर  तुम  ज़िन्दगी में आओ
मैं  तो  चाहू  हर  रोज़  rose लाओ
पर  आज  rose day है  मेरा  है  तुमसे  कहना 
मेरी  ज़िन्दगी  में  हर  रोज़  फ्रेश  rose बनकर  रहना ....

Friday, January 28, 2011

शायद तुम्हारी दादी भी यही कहानिया सुनाती होंगी


कोई तो कहे की मेरे
ख्वाब सारे सच है
चाँद पर बुढ़िया
मौत के बाद बने
तारे सच है
होते है उड़ने वाले
कालीन कहीं पर
राजकुमारी के बाल
सच में लगते है
ज़मीन पर 
चूमते ही प्रिंस के
जागती है राजकुमारी
किसी बाग़ में अब  भी
खेलती है परिया सारी
शायद मेरे बचपन
के साथ गुम हो गए 
मेरे तकिये के नीचे से
सपने चोरी हो गए
किसी और को भी
मन भाती होंगी
शायद तुम्हारी दादी भी
यही कहानिया सुनाती होंगी

Tuesday, January 25, 2011

तिरंगा

आज जब ऑफिस में छोटा सा तिरंगा दिल के पास लगाया तो कुछ ऐसा अनुभव हुआ ...खून थोडा और गर्म लगा और धड़कन  की रफ़्तार और तेज़ महसूस हुई, कई दिनों से समाचार पढ़कर ऐसा लग रहा था क्यों तिरंगा फ़हराने पर लड़ाई हो रही है ...पर आज जब तिरंगा दिल के पास लगा तो महसूस हुआ ये सिर्फ तीन रंगों का झंडा नहीं है और भी बहुत कुछ है ... इसको पहनने का सौभाग्य सबको नहीं मिलता ...और मरने के बाद तिरंगे में लिपटने का सौभाग्य भी सबके नसीब में नहीं होता .
आम भारतीय की तरह मेरे लिए भी स्कूल छूटने  के बाद २६ जनवरी और पंद्रह अगस्त छुट्टी के दिन ही रहे है ..... पर पता नहीं आज ऐसा क्यों लग रहा है शायद इस मानसिकता से बाहर निकलू  और सभी को शुभकामनाये दूं ...क्यों नहीं इस दिन को दिवाली या ईद की तरह मना सकते ,क्यों नहीं गले मिल बधाई दे सकते अपने गणतंत्र के लिए ...
जानती हूँ बहुत निराशा है ,भ्रटाचार है , अन्याय है और बहुत बेबस से है हम पर ...जब देश गुलाम था तब भी ऐसा ही माहौल रहा होगा ..तब दुश्मन बाहर से आया था उसे खदेड़ दिया ..पर आज के दुश्मन हमारे बीच ही बैठे है ..मुश्किल है बहुत ही मुश्किल पर कहीं तो इस रात की सुबह होगी ...

Monday, January 24, 2011

आकर्षण

(वर्जित की कामना  ..मानव मन की चाह रही है ...बस यही कहती है ये कहानी ...इसको एक बार फिर पोस्ट कर रही हूँ)

ये तन ऐसा है जो मन के हिसाब से चलता है पर दिमाग की बिलकुल नहीं सुनता, आज मेरा मन पता नहीं क्या क्या सोच रहा है शादी के आठ साल बाद आज ये इतना बेचैन क्यों है ,कितनी खुशहाल ज़िन्दगी चल रही है घर परिवार भरा पूरा है, ऐसा कुछ नहीं जिसकी कमी हो ,प्यार करने वाला पति दो प्यारे प्यारे बच्चे, बचा समय में घर पर पास के बच्चों को पेंटिंग और क्राफ्ट सिखा लेती हूँ, पूरे हफ्ते सब अपने में व्यस्त रहते है और रविवार को सारा दिन मस्ती...मेरी ज़िन्दगी ऐसी ही चलती रहती अगर मेरी मुलाक़ात इनके बचपन के दोस्त वैभव से नहीं होती....








