इतनी नजदीकी अच्छी नहीं
चलो कुछ खफा हो जाती हूँ
अपना ही मज़ा है बेचैन करने का
चलो मैं बे-वफ़ा हो जाती हूँ
तेरे सामने आऊं भी नहीं
तुझे महसूस हर लम्हा रहूँ
मांगे तू भी साथ मेरा शिद्दत से
चलो मैं खुदा सी हो जाती हूँ
कब तक नशीली रात सी रहूँ
होंठो पे छिपी बात सी रहूँ
जान जाए ये ज़माना मुझको
चलो चटख सुबह सी हो जाती हूँ
जितना जानो उतना उलझ जाओ
इतना उलझो ना सुलझ पाओ
ना जाने किस वक्त ज़रुरत पड़े
चलो मैं दुआ सी हो जाती हूँ
कभी देखो तो अनजान लगूं
कभी दिल की मेहमान लगूं
एक झलक देख लो तो दीवाने हो जाओ
चलो मैं उस अदा सी हो जाती हूँ
मैं क्या सोचती हूँ ..दुनिया को कैसे देखती हूँ ..जब कुछ दिल को खुश करता है या ठेस पहुंचाता है बस लिख डालती हूँ ..मेरा ब्लॉग मेरी डायरी है ..जहाँ मैं अपने दिल की बात खुलकर रख पाती हूँ
Sunday, September 26, 2010
Tuesday, September 21, 2010
क्रमश: आगे क्या ?
"अरे काका सठियाय गए हो का ? तनी आपन भेस तो देखा " लल्लन ने चौकते हुए कहा,
"अब इ ससुरा लड़का लोग चैन से रहने भी नहीं देत है आप से मतलब रखे तो ठीक " मन में बडबडाते हुए बिसेसर काका बोले.
"का हुई गवा " गाँव के सबसे बड़े ठलुआ और बिसेसर के हमउम्र निहाल चाचा ने हुक्का गुदगुदाते हुए पूछा,
"तनी काका का भेस तो देखा ,ज़िन्दगी भर सूती कुरता और धोती में निकाल दीन अब साठ के हों को है तो पालिस्टर की शर्ट पैंट पहिन के घूम रहे हैं ".
"साठ के हुई हैं तोहार बाप, हमार तो अभे पचपन भी पूरे नहीं हुए हैं " बिसेसर बाबु तिलमिला गए और जलती निगाओ से लल्लन को देखा तो मुह में खैनी दाबे मुस्कुरा रहा था.
"अरे बिसेसर तोहार तो रंगे दूसरो लग रहो हैं " अब निहाल की भी हसी छुट गई
"आज भोर में ना जाने कौन मनहूस का चेहरा देख लिए थे जो ,जे मनहूस सामने पड़ गए अब ससुर के नाती सामने से हट भी नहीं रहे है , मिस जी इंतज़ार कर रही होंगी " बिसेसर जी के चेहरे से बेचैनी साफ़ झलक रही थी
"कहीं जाय को देर हो रही हो तो हम अपनी फटफटिया पर अभई छोड़ देते है " लल्लन ने जले पर नमक डालते हुए कहा.पर बिसेसर ने अनसुना कर अपने कदम तेजी से प्रौढ़ शिक्षा केंद्र की तरफ बढा दिए .
दो महीने से बिसेसर बाबु स्कूल पढने जा रहे थे और स्कूल में पढाई से ज्यादा उनका ध्यान मिस जी में लगने लगा था,
बड़े भैया,भाभी के गुजरने के बाद उन्होंने दोनों बच्चों की ज़िम्मेदारी अपने सर पर उठा ली,उनको शहर भेजा उनकी पढाई का इन्तेजाम और सारी व्यवस्था करने में उम्र इतनी तेजी से निकल गई शादी के बारे में सोचने का समय ही नहीं मिला,बच्चे अपने में व्यस्त हो गए, काम सँभालने के लिए नौकर चाकर थे ही.
जब जिम्मेदारियां ख़तम हुई तो बिसेसर बाबु को अपने अकेले होने का एहसास सालने लगा, तो बच्चों ने जिद की आप पढ़ लिख लो तो आप का समय भी कटेगा और काम सँभालने में आसानी हो जायेगी.
मिस जी कितनी समझदार हैं कितना आसानी से हमार परेसानी समझ जाती है ,कितना बेर एक प्रश्न पुछो कबही नराज़ नहीं होती, कौनुह अच्छे परिवार से हुई हैं बड़ी संस्कार वाली है, जे गाँव-देहात की लुगाइन की तरह नहीं...कपडा भी सलीका से पहिनती है....मन में सोचते हुए बिसेसर स्कूल पहुँच गए,
क्रमश:
"इस कहानी के लिए मुझे इससे अच्छा शीर्षक नहीं मिला,यहाँ तक तो लिख गई आगे क्या करूँ भ्रमित हूँ ,आप भी अंत लिख डालिए ,मैं अकेली क्यों परेशान हूँ ?
"अब इ ससुरा लड़का लोग चैन से रहने भी नहीं देत है आप से मतलब रखे तो ठीक " मन में बडबडाते हुए बिसेसर काका बोले.
"का हुई गवा " गाँव के सबसे बड़े ठलुआ और बिसेसर के हमउम्र निहाल चाचा ने हुक्का गुदगुदाते हुए पूछा,
"तनी काका का भेस तो देखा ,ज़िन्दगी भर सूती कुरता और धोती में निकाल दीन अब साठ के हों को है तो पालिस्टर की शर्ट पैंट पहिन के घूम रहे हैं ".
