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Friday, April 30, 2010

वो सहता गया....


दर्द उसको भी होता था

खून उसका भी रिसता  था
तुम जख्म देते गए
वो सहता गया

तुम दोस्ती के नाम पर
मांगते रहे कुर्बानियाँ
वो तुम्हारे भरोसे पर
हर लम्हा साथ देता गया


तुमने मिटा दिया
उसने आह भी ना निकाली
ये दोस्ती का है इम्तिहान
हँस के वो कहता गया..

Tuesday, April 27, 2010

डर लगता है

मुझे खुश होने से डर लगता है,

जो न पाया उसे खोने से डर लगता है

मेरे अश्क बनके तेज़ाब न जला दे मुझको

इसलिए रोने से डर लगता है



महफ़िल में भी सन्नाटा सुनती हूँ

मुझे तनहा होने से डर लगता है

ख्वाब टूटकर चुभेंगे ज़िन्दगी भर

मुझको सोने से डर लगता है



तुम्हारी याद काफी है मेरे लिए

तुम्हारे साथ होने से डर लगता है

पता नहीं किस बात पे शर्मिन्दा हूँ

मुझे अपने ज़िंदा होने से डर लगता है

Sunday, April 25, 2010

कायर(कहानी)

एक


आज समाजशास्त्र की किताब पढ़ते हुए ,मेरा शारीर तो वही रह गया और मन पंख लगा कर उड़ गया, जरुरी पंक्तिया रेकंकित करते हुए न जाने कब किताब के आखिरी पन्ने पर तुम्हे उकेरने लगा,मुझे हमेशा ऐसा लगता है, तुम्हे मेरे से अच्छा कोई भी तस्वीर में नहीं उतार सकता,

शुरुवात तुम्हारी आँखों से की कितनी गहरी ,रेखाए तो खींच दी पर उनकी शरारत और भोलापन...चलो वो मेरी नज़र में है वैसे भी तस्वीर अपने लिए बना रहा हूँ .

तुम कैमरे से शर्माती क्यों हो सोचती हो तुम्हारी रुसवाई ना हो जाए पर तुम मेरे लिए बस एक युवा देह नहीं हो तुम्हारे लिए मेरा आकर्षण हमारे शरीरों के पुष्पित होने से पहले का है ,मैं समझाता हूँ तो तुम झिड़क कर कहती हो "सारे लड़के एक से ही होते है ", मुझे देखो महसूस करो मैं सब जैसा नहीं हूँ ....

प्रेमी नहीं अब मैं तुम्हारा उपासक बन गया हूँ,तुम्हारी एक मुस्कराहट से उम्र काट सकता हूँ .



दो

तुम सिसक रही हो ,मैं तुम्हारे आंसूं भी नहीं पोछ पा रहा हूँ ,कितने सवाल तुम्हारी आँखों में है ,सदमें में आ गया था जब तुमने कहा था एक नया रिश्ता तुम्हारे अन्दर सांस लेने लगा है,तुमने कितने विश्वास से कहा था मुझसे चलो ज़िन्दगी शुरू करेंगे और मैं आसमान से ज़मीन पर एक पल में आ गया था ,मेरी दोनों बहने अभी कुँवारी है ...रिश्ते कैसे होंगे ,जॉब भी नहीं है ...पढ़ाई का एक साल भी बाकी है अभी कैसे ...

तुम होठ वक्र करके कहती हो "कैसे " ये तुमने उस समय क्यों नहीं सोचा जब ..अपने वासना रहित प्रेम का विश्वास दिला कर मुझसे समर्पण माँगा था और कहा था "मैं सब जैसा नहीं हूँ " कायर

तीन

बाइस साल बीत गए .. तुम आज सामने खड़ी हो एक स्वनाम धन्य लेखिका ,समाज सेविका के रूप में जिसका जीवन वृत अपने आप में उदाहरण बन गया,अपनी संतान को बहुरास्ट्रीय कंपनी के उच्च पद पर बैठा कर स्वयं ज़मीन से जुड़ गई,हिंदी दिवस पर तुम्हारे सम्मान में ये आयोजन है ,मुझे स्वागत भाषण देना है , मेरे हाँथ काँप रहे है अतीत तेजी से आँखों के सामने घूम रहा है. तुम गुलदस्ता स्वीकार करती हो ..तम्हारे होंठो पर वह वक्र मुस्कराहट दौड़ जाती है .