वैभव और उसकी पत्नी मेधा ट्रान्सफर होकर लखनऊ आये तो उन्होंने इनसे संपर्क किया , अपने बचपन के दोस्त को करीब पाकर ये भी बहुत खुश थे, तीन दिनों में उनकी शिफ्टिंग और सब कुछ सेट हो गया, दोनों का स्वभाव बहुत अच्छा था, हमारा उनसे मिलना अक्सर होने लगा,बच्चों का मन भी उनके बेटे विशाल में रम गया......





मैंने और मेधा ने लगभग सब कुछ बाँट लिया अपनी रुचियाँ अपने सपने ,अपने विचार वैभव और ये भी हमारी बातों में बहुत रस लेते...दिन बीते होली आ गई, हम सारे होली की प्लानिंग करने लगे बच्चे तो हद से ज्यादा उत्साहित थे ,हमारे घर में होली का कार्यक्रम रखा गया , सुबह सुबह सब एक दुसरे के रंग लगाने में लग गए,मैंने मेधा को रंग लगाया और होली की बधाई दी,फिर मैं वैभव को रंग लगाने बड़ी और मैंने उनके गालों पर रंग मॉल दिया फिर क्या था वैभव और इन्होने मिलकर मुझे बुरी तरह से रंग लगाया..रंग लगवाते हुए अचानक मुझे वैभव का स्पर्श कुछ अजीब सा लगने लगा, मैं सहज नहीं हो पा रही थी मैंने वैभव की तरफ देखा तो उसकी आँखों में कुछ अजीब सी चमक थी......तभी बच्चे आ गए और हमारा रंग लगाने का कार्यक्रम ख़त्म हो गया...





होली तो चली गई पर अकेले में मुझे वो स्पर्श अचानक याद आता और मेरे मन में वैसी ही गुदगुदी होती जैसी शायद इनके पहले स्पर्श से हुई थी...वैभव अब भी आते पर मैं अब उतनी सहज नहीं रह पाती...उसकी आँखों में मेरे लिए आकर्षण साफ़ दिखता मेरे जन्मदिन पर मुझे हाँथ मिलाकर विश करते समय उसने मेरा हाँथ ज़रा जोर से दबा दिया और सर से पाँव तक मैं सिहर गई..





मेरे होंठों पर एक रहस्यमयी सी मुस्कान हमेशा रहने लगी, हमारी विवाहित ज़िन्दगी में जो ठंडापन आ रहा था वो कुछ कम होने लगा..मैं जब इनको स्पर्श करती या ये मुझको बाँहों में लेते तो मेरे मन में अचानक वैभव की छवि आ जाती और मैं और जोश के साथ इनसे लिपट जाती, ये मुझे छेड़ते क्या बात है आजकल तुम बदली बदली सी लगने लगी हो...मैं अपने मन में भी वैभव के लिए आकर्षण महसूस कर रही थी..दिमाग कह रहा था "क्यों अपना बसाया परिवार उजाड़ रही है " पर दिल ओ सपने बुन रहा था "इसमें बुराई क्या है किसी को मैंने बताया थोड़े ही है".........





मन हमेशा से ऐसा पाने को लालायित रहता है जो वर्जित हो मैंने कितनी बार कल्पना में अपने को वैभव की बाहों में देख लिया था और मन का चोर कहता था अगर ये सच में हो गया तो कैसा रहेगा,क्या वैभव भी ऐसा ही सोचते है मेरे बारे में ....





क्रिसमस की छुटियों आ गई और हमदोनो परिवारों नें मनाली जानें का कार्यक्रम बना लिया...सच कहूं इनके साथ जाने से ज्यादा मेरा मन वैभव के पास होने के एहसास से खुश था पैतीस साल की उम्र में मुझ में सोलह साल की लड़की सा अल्हडपन आ गया था,सारे रास्ते हम हंसी मज़ाक करते गए बीच बीच में वैभव मुझपर एक प्यार भरी निगाह डाल देता,...दोनों शायद अपने अपने दिल के हांथों मजबूर हो रहे थे, और इस सब में ये भूल बैठे थे की हमारे साथ हमारे जीवन साथी भी हैं ,जो शायद इस बदलाव को महसूस कर रहे थे....





