तोड़ो गुल्लक
निकालो सिक्के
चन्दा जैसे
गोल गोल
पिछला साल
गया खर्चीला
इस बरस तो
तोल के बोल
मीठे खट्टे
तीखे तीखे
जिए कितने
पल अनमोल
हिसाब निन्यानबे का
मिलता ही नहीं
अरे बाबा
सब झोलम-झोल
मैं क्या सोचती हूँ ..दुनिया को कैसे देखती हूँ ..जब कुछ दिल को खुश करता है या ठेस पहुंचाता है बस लिख डालती हूँ ..मेरा ब्लॉग मेरी डायरी है ..जहाँ मैं अपने दिल की बात खुलकर रख पाती हूँ
Wednesday, December 29, 2010
Wednesday, December 22, 2010
ये दरवाजे !!
मुझे कहानिया बहुत पसंद है ..सड़क पर चलती कहानिया ,पालने में पलती कहानिया सब बेहद लुभाती है ...किसी से कहूं तो पागल कहेगा पर हर चीज़ मुझसे बात करती है ..सबके पास कहने को बहुतकुछ है ...पर मेरे पास वक़्त कम रहता है ..कल नाराज़ होकर घर के दरवाजे ने रोक लिया ...कितनी जल्दी में रहती हो ..दो पल तो रुक जाया करो ... मेरा जुड़ाव है तुझसे वरना कभी नहीं कहता तुझे ..जब तेरी माँ गोद में लेकर तुझे घर के अन्दर आई थी तबसे ... अब क्या करती ठहर गई ..हीर वही कहानी सुनने का शौक ....हाँथ लगते ही एहसास हुआ जब दादी अंतिम यात्रा पर जा रही थी तब इसी दरवाजे को पकड़ कर कितना रोई थी इसने ही तो सहारा दिया था ..
भाभी जब दुलहन बन आई थी तब सारे नेग रस्में इसी दरवाजे के सामने हुए ...सब बातों का गवाह है ये ...जब भाई नाराज़ होकर घर छोड़ कर गया तो पापा ने गुस्से में यही दरवाजा कितनी डोर से बंद किया था ..फिर आधे घंटे बाद से फिर दरवाजे पर उसके आने का इंतज़ार .....
उफ़ ....पर इसी दरवाजे से मेरा हाँथ भी तो दबा था और मैंने कितना मारा था इस दरवाजे को ...माँ गोद में लेकर घंटों बहलाती रही थी मुझे ..अरे वो दर्द तो फिर से ज़िंदा हो गया ....
ये दरवाजा गवाह है हर आगमन और प्रस्थान का.. चाहे अनचाहे हर मेहमान का ....जितना ये घर के अन्दर की बातें जानता है उतनी बहार की दुनिया की असलियत भी ...अन्दर होने वाली महाभारत को छिपा जाता है ....पैसे की तंगी ...मनमुटाव सब छिपे रहते है ...सिहर गई ये सोच् अगर ये दरवाजे ना होते तो ........
Tuesday, December 21, 2010
सर्द मौसम
चटक चांदनी
फीकी सुबहें
मौसम का
अंदाज़ है
सुबह हवा ने
...बतलाया था
सूरज कुछ
नाराज़ है
धुंध लपेटे
चुप पड़ा है
बड़ा बिगड़ा
नवाब है
Tuesday, December 7, 2010
ये जो मेरा चेहरा है
(१)
ये जो मेरा चेहरा है
खुशियों से जड़ा है
हर वक़्त खिलखिलाहट
जैसे झुण्ड चहका है
आँखों में सितारों सी
चमक सदा है
इतनी लम्बी मुस्कराहट
हर लम्हा फ़िदा है
सदा दमकते है
मोती जिनके बीच
उसने कभी लबों को
सीप सा भी कहा है
मुस्कान के साथ पड़ते
गालों में गढढे
आँखों के करीब
दो पर्बत से उठते
मेरे चेहरे का वजूद
सबसे अलहदा है
(२)
ये जो मेरा चेहरा है
दर्द का फलसफा है
हर वक़्त सिसकियों की
गूँज से भरा है
आँखों से रिसती
सीलन इस दिल की
हर लम्हा यहाँ
सावन सा ही रहा है
आँखों के पास पड़े
स्याही के घेरे
देखे न जैसे
उजले सवेरे
मायूसी मेरे
वजूद का हिस्सा है
Monday, December 6, 2010
टीवी मेरी तौबा
आज बहुत फुर्सत में थे तो सोचा कुछ समय का खून किया जाए ,आखिर कितना भी सदुपयोग करे एक दिन तो टाइम पूरा होना ही है ..तो बस अपने हांथो में रिमोट थमा और शुरू हो गए ..बाप रे भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा, सारी दुनिया उलट पुलट हो गई ..और हमको अपने आप पर इतनी शर्म आई की क्या कहे ..हमको तो पता ही नहीं क्या क्या हो रहा है हमारे देश में बाल विवाह ,सतीप्रथा,अग्नि परीक्षा ,गंगा की धीज... इसमें से कुछ तो हमने सुना था इतिहास में दर्ज है पर भला हो टीवी का जो हम आज जान पाए पर डर भी लगा कही मेरी सासू मां गर यही देखती हुई और कहा "ज़रा अंगारों पर चल कर या नदी में डूब कर पवित्रता साबित कर फिर "
घबरा कर चैनल बदल दिया सारा मौसम गुलाबी हो गया खूबसूरत सी नायिका अकडू सा हीरो एक दुसरे को प्यार से देखते हुए ..गुदगुदी तो हमारे भी दिल में हुई ..पर ये गुदगुदी धीरे धीरे खीज में बदलने लगी क्या करते ...पूरा ३ मिनट २२ सेकेण्ड एक दुसरे को घूरते रहे और ठंडी आहें भरते रहे ..हमको विशवास हो गया पेमेंट ना मिलने से dialog लेखक बीच में भाग गया है ...