मैं बौना होता जा रहा हूँ ..तुम्हारा कद आसमान छू रहा है ...मैं विचार शून्य हो गया हूँ ,तुम्हारे सामने खड़ा नहीं हो पा रहा .....मैं धीमे क़दमों से निकल जाता हूँ .... एक कायर की तरह

Thursday, April 22, 2010

तुमको याद ना हो

बहुत मुमकिन है

तुमको याद ना हो

तुम्हारी डायरी के

इक्किस्वे पन्ने पर

एक सूखा गुडहल

जो तुमने अपने हांथो से लगाया था

मेरे जूडे में

फिर मान के निशानी

दबा दिया डायरी में

उसकी साँसे

कल तक बाकि थी

आज ही दम तोडा है

अपने रिश्ते के साथ

अब शायद मुझको भी

दफ़न कर दोगे

मानकर निशानी

और भुला दोगे

जान कर याद पुरानी

Wednesday, April 14, 2010

कुछ लम्हे

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हाँथ रख कर मांथे पर


ताप क्यों देखते हो


मेरी आँखों में देखो


भाप की बूंदे उभर आई है


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अपनी किस्मत आजमा सकती


नई नज़्म गुनगुना सकती


एक पल को ही सही


शायद मैं मुस्कुरा सकती


.....................................


आशाओं और उम्मीदों से


ज़िंदा हूँ मैं


वो समझते है


साँसों का चलना ज़िन्दगी है


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Thursday, April 8, 2010

आशा बाकी है लाडली

(यह कविता श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता अंक- 7 में चयनित हुई तो सोचा आप सब के साथ बाँट लूं )


अभी आशा बाकी है लाडली


कुहासा छटेगा धूप निकलेगी

बाहें फैला कर भर लेना तुम

सारी सीलन उड़ जायेगी



अभी कंधो में दम है

तेरे चलने तक उठा सकती हूँ

घबराना नहीं मेरी गुडिया

अँधेरे को मिटा सकती हूँ



तेरी छुअन के सहारे

मैं इतनी देर जी सकी हूँ

तेरी मुस्कान के दम से

सारे विष पी सकी हूँ

Wednesday, April 7, 2010

संवेदनाये मर चुकी है

संवेदनाये  मर चुकी है


लाशें जवानो पड़ी है

फुर्सत कहाँ हमको

सान्या- शोइब से आगे सोचे

भावनाए बिक चुकी है



जो बुद्धू बक्सा दिखाए

उसे सच मानते है

हैदराबाद के दंगे का कारण

कितने जानते है

सोच कुंद हो चुकी है



जब तक हमारे मुह पर

चांटा नहीं पड़ेगा

दर्द नहीं महसूस करेंगे

"ओह बुरा हुआ "कहकर

हाँथ झाड लेंगे



इंसानियत मिट चुकी है

Tuesday, April 6, 2010

अजीब लड़की (अंतिम किस्त )

आज ही परीक्षा ख़त्म हुई थी ,कालेज से आकर सीधे बिस्तर पर पड़ गई आखिर पिछले १५ दिनों की नींद जो पूरी करनी थी, उफ़ कैसे विचित्र सपने देख रही थी मैं सूनसान सड़क पर जा रही हूँ अचानक एक अजगर दिखाई देता है उसकी शक्ल किसी से मिल रही है...अरे ये तो मधु जैसा है घबराकर मेरी नींद खुली तो देखा नौ बज रहे है ....

"कोई बुरा सपना देखा क्या?" निधि ने मेरे माथे पर हाँथ रखते हुए पूछा , शायद थकान का असर होगा मैंने मुह धोते हुए सोचा ......कहाँ है मधु ..ये लड़की भी अजीब है मन मेरे पेपर चल रहे है पर एक बार मिल तो जाती देखती हूँ ......मधु के कमरे पर बड़ा सा ताला लटक रहा था, कहाँ गई होगी मैंने उसकी रूममेट लता से पूछा ..

