कुछ तन्हाई
एक रजाई
बदन तोडती
एक अंगडाई
ठन्डे हाँथ
तपती साँसे
अंगीठी से
गायब गरमाई
मौन मुखर
मुखरित आँखे
मौन अधर
मुखरित जम्हाई
सहज नेह
असहज हो तुम
असहजता को
दे आज बिदाई
रात ढली
तुम आये
जल्दी ढलता
दिन हरजाई
मैं क्या सोचती हूँ ..दुनिया को कैसे देखती हूँ ..जब कुछ दिल को खुश करता है या ठेस पहुंचाता है बस लिख डालती हूँ ..मेरा ब्लॉग मेरी डायरी है ..जहाँ मैं अपने दिल की बात खुलकर रख पाती हूँ
Monday, June 28, 2010
Wednesday, June 23, 2010
इश्क पर लिखूंगी
इश्क पर लिखूंगी ,
हुस्न पर लिखूंगी
दिलों के होने वाले,
हर जश्न पर लिखूंगी
दर्द पर लिखूंगी
मैं आह पर लिखूंगी
जुल्फों की घनी
पनाह पर लिखूंगी
चाँद पर लिखूंगी
और रात पर लिखूंगी
दो जोड़ी आँखों की
हर बात पर लिखूंगी
शमा पर लिखूंगी
मैं परवाने पर लिखूंगी
जलते बुझते
हर अफ़साने पर लिखूंगी
खिड़की पर लिखूंगी
मैं झलक पर लिखूंगी
रात भर ना सोई
उस पलक पर लिखूंगी
जब तक है धड़कन
और गर्म है साँसे
मोहब्बत मोहब्बत
दिन रात मैं लिखूंगी
Sunday, June 20, 2010
साँसों को सिसकने नहीं देते
अपने दर्द को
आँखों में उभरने नहीं देते
उभर भी आये तो
गालों पे बिखरने नहीं देते
इस जद्दोजहद में
भारी हो जाता है दिल
सँभालते है खुदको
धडकनों को सुबकने नहीं देते
मुस्कान गहरी होती जाती है
बढती तकलीफ के साथ
ठहाको में दबा देते है
साँसों को सिसकने नहीं देते
बहुत कोशिशे होती है
हमदर्दों की ,हमराहों की
दिल की उस गहराई में
हम किसी को उतरने नहीं देते
आँखों में उभरने नहीं देते
उभर भी आये तो
गालों पे बिखरने नहीं देते
इस जद्दोजहद में
भारी हो जाता है दिल
सँभालते है खुदको
धडकनों को सुबकने नहीं देते
मुस्कान गहरी होती जाती है
बढती तकलीफ के साथ
ठहाको में दबा देते है
साँसों को सिसकने नहीं देते
बहुत कोशिशे होती है
हमदर्दों की ,हमराहों की
दिल की उस गहराई में
हम किसी को उतरने नहीं देते
Thursday, June 17, 2010
पहली उड़ान है सपनो की
जबसे उसने हथेली में
उगा चाँद देखा है
मैंने उसकी आँखों में
उभरता अरमान देखा है
निकली है पहली बार वो
तनहा सफ़र पर
नाजुक परो ने उसके
विस्तृत आसमान देखा है
पहली उड़ान है सपनो की
साथ दुआए है अपनों की
माँ की आँखों में आज
सुकून और इत्मीनान देखा है
उगा चाँद देखा है
मैंने उसकी आँखों में
उभरता अरमान देखा है
निकली है पहली बार वो
तनहा सफ़र पर
नाजुक परो ने उसके
विस्तृत आसमान देखा है
पहली उड़ान है सपनो की
साथ दुआए है अपनों की
माँ की आँखों में आज
सुकून और इत्मीनान देखा है
Friday, June 11, 2010
मेरी खुद से ही ठन जाती है
कुछ और हुआ मैं करती थी
कुछ और ही अब बन बैठी हूँ
सुन लो तुम्हारे आकर्षण में
खुद से ही लड़ बैठी हूँ
जुल्फ मेरी सुनती ही नहीं
और आंचल भी बेलौस उड़े
जब होंठ मेरे थर्राते है
मुस्काते हो तुम मौन खड़े
माथे पे पसीने की बूंदे
मोती सी दमकने लगती है
बढती धड़कन के साथसाथ