मेधा बहुत समझदार थी, एक स्त्री होने की वजह से उसकी छठी इन्द्रिय ज्यादा सक्रिय थी, शाम को ये और वैभव जब बच्चों को झूले पर ले गए तो मैं और मेधा अकेले बातें करने लगे,





मेधा बोली " नीतू बहुत ठण्ड हो रही है इससे अच्छा हम लखनऊ में ही रहते "





मैंने उसकी बात को मज़ाक में लेकर बोला "क्यों क्या मज़ा नहीं आ रहा ..इतना अच्छा मौसम इतना सुकून मेरा तो यहाँ से जाने का मन ही नहीं कर रहा लगता है बस समय यहीं रुक जाए "





"यही अंतर होता है नीतू किसी को एक एक पल भारी सा लगता है और किसी के लिए समय के पंख लग जाते है " मेधा ने दार्शनिक से संदाज़ में बोला





"तेरे मन में क्या है मुझको तो बता सकती है " मैंने अपने मन के चोर को दबा कर पूछा





"नीतू मैं थोड़े समय से वैभव में बदलाव महसूस कर रही हूँ, मेरा भ्रम भी हो सकता है,मुझे कभी कभी लगता है जैसे ये मेरे साथ होकर भी एरे साथ नहीं है " मेधा के गेहुएं चेहरे पर चिंता की लकीर खीच गई





मेरा चेहरा फक पड़ गया ऐसा लगा बीच बाज़ार में निर्वस्त्र हो गई हूँ ,अबी तक दिमाग की बातों को दिल सामने आने नहीं दे रहा था पर अब दिमाग दिल पर हावी होने लगा " अगर मेधा नें वैभव में परिवर्तन महसूस किया है तो इन्होने भी तो महसूस किया होगा " मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही थी की मैं मेधा से निगाह मिलाऊं .





"मैडम होटल चलें बहुत थक गया हूँ " सामने से इन्होने मुस्कुराते हुए कहा "तुमको क्या हुआ " इन्होने मेरा उतरा चेहरा देखकर पूछा "





"मैं भी बहुत थक गई हूँ " मैंने सकपका कर जवाब दिया





मयंक सो गए पर मेरी आँखों से नींद तो कोसों दूर थी "मैं क्या करने जा रही थी ,अपना पति ,अपने बच्चे अपनी दोस्ती सब कुछ इतने सारे रिश्ते एक पल के आकर्षण पर दांव पर लगा रही थी " मेरी आँखों से आंसू बह निकले और मैंने अपने पास लेते हुए मयंक को देखा जो बच्चों जैसी निश्तित्ता के साथ सोये हुए थे अचानक मैं माक से लिपट गई ,मयंक नें मुझे रजाई में खीच लिया और मैं उनके सीने से लग कर सो गई .....





सुबह जब आँख खुली तो मन हल्का हो चुका था आसमान के साथ मन से भी बादल छंट चुके थे, मुझे सुकून था मैंने अभी कुछ खोया नहीं था अब मुझे वैभव को भी उस आकर्षण से बाहर निकालना था जिसके चलते हम दोनों अपने रिश्तों में ज़हर घोलने चले थे....





"आज स्कीइंग करने चलते है " वैभव नें मेरी तरफ देखते हुए कहाँ बच्चे भी हाँ में हाँ मिलाने लगे





"अगर आप लोगों को प्रॉब्लम ना हो आप लोग बच्चों को लेकर चले जाओ, आज हमारा मूड होटल में ही रहने का है" मैंने रोमांटिक अंदाज़ में मयंक के गले में बाहें डालते हुए कहा.





"आप अपना सेकंड हनीमून मनाइए बच्चे हमारे साथ चले जायेंगे, मयंक आज नीतू मैडम मूड में है ज़रा संभल कर " मेधा ने मुस्कराते हुए अपनी दाई आँख दबा दी...





मयंक,मेरे और मेधा के ठहाके गूँज उठे और शायद वैभव भी मेरा इशारा समझ गया और मुस्कुरा दिया...