कहीं बाहर गई होगी उसकने मुस्कुराते हुए जवाब दिया ....

अरे होस्टल का गेट तो बंद हो जाएगा १० मिनट में उसके पास तो मोबाइल भी नहीं है कैसे आएगी अन्दर ,

"आप क्यों खून सुखा रही हो ..मज़े करो आज पेपर ख़त्म हुए हैं ." लता बोली

...मैं डिनर के लिए चली गई .रात के ११ बजे उस लड़की का कोई पता नहीं ,सारी लडकिया मूवी देखने के लिए टी वी रूम में थी ....मेरी रूचि टी वी में समाचार से ज्यादा कभी नहीं रही ,मैंने शिवानी की कृष्णकली उठाई और बालकोनी में बैठकर पढने लगी ...इतनी रोचक किताब होने पर भी मन कही ना कही मधु में अटका था पता नहीं कहाँ होगी, कुछ परेशानी में तो नहीं फस गई , हे इश्वर किसी को कोई फिक्र नहीं है , क्रश्न्काली के लास्य में मैं ऐसी बंध गई की समय का पता नहीं चला, अचानक किसी ने मेरे कंधे पर हाँथ रखा ..मैंने सकपका कर देखा तो निधि थी .."यहाँ क्या कर रही हो "
""मधु नहीं आई अभी तक, पता नहीं कहाँ रह गई कोई contact करने का ज़रिया भी नहीं है ,मुझे फिकर हो रही है " मैंने बेचैन स्वर में निधि से कहा .
"आप मेरे साथ चलो " निधि ने द्रढ़ता से मेरा हाँथ  पकड़ लिया ..मैंने बहुत पूछा निधि बोली बस चुपचाप चलो

निधि मुझे होस्टल के गाते के पास बने चौकीदार के कमरे के पास ले गई ,मैंने कुछ बोलना चाहा तो निधि ने होंठ पर ऊँगली रख कर चुप रहने का इशारा किया,हलके  हाँथ से उसने अधखुली खिड़की हो थोड़ा और खोल दिया ...अब स्तब्ध होने की मेरी बारी थी ...मधु कुर्सी पर आराम से बैठी थी सामने चौकीदार मोहन बैठा था ...दोनों ठहाके लगा रहे थे ...बात तो समझ में नहीं आ रही थी पर ये साफ़ दिख रहा था दोनों आपस में बहुत घुले मिले है ....

मैं अपने आप को मूर्ख सा महसूस कर रही थी पिछले २ घंटे से मैं जिसकी सलामती के लिए हलकान हुई जा रही थी वो भली चंगी सामने बैठी थी ...

निधि ने धीरे से मेरा कंधा दबाया और ऊपर चलने का इशारा किया ..सारे सवाल मेरे चहरे पर छपे हुए थे .....

"ये सब क्या है , तुम लोग सब जानती थी तो मुझे क्यों नहीं बताया " मैंने निधि और मधु की रूम मेट लता से पूछा

"आपकी परीक्षाओं की वजह से आपको नहीं बताया " निधि ने बात शुरू करते हुए कहा ...... और आगे का रहस्योद्घाटन तो मेरे लिए किसी रोमांचक उपन्यास से कम नहीं था .....

मधु अपने आप में पूरा झूठ का पुलिंदा थी , उसके पिता जीवित थे , जो उसके बैंक अकाउंट में पैसे जमा करवाते थे ....उसको कोई हार्ट की बिमारी नहीं थी और उस रात उसने जो नाटक किया वो मेरी संवेदना जीतने के लिए किया, उससे मेरी बेरुखी बर्दाश्त नहीं हो रही थी ,बाद में अपनी विजयगाथा उसने डिनर पर बड़ी निर्लज्जता से सबको बताई थी ..और दवा मैंने उसे दी depression की थी जो कोई भी मेडिकल स्टोर से ला सकता है ..उस दिन डॉक्टर ने भी उससे हार्ट की रिपोर्ट्स मांगी जो आजतक उसने नहीं दिखाई.......

"और वो मोहन के पास क्या कर रही है " ये रहस्य मुझे मार रहा था .