"साठ के हुई हैं तोहार बाप, हमार तो अभे पचपन भी पूरे नहीं हुए हैं " बिसेसर बाबु तिलमिला गए और जलती निगाओ से लल्लन को देखा तो मुह में खैनी दाबे मुस्कुरा रहा था.
"अरे बिसेसर तोहार तो रंगे दूसरो लग रहो हैं " अब निहाल की भी हसी छुट गई
"आज भोर में ना जाने कौन मनहूस का चेहरा देख लिए थे जो ,जे मनहूस सामने पड़ गए अब ससुर के नाती सामने से हट भी नहीं रहे है , मिस जी इंतज़ार कर रही होंगी " बिसेसर जी के चेहरे से बेचैनी साफ़ झलक रही थी
"कहीं जाय को देर हो रही हो तो हम अपनी फटफटिया पर अभई छोड़ देते है " लल्लन ने जले पर नमक डालते हुए कहा.पर बिसेसर ने अनसुना कर अपने कदम तेजी से प्रौढ़ शिक्षा केंद्र की तरफ बढा दिए .
दो महीने से बिसेसर बाबु स्कूल पढने जा रहे थे और स्कूल में पढाई से ज्यादा उनका ध्यान मिस जी में लगने लगा था,
बड़े भैया,भाभी के गुजरने के बाद उन्होंने दोनों बच्चों की ज़िम्मेदारी अपने सर पर उठा ली,उनको शहर भेजा उनकी पढाई का इन्तेजाम और सारी व्यवस्था करने में उम्र इतनी तेजी से निकल गई शादी के बारे में सोचने का समय ही नहीं मिला,बच्चे अपने में व्यस्त हो गए, काम सँभालने के लिए नौकर चाकर थे ही.
जब जिम्मेदारियां ख़तम हुई तो बिसेसर बाबु को अपने अकेले होने का एहसास सालने लगा, तो बच्चों ने जिद की आप पढ़ लिख लो तो आप का समय भी कटेगा और काम सँभालने में आसानी हो जायेगी.
मिस जी कितनी समझदार हैं कितना आसानी से हमार परेसानी समझ जाती है ,कितना बेर एक प्रश्न पुछो कबही नराज़ नहीं होती, कौनुह अच्छे परिवार से हुई हैं बड़ी संस्कार वाली है, जे गाँव-देहात की लुगाइन की तरह नहीं...कपडा भी सलीका से पहिनती है....मन में सोचते हुए बिसेसर स्कूल पहुँच गए,
क्रमश:
"इस कहानी के लिए मुझे इससे अच्छा शीर्षक नहीं मिला,यहाँ तक तो लिख गई आगे क्या करूँ भ्रमित हूँ ,आप भी अंत लिख डालिए ,मैं अकेली क्यों परेशान हूँ ?
Friday, September 10, 2010
दिल को निचोड़ कर
दिल को निचोड़ कर दर्द सुखा दिया
दो बूँद टपकी थी पोछा लगा दिया
शिकन बहुत थी करवटों की चादर पर
जोश की इस्त्री से उसको मिटा दिया
नमक की लकीरें पलकों के मुहाने पे
भाप की गर्मी से उड़ा दिया
मुए अरमान चिपक गए कलेजे से
आह भरी और सब पिघला दिया
उनका आसरा था वो आये भी नहीं
हमने भी हमसफ़र को अजनबी बना दिया
कुछ लकीरों ने कुछ हालात ने तय किया
अच्छे खासे इंसान को आशिक बना दिया
दो बूँद टपकी थी पोछा लगा दिया
शिकन बहुत थी करवटों की चादर पर
जोश की इस्त्री से उसको मिटा दिया
नमक की लकीरें पलकों के मुहाने पे
भाप की गर्मी से उड़ा दिया
मुए अरमान चिपक गए कलेजे से
आह भरी और सब पिघला दिया
उनका आसरा था वो आये भी नहीं
हमने भी हमसफ़र को अजनबी बना दिया
कुछ लकीरों ने कुछ हालात ने तय किया
अच्छे खासे इंसान को आशिक बना दिया
Saturday, September 4, 2010
पिघलते है युही अक्सर
पिघलते है युही अक्सर
तेरे आगोश में हम भी
सुलगकर राख होते है
कभी ज्यादा कभी कम भी
युही जब सर्द मौसम में
तन्हाई सताती है
झुलस जाते है अन्दर तक
छू जाए जो शबनम भी
तेरे नज़दीक होने से
गुनगुनाती है मेरी धड़कन
नए से सुर उमड़ते है
कुछ तीव्र कुछ मध्यम भी
छाए हो आकाश में बादल
तेरे आने की आहट हो
सिहर उठते है दस्तक से
मेरे दर भी और दामन भी
तेरे आगोश में हम भी
सुलगकर राख होते है
कभी ज्यादा कभी कम भी
युही जब सर्द मौसम में
तन्हाई सताती है
झुलस जाते है अन्दर तक
छू जाए जो शबनम भी
तेरे नज़दीक होने से
गुनगुनाती है मेरी धड़कन
नए से सुर उमड़ते है
कुछ तीव्र कुछ मध्यम भी
छाए हो आकाश में बादल
तेरे आने की आहट हो
सिहर उठते है दस्तक से
मेरे दर भी और दामन भी
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