फिर थोड़ी -थोड़ी देर में हर तरफ वही नज़ारा भारी साड़िया,कुंदन के जेवर दिल फुंक कर रह गया जहाँ हम सारा दिन ऑफिस से घर की चक्की में पिसे रहते है वहीँ ये महँ देवियाँ आराम से घर में नौकरों को किसी न किसी त्यौहार की तैयारी के लिए बनने वाली मिठाई की लिस्ट समझा रही होती है ...
बहुत सुन रहे थे की आजकल रेअल्टी शोज़ में सच्चाई दिखाते है तो बस इसी उम्मीद में एक चर्चित कार्यक्रम देखने बैठ गए ..शुक्र है अकेले थे अगर परिवार साथ में होता तो शायद तुरंत चैनल बदलते और कहीं छोटे बच्चे होते तो वो हर बीप पर मतलब पूछ कर बैठना मुहाल कर देते.. हमारे बचपन में ११ बजे के बाद दूरदर्शन पर आने वाली फिल्मे भी इनके प्राइम टाइम status को छू नहीं सकती ...
न्यूज चैनल लगाने की हिम्मत की तो कहीं "मुन्नी के बदनाम होने की चर्चा " ,तो कहीं "शीला की जवानी पर गोष्ठी" देख हमको अपने तुच्छ होने का एहसास हुआ और हम अपना सा मुह लेकर वापस लैपटॉप पर आ गए,और फैसला किया जब तक हम इतनी समझ नहीं पैदा कर ले, रिमोट हाँथ में नहीं लेंगे और अगर लेंगे भी तो बस dusting के लिए ...
घबरा कर चैनल बदल दिया सारा मौसम गुलाबी हो गया खूबसूरत सी नायिका अकडू सा हीरो एक दुसरे को प्यार से देखते हुए ..गुदगुदी तो हमारे भी दिल में हुई ..पर ये गुदगुदी धीरे धीरे खीज में बदलने लगी क्या करते ...पूरा ३ मिनट २२ सेकेण्ड एक दुसरे को घूरते रहे और ठंडी आहें भरते रहे ..हमको विशवास हो गया पेमेंट ना मिलने से dialog लेखक बीच में भाग गया है ...
फिर थोड़ी -थोड़ी देर में हर तरफ वही नज़ारा भारी साड़िया,कुंदन के जेवर दिल फुंक कर रह गया जहाँ हम सारा दिन ऑफिस से घर की चक्की में पिसे रहते है वहीँ ये महँ देवियाँ आराम से घर में नौकरों को किसी न किसी त्यौहार की तैयारी के लिए बनने वाली मिठाई की लिस्ट समझा रही होती है ...
बहुत सुन रहे थे की आजकल रेअल्टी शोज़ में सच्चाई दिखाते है तो बस इसी उम्मीद में एक चर्चित कार्यक्रम देखने बैठ गए ..शुक्र है अकेले थे अगर परिवार साथ में होता तो शायद तुरंत चैनल बदलते और कहीं छोटे बच्चे होते तो वो हर बीप पर मतलब पूछ कर बैठना मुहाल कर देते.. हमारे बचपन में ११ बजे के बाद दूरदर्शन पर आने वाली फिल्मे भी इनके प्राइम टाइम status को छू नहीं सकती ...
न्यूज चैनल लगाने की हिम्मत की तो कहीं "मुन्नी के बदनाम होने की चर्चा " ,तो कहीं "शीला की जवानी पर गोष्ठी" देख हमको अपने तुच्छ होने का एहसास हुआ और हम अपना सा मुह लेकर वापस लैपटॉप पर आ गए,और फैसला किया जब तक हम इतनी समझ नहीं पैदा कर ले, रिमोट हाँथ में नहीं लेंगे और अगर लेंगे भी तो बस dusting के लिए ...
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