"अरे वो उसको पटा कर रखती है " लता बोली , देर रात दोस्तों के साथ घूमकर आती है तो मोहन बिना वार्डन को बताये गेट खोल देता है ..उसका छोटा मोटा काम भी कर देता है .

"हम तो आप को आज भी ना बताते पर आपका मधु प्रेम कुछ ज्यादा बढ़ गया था ..हमने आपको कई बार इशारे भी दिए पर आप तो सुनने को तैयार नहीं " निधि हँसते हुए बोली

मेरी आँखों के सामने निधि की वो मुस्कान आई जो मैं इग्नोर नहीं कर पाई थी ........

हम लेखको के साथ के बड़ी समस्या है हम "क्या है" से तृप्त नहीं होते हमको "क्यों " का जवाब भी चाहिए ..सारी रात करवटों में बीती कितनी भावनाए कितने समीकरण ..क्या पता वो मानसिक रूप से बीमार हो , किसी कुंठा के चलते वो ऐसा व्यवहार कर रही हो , शायद अपने परिवार से प्यार ना मिला हो ................ मैं शायद उसकी मदद कर पाऊं, भावनाओं का तूफ़ान सारी रात चलता रहा बीच बीच में ...कुछ गर्म बूंदे आँखों की कोरों से टपक भी गई

सुबह तक दिल दिमाग की लड़ाई में दिमाग हावी हो गया . मैं किसी अनजान लड़की के लिए इस सीमा तक जा सकती हूँ ...ये तो वो झूठ है जो लोगों को पता है अभी ना जाने उसके अस्तित्व और चरित्र की कितनी परते और खुले .... और ना जाने किस  किस तरीके से मेरी भावनाओं का फायदा उठाये

मैं उस अजीब लड़की को वही छोड़ कर आगे बढ़ गई ....किसी मोड़ पर वो मुझे फिर मिली तो जरूर बताउंगी

Sunday, April 4, 2010

अजीब लड़की (२)



मेरे कमरे में उसकी उपस्थिति मानो किसी कुर्सी मेज की तरह थी मैं उसे पूरी तरह उपेक्षा दे रही थी ..मैं अपनी पढ़ाई में कोई भी व्यवधान नहीं चाहती थी,हालाँकि खाने के समय वो चुप्पी तोड़ने की बहुत कोशिश करती, ऐसा नहीं था मैं उससे जानबूझ कर रुखाई से पेश आ रही थी...पर मैं सहज नहीं थी ..



एक दिन आधी रात किसी की सिसकियों ने मुझे जगा दिया,लगा हॉस्टल में सुनाई जाने वाली कहानी की नायिका जिसने पता नहीं कितने साल पहले आत्महत्या कर ली थी
कही सूनसान होस्टल में वापस तो नहीं आ गई ,मैं हनुमान चालीसा शुरू करती उससे पहले साथ वाले पलंग पर कुछ हलचल महसूस की ..हाँ वो मधु ही थी,असमंजस में पड़ गई क्या करू दम साधे पड़ी रहूँ या पूछूं १० मिनट बाद दिल दिमाग पर हावी हुआ, हिम्मत कर के लाइट जलाई...मधु ने एक दवा की शीशी की ओर इशारा किया वो तकलीफ में थी अगले दो घंटे तक मेरे होश फाख्ता रहे उसने बताया उसे हार्ट की तकलीफ है उसके सुकून के सोने के बाद ही मैं सो पाई .

अपने में गहरा अपराधबोध महसूस किया,किसी को जाने बिना किसी के बारे में राय क्यों बना ली..उस रात के बाद मैं उसके साथ सहज हो गई मेरे खाली समय में वो अपने किस्से सुनाती मैं भी मुस्कुरा कर हामी भरती.