अब सांस दहकने लगती है
तुमने क्या सोचा खो दूँगी
खुद को इस हलचल में
मुझको तुम पा जाओगे
चाहत के उस एक पल में
माना पलकें ऊपर उठने में
मन भर बोझ उठाती है
खुद को वापस पाने में अक्सर
मेरी खुद से ही ठन जाती है
कुछ और ही अब बन बैठी हूँ
सुन लो तुम्हारे आकर्षण में
खुद से ही लड़ बैठी हूँ
जुल्फ मेरी सुनती ही नहीं
और आंचल भी बेलौस उड़े
जब होंठ मेरे थर्राते है
मुस्काते हो तुम मौन खड़े
माथे पे पसीने की बूंदे
मोती सी दमकने लगती है
बढती धड़कन के साथसाथ
अब सांस दहकने लगती है
तुमने क्या सोचा खो दूँगी
खुद को इस हलचल में
मुझको तुम पा जाओगे
चाहत के उस एक पल में
माना पलकें ऊपर उठने में
मन भर बोझ उठाती है
खुद को वापस पाने में अक्सर
मेरी खुद से ही ठन जाती है
Wednesday, June 9, 2010
कल रुत तुमको तरसाए
नभ में उमड़े घन बड़े
बिजली भी बिन बात लड़े
तुम भी रूठे-रूठे से
बोलो कैसे बात बढे
बूंदे छेड़े जब मुझको
हवा दिखाए रंग नए
तुम्हे लगा मैं भूल गई
तुम भी तो थे संग खड़े
मेघ सदा बरसाए मद
जब तुम मेरे साथी हो
कैसे ना मदहोश हो हम
नयन तुम्हारे साकी हो
ऐसा ना हो तन भीगे
मन सूखा सा रह जाए
आज मुझे तड़पाते हो
कल रुत तुमको तरसाए
बिजली भी बिन बात लड़े
तुम भी रूठे-रूठे से
बोलो कैसे बात बढे
बूंदे छेड़े जब मुझको
हवा दिखाए रंग नए
तुम्हे लगा मैं भूल गई
तुम भी तो थे संग खड़े
मेघ सदा बरसाए मद
जब तुम मेरे साथी हो
कैसे ना मदहोश हो हम
नयन तुम्हारे साकी हो
ऐसा ना हो तन भीगे
मन सूखा सा रह जाए
आज मुझे तड़पाते हो
कल रुत तुमको तरसाए
Saturday, June 5, 2010
मेरे बिना (कहानी)
शाम से अब तक तीन डिब्बी सिगरेट फूंक चुका हूँ ,मुह का स्वाद इतना कडुवा हो चुका है की सामान्य में मुह का स्वाद कैसा होता है याद ही नहीं ...शायद यही कडवाहट मेरी रगों में भी घुल गई है, बिना झुंझलाए बात नहीं कर पाता हूँ, विधि दो तीन बार खाने को पूछ चुकी है, प्लेट चम्मच की आवाज़ आ रही है शायद वो खाना खा रही है ...मेरे बिना ....
दो बज रहे है,कमरे में अन्धेरा है नीली रौशनी फैली है,एक कोने में सिमट कर लेटी है ,विधि हमेशा से ऐसे ही सोती है ,मेरे बिना कभी सोने नहीं जाती थी ,मान कर मनुहार कर कैसे भी लैपटॉप बंद करवा देती,पिछली बार कितनी बुरी तरह झिड़क दिया था ,सहम कर चली गई थी आँखों में दर्द उतर आया था मैंने अनदेखा कर दिया, पता नहीं सोई है या बहाना कर रही है..... नहीं सो चुकी है वो
मेरे बिना........
सुबह आँख देर से खुली ,विधि कमरे में नहीं है ..पता नहीं क्यों उठ कर उसको देखने लगा टेबल पर चिट्ठी पड़ी है ...विधि की तरह अल्पभाषी ... पर सटीक
"जानती हूँ तुम परेशान हो ,पर तुम्हारे बताये बिना तो नहीं जान पाउंगी, इस तरह तुम अपने आप को और मुझे दोनों को तकलीफ दे रहे हो ,सुख का समय साथ बिताया है हमने, फैसला तुम्हारा है,इस दौर का सामना कैसे करना है ... मेरे साथ या मेरे बिना ."
