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Monday, June 28, 2010

दिन हरजाई

कुछ तन्हाई

एक रजाई

बदन तोडती

एक अंगडाई

ठन्डे हाँथ

तपती साँसे

अंगीठी से

गायब गरमाई

मौन मुखर

मुखरित आँखे

मौन अधर

मुखरित जम्हाई

सहज नेह

असहज हो तुम

असहजता को

दे आज बिदाई

रात ढली

तुम आये

जल्दी ढलता

दिन हरजाई

Wednesday, June 23, 2010

इश्क पर लिखूंगी


इश्क पर लिखूंगी ,

हुस्न पर लिखूंगी
दिलों के होने वाले,
हर जश्न पर लिखूंगी

दर्द पर लिखूंगी

मैं आह पर लिखूंगी
जुल्फों की घनी
पनाह पर लिखूंगी

चाँद पर लिखूंगी

और रात पर लिखूंगी
दो जोड़ी आँखों की
हर बात पर लिखूंगी

शमा पर लिखूंगी
मैं परवाने पर लिखूंगी
जलते बुझते
हर अफ़साने पर लिखूंगी

खिड़की पर लिखूंगी
मैं झलक पर लिखूंगी
रात भर ना सोई
उस पलक पर लिखूंगी

जब तक है धड़कन
और गर्म है साँसे
मोहब्बत मोहब्बत
दिन रात मैं लिखूंगी

Sunday, June 20, 2010

साँसों को सिसकने नहीं देते

अपने दर्द को


आँखों में उभरने नहीं देते

उभर भी आये तो

गालों पे बिखरने नहीं देते

इस जद्दोजहद में

भारी हो जाता है दिल

सँभालते है खुदको

धडकनों को सुबकने नहीं देते

मुस्कान गहरी होती जाती है

बढती तकलीफ के साथ

ठहाको में दबा देते है

साँसों को सिसकने नहीं देते

बहुत कोशिशे होती है

हमदर्दों की ,हमराहों की

दिल की उस गहराई में 

हम किसी को उतरने नहीं देते

Thursday, June 17, 2010

पहली उड़ान है सपनो की

जबसे उसने हथेली में

 उगा चाँद देखा है
मैंने उसकी आँखों में
उभरता अरमान देखा है

निकली है पहली बार वो
तनहा सफ़र पर
नाजुक परो ने उसके 
विस्तृत आसमान देखा है

पहली उड़ान है सपनो की
साथ दुआए है अपनों की
माँ  की आँखों में आज
सुकून और इत्मीनान देखा है

Friday, June 11, 2010

मेरी खुद से ही ठन जाती है

कुछ और हुआ मैं करती थी


कुछ और ही अब बन बैठी हूँ

सुन लो तुम्हारे आकर्षण में

खुद से ही लड़ बैठी हूँ

जुल्फ मेरी सुनती ही नहीं

और आंचल भी बेलौस उड़े

जब होंठ मेरे थर्राते है

मुस्काते हो तुम मौन खड़े

माथे पे पसीने की बूंदे

मोती सी दमकने लगती है

बढती धड़कन के साथसाथ

अब सांस दहकने लगती है

तुमने क्या सोचा खो दूँगी

खुद को इस हलचल में

मुझको तुम पा जाओगे

चाहत के उस एक पल में

माना पलकें ऊपर उठने में

मन भर बोझ उठाती है

खुद को वापस पाने में अक्सर

मेरी खुद से ही ठन जाती है

Wednesday, June 9, 2010

कल रुत तुमको तरसाए

नभ में उमड़े घन बड़े


बिजली भी बिन बात लड़े

तुम भी रूठे-रूठे से

बोलो कैसे बात बढे

बूंदे छेड़े जब मुझको

हवा दिखाए रंग नए

तुम्हे लगा मैं भूल गई

तुम भी तो थे संग खड़े

मेघ सदा बरसाए मद

जब तुम मेरे साथी हो

कैसे ना मदहोश हो हम

नयन तुम्हारे साकी हो

ऐसा ना हो तन भीगे

मन सूखा  सा रह जाए

आज मुझे तड़पाते हो

कल रुत तुमको तरसाए

Saturday, June 5, 2010

मेरे बिना (कहानी)

शाम से अब तक तीन डिब्बी सिगरेट फूंक चुका हूँ ,मुह का स्वाद इतना कडुवा हो चुका है की सामान्य में मुह का स्वाद कैसा होता है याद ही नहीं ...शायद यही कडवाहट मेरी रगों में भी घुल गई है, बिना झुंझलाए बात नहीं कर पाता हूँ, विधि दो तीन बार खाने को पूछ चुकी है, प्लेट चम्मच की आवाज़ आ रही है शायद वो खाना खा रही है ...मेरे बिना ....


दो बज रहे है,कमरे में अन्धेरा है नीली रौशनी फैली है,एक कोने में सिमट कर लेटी है ,विधि हमेशा से ऐसे ही सोती है ,मेरे बिना कभी सोने नहीं जाती थी ,मान कर मनुहार कर कैसे भी लैपटॉप बंद करवा देती,पिछली बार कितनी बुरी तरह झिड़क दिया था ,सहम कर चली गई थी आँखों में दर्द उतर आया था मैंने अनदेखा कर दिया, पता नहीं सोई है या बहाना कर रही है..... नहीं सो चुकी है वो

मेरे बिना........

सुबह आँख देर से खुली ,विधि कमरे में नहीं है ..पता नहीं क्यों उठ कर उसको देखने लगा टेबल पर चिट्ठी पड़ी है ...विधि की तरह अल्पभाषी ... पर सटीक

"जानती हूँ तुम परेशान हो ,पर तुम्हारे बताये बिना तो नहीं जान पाउंगी, इस तरह तुम अपने आप को और मुझे दोनों को तकलीफ दे रहे हो ,सुख का समय साथ बिताया है हमने, फैसला तुम्हारा है,इस दौर का सामना कैसे करना है ... मेरे साथ या मेरे बिना ."



तुम्हारे बिना कभी नहीं ...विधि , मैं बुदबुदाता हुआ विधि को बाहों में भर लेता हूँ

Thursday, June 3, 2010

बाद मुद्दत के पहलू में सनम आया है

हंसकर जबसे गले लगाया है

चाँद आँखों में उतर आया है
पड़े गालों में दो भंवर गहरे
डूबकर कौन उबर पाया है

कुछ हया अदा में शामिल है
और कुछ अदा से शर्माती भी है
झिड़क देती है शरारत से
कभी तेवर नए दिखाती भी है

उँगलियों से सुलझा देती है
कभी जुल्फों में मुझे उलझाया है
कोई बात नहीं बस ख़ामोशी रहे
बाद मुद्दत के पहलू में सनम आया है

Wednesday, June 2, 2010

जब कविता रचनी होती है

जब कविता रचनी होती है


मत पूछो क्या क्या करते है

हर लम्हा हर पल हम

किस वेदना** से गुज़रते है


भावो से मिलते शब्द चुने

लय गति के संयोजन से

तुक मिला मिला कर गीत बुने

सार्थक रचने के प्रयोजन से


कभी लगा पहली पंक्ति हलकी

अंतिम वाली भारी है

माध्यम पंक्ति स्वयं बन गई

जिसके हम बलिहारी है


रचना को ठेल ब्लॉग पर

राहत की साँसे भरते है

आप जब कुछ लिखते है

तो क्या ऐसा ही करते है



**यहाँ प्रसव वेदना लिखना चाह रही थी