१ हफ्ते के लिए घर जाना था पड़ोस के रूम की नेहा को मधु को सौंप कर मैं चली गई ..घर पहुँच कहाँ कुछ याद रहता है बस माँ के हाँथ का खाना और आराम जब होस्टल लौटी तो पूरी रौनक वापस थी,सारी लडकिया आ चुकी थी और होस्टल गुलज़ार था,निधि दौड़ कर गले मिली और उससे ज्यादा प्यार से मधु ..निधि के चेहरे पर अजीब सी आश्चर्य मिश्रित मुस्कान फ़ैल गई जिसे मैं इग्नोर नहीं कर पाई, खाना खाने के बाद मैं निधि से गप्पे लगा ही रही थी हॉस्टल में शोर फ़ैल गया मधु की तबियत फिर खराब हो गई थी ,डॉक्टर को बुलाया गया था उस अजीब लड़की के परिवार के किसी सदस्य का नंबर नहीं था रिकॉर्ड में जो नंबर था वो गलत था,वो रोये जा रही थी डॉक्टर इंजेक्शन लगाकर चला गया ,मेरा मन करुना से भर गया इश्वर क्यों करता है किसी के साथ ऐसा, मैंने अपने मन की बात और लड़कियों से बांटने की कोशिश की तो सबने मुझे इन सब मामलों ना पड़कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा ,कितनी स्वार्थी है दुनिया ........

ये घटनाएं मुझे उसके और करीब ले आई,मैं उसका ख़ास ख्याल रखने लगी शायद सब ऐसा ही चलता रहता पर उस दिन की घटना ने मुझे और मेरे विश्वास को हिला कर रख दिया ................................................................


क्रमश:

Saturday, April 3, 2010

अजीब लड़की (भाग १)

वो मुझे हमेशा बहुत अजीब सी लगती..पता नहीं क्यों कुछ मरदाना सा चेहरा लंबा कद चौड़े कंधे , नारीसुलभ कोमलता का पूरी तरह अभाव ,बोली अभी अजीब सी मानो आवाज़ को खींच रही हो, होस्टल में सबके साथ घुलती मिलती पर मुझे वो अपनापन सहज नहीं लगता, यहाँ तक उसका छूना मुझे किसी पुरुष के स्पर्श की याद दिलाता और मैं और विचलित हो उठती .

मैं अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहती, वो होस्टल की लड़कियों को अपनी कहानी सुनाती ..उसकी कहानी किसी फिल्म की कहानी की तरह लगती बचपन में पिता गुज़र गए माँ ने दूसरी शादी की नये पिता ने प्यार नहीं दिया, अब इस हॉस्टल में उसके कुछ अपने से लगने वाले लोग मिले है,
कालेज बंद होने पर २ माह के लिए होस्टल लगभग खाली हो गया..
एक हफ्ता घर पर बिताने के बाद जब मैं होस्टल वापस आई तो मेरे साइड वाले पलंग पर मधु को पाया , मधु अजीब लड़की का नाम मधु था, मेरी रूममेट निधि अपना बिस्तर उसको सौंप गई थी ,

अकेले सुनसान होस्टल में रहने की हिम्मत ना तो उसमे थी और ना मुझमें ..तो मजबूरी में मुस्कुरा कर समझोता कर लिया..वैसे भी सारा दिन प्रतियोगिताओं की तैयारी में बीतना था ..अपने आप को मन ही मन तैयार कर लिया उसके साथ रहने के लिए ....

क्रमश:

Friday, April 2, 2010

अभी और जीना है

कुछ ख्वाब टूटे हुए

कुछ अपने छूटे हुए
टूटे को सहेजना है
छूटे को टेरना है


कुछ खुशबुए बिखरी हुई

कुछ लटें उलझी हुई
खुशबूं को समेटना है
लटों को सवारना है

कुछ जख्म रिसते हुए

कुछ अश्क छलके हुए
जख्मों को सीना है
अश्कों को पीना है


सब संवर जाएगा

मेरा रूप निखार जाएगा
साथ दे दो मेरा
मुझे अभी और जीना है

Thursday, April 1, 2010

ठहरी ज़िन्दगी

मेरे घर के आँगन में
धुप तिरछी पड़ती थी
ठीक नौ बजे नौबजिया
की कली खिलती थी

सुबह स्कूल जाने

की हडबडाहट में
गर्म दाल चावल से अक्सर
ऊँगली और जीभ जलती थी

निकलना देर से

और पहुँचने की जल्दी में
कच्ची पगडण्डी पे कितनी बार
गिरती संभालती थी

बरस बीत गए लेकिन

ज़िन्दगी आज भी
इमली के पेड़ तले
ठहरी मिलती है