तुम्हारे बिना कभी नहीं ...विधि , मैं बुदबुदाता हुआ विधि को बाहों में भर लेता हूँ
दो बज रहे है,कमरे में अन्धेरा है नीली रौशनी फैली है,एक कोने में सिमट कर लेटी है ,विधि हमेशा से ऐसे ही सोती है ,मेरे बिना कभी सोने नहीं जाती थी ,मान कर मनुहार कर कैसे भी लैपटॉप बंद करवा देती,पिछली बार कितनी बुरी तरह झिड़क दिया था ,सहम कर चली गई थी आँखों में दर्द उतर आया था मैंने अनदेखा कर दिया, पता नहीं सोई है या बहाना कर रही है..... नहीं सो चुकी है वो
मेरे बिना........
सुबह आँख देर से खुली ,विधि कमरे में नहीं है ..पता नहीं क्यों उठ कर उसको देखने लगा टेबल पर चिट्ठी पड़ी है ...विधि की तरह अल्पभाषी ... पर सटीक
"जानती हूँ तुम परेशान हो ,पर तुम्हारे बताये बिना तो नहीं जान पाउंगी, इस तरह तुम अपने आप को और मुझे दोनों को तकलीफ दे रहे हो ,सुख का समय साथ बिताया है हमने, फैसला तुम्हारा है,इस दौर का सामना कैसे करना है ... मेरे साथ या मेरे बिना ."
तुम्हारे बिना कभी नहीं ...विधि , मैं बुदबुदाता हुआ विधि को बाहों में भर लेता हूँ
Thursday, June 3, 2010
बाद मुद्दत के पहलू में सनम आया है
हंसकर जबसे गले लगाया है
चाँद आँखों में उतर आया है
पड़े गालों में दो भंवर गहरे
डूबकर कौन उबर पाया है
कुछ हया अदा में शामिल है
और कुछ अदा से शर्माती भी है
झिड़क देती है शरारत से
कभी तेवर नए दिखाती भी है
उँगलियों से सुलझा देती है
कभी जुल्फों में मुझे उलझाया है
कोई बात नहीं बस ख़ामोशी रहे
बाद मुद्दत के पहलू में सनम आया है
चाँद आँखों में उतर आया है
पड़े गालों में दो भंवर गहरे
डूबकर कौन उबर पाया है
कुछ हया अदा में शामिल है
और कुछ अदा से शर्माती भी है
झिड़क देती है शरारत से
कभी तेवर नए दिखाती भी है
उँगलियों से सुलझा देती है
कभी जुल्फों में मुझे उलझाया है
कोई बात नहीं बस ख़ामोशी रहे
बाद मुद्दत के पहलू में सनम आया है
Wednesday, June 2, 2010
जब कविता रचनी होती है
जब कविता रचनी होती है
मत पूछो क्या क्या करते है
हर लम्हा हर पल हम
किस वेदना** से गुज़रते है
भावो से मिलते शब्द चुने
लय गति के संयोजन से
तुक मिला मिला कर गीत बुने
सार्थक रचने के प्रयोजन से
कभी लगा पहली पंक्ति हलकी
अंतिम वाली भारी है
माध्यम पंक्ति स्वयं बन गई
जिसके हम बलिहारी है
रचना को ठेल ब्लॉग पर
राहत की साँसे भरते है
आप जब कुछ लिखते है
तो क्या ऐसा ही करते है
**यहाँ प्रसव वेदना लिखना चाह रही थी
मत पूछो क्या क्या करते है
हर लम्हा हर पल हम
किस वेदना** से गुज़रते है
भावो से मिलते शब्द चुने
लय गति के संयोजन से
तुक मिला मिला कर गीत बुने
सार्थक रचने के प्रयोजन से
कभी लगा पहली पंक्ति हलकी
अंतिम वाली भारी है
माध्यम पंक्ति स्वयं बन गई
जिसके हम बलिहारी है
रचना को ठेल ब्लॉग पर
राहत की साँसे भरते है
आप जब कुछ लिखते है
तो क्या ऐसा ही करते है
**यहाँ प्रसव वेदना लिखना चाह रही थी
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