Tuesday, January 18, 2011

उसकी आँखें


उसकी आँखें
गहरी आँखें
दरवाजे पे
ठहरी आँखे
बरस बीते
अबतक सीली
तारो सी
रुपहली आँखें
दिलतक आई
मैंने पाई
प्यार भरी
रसीली आँखें
आँखों में
अबतक ज़िंदा है
दर्द पगी
पनीली आँखें 


 

Wednesday, January 12, 2011

क्षणिकाए

(१)
एक का दर्द
दूजे का तमाशा है
लोकतंत्र की
यही भाषा है
(२ )
एक हाँथ में छाले
दूजे में प्याले है
वाह ऊपर वाले
तेरे खेल निराले है
(३)
वोट लिया
फिर खून पिया
फिर बोटी नोची
फिर खाल खींची
कहीं देखी है
जनसत्ता ऐसी
(४)
बुजुर्ग घर में
औरत शहर में
बच्चे स्कूल में
सुरक्षित नहीं


Tuesday, January 11, 2011

पीला दुपट्टा

१००% इस बार प्यार के लफड़े में नहीं पडूंगा ...अपने से मानो पक्का वादा कर रहा था वो  , पर इस वादे को टूटने में ३० सेकेण्ड से भी कम समय लगा ...जब पीला दुपट्टा लहराती वो पास से गुज़र गई ...लगा जोर से चली हवा से खेत  में खड़ी सरसों की फसल झूम उठी हो ....दिल इतनी जोर से धड़का की बस यही आखिरी पल है इसके बाद मैं और दुनिया दोनों ख़त्म ..निगाह उसकी पीठ पर तब तक चिपकी रही जब तक वो पूरी काया से एक पीले बिंदु में नहीं बदल गई .... कितनी खराब आदत है मेरी ..अगर किसी को देखता हूँ तो इतना डूब जाता हूँ की सामने वाले को एहसास होता है घूरने का ..
पर मैं घूर नहीं रहा होता ....कई बार झिडकी ...डांट खाने के बाद भी ये आदत सुधरती नहीं .... ये लडकिया कितनी रंगों से भरी होती है ..कई बार लगता है कुदरत के सारे रंग कितनी सहजता से लपेट लेती है अपने तन पर ...और हिस्सा बन जाती है प्रकृति का .
सावन में हरा ...बसंत में पीला ...और करवाचौथ में लाल हर रंग मौसम के साथ ... शायद हर दिन उत्सव सा मनाती है....
वैसे भी शायर आधे पागल होते है ..हर बात में रस और कविता बुन लेते है ..जबसे मेरे क्लास की लड़कियों को मेरे शायर होने का पता चला है बुरा नहीं मानती ..कहती है लिखने के लिए प्रेरणा चाहिए जब तक तुझे परमानेंट प्रेरणा नहीं मिलती तब तक ... ऐसे ही चला ...
बस कोई मुझे seriously लेता ही नहीं ... अगर इज़हार-ए-इश्क  करता हूँ तो मज़ाक  समझ लेती है ...
और मैं हंस पड़ी ..
वो बोला देखा तुमने भी मज़ाक में लिया ना मेरी बात को ..
१००% इस बार प्यार के लफड़े में नहीं पडूंगा

Monday, January 3, 2011

उफ़ ये अलसाई सी सुबह !


एक अलसाई सुबह
गर्म रजाई सी सुबह
जब छेड़ा था तुमने
कितना शरमाई थी सुबह
लट को हटाया जब  फूंक से
गालो पर उभर आई थी सुबह
माथे पर तेरे चुम्बन से
किस्मत पर इतराई थी सुबह
किसी के आने की आहट से
तकिये के नीचे दबाई थी सुबह
कितनी हडबडाकर  तुमने
गालो से मिटाई थी  सुबह
 नए साल में जाने से
थोडा हिचकिचाई थी सुबह
लगी जब तुम्हारे गले
मेरे मन भाई थी सुबह
उफ़ ये अलसाई सी सुबह !