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Tuesday, March 30, 2010

हनुमान जयंती




हनुमान जी को अगर एक व्यक्तित्व के रूप में देखा जाए तो बहुत कुछ समझ में आता है ...अपरिमित शक्ति , साहस, बल धैर्य के साथ प्रेरणा पुंज, एक वानर जो अजर अमर है हज़ारों सालों के बाद भी उनके प्रति श्रधा वैसी ही है, सिक्स पैक एब्स बनाने वाला हो या अखाड़े का पहलवान ...सब को प्रेरणा देते है बजरंगबली...

रात के अँधेरे में अपने आप मुह से हनुमान चालीसा निकलने लगती है ,कितने गहरे तक हमारे मन में बसे हुए है पवनसुत की कोई भी भय हो उनका नाम लेते ही दूर हो जाएगा, एक इश्वर होने के बाद भी बहुत करीब लगते है.

जय हनुमान फिल्म के बाद तो छोटे छोटे बच्चों के लिए देसी सुपरमेन बन गए है . हनुमान जी आपसभी के शोक भय दूर करे

आप सभी को हनुमान जयंती की बधाई

Saturday, March 27, 2010

आप बताइए


अभी अभी पोस्ट डाल कर गए ही थे कुछ रोचक मिला सोचा आपको भी दिखा दूं ...मैं ज्यादा नहीं लिखूंगी पर आप बताइए ये चित्र देख कर सबसे पहले आपके मन में क्या आता है

दुआ दूं या बददुआ


आज तुम्हारी बेवफाई से वाकिफ हुए है




क्या समझोगे कितने दर्द से गुज़रे हैं



जब थे मेरे साथ और ख़याल था गैर का



ऐसे लम्हे भी ज़िन्दगी से गुज़रे हैं







तुम थे खामोश हम समझे खफा हो



गुमसुम थे तो समझे कुछ जुदा हो



कोशिश की खुशिया भर दूं दामन में



अनजान थे तुम किसी और के भी खुदा हो







दर्द इतना है की रो भी नहीं पा रहे है



होश गुम है न जाने कहाँ जा रहे है



तुम्हारे सिवा दुनिया भी नहीं देखी



इस भरी दुनिया में तनहा नज़र आ रहे है





दुआ दूं या बद्दुआ तुम ही बताओ

कोई हल हो तुम ही सुझाओं

निभाई है मुझसे बे-वफाई जिस वफ़ा से

तुम्हे ख़त्म कर दूँ या खुद को मिटाऊं

Friday, March 26, 2010

नैनो की आत्महत्या!


ये तो होना ही था भैया आखिर कब तक कोई कार अत्याचार सहन करे, बड़े लाड से लाये थे नैनो को तारीफ़ में भी पुल क्या पूरे पूरे flyover बना दिये..छोटी सी प्यारी सी सजी धजी नैनो लोगों की आँखों का सपना बन गई.. कार मेले में जब मुह दिखाई हुई तो भीड़ के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए ..

हर कोई यही गीत गा रहा था "मेरे सपनो की नैनो कब आएगी तू "...

इंतज़ार ख़त्म हुआ और किस्मत वालो को मौक़ा मिला अपने घर लाने का..अड़ोसी पडोसी अपनी लाखों की कार को छोड़ कर नैनो पर निगाह लगाने लगे ..करोड़पतिओं के लाडलों को भी नैनो ललचाने लगी...

असली मोड़ तो तब आया जब ये आम होकर भी ख़ास कार सडको पर उतरी बड़ी बड़ी गाड़ियों ने डराना शुरू किया...अल्टो से लेकर औडी सब हिराकत की नज़र से देखने लगी,किसी पार्किंग lot में तनहा खड़ी देसी नैनो का किसी कार ने भी स्वागत नहीं किया विदेसी कारों ने तो नज़र भी नहीं डाली और देसी तो वैसे ही कुढ़ी बैठी थी.

अकेलेपन,तानो से आहत आखिर नैनो ने खुद को समाप्त करने का निर्णय लिया..... और जल गई नैनो



दो मिनट का मौन तो बनता ही है

Thursday, March 25, 2010

सीटी बज गई

"अरे लल्ला कहे किताबन में मूढ़ घुसाए बैठा है तानी सिट्टी बजाये की परकत्तिस तो कर लेव"


अरे राम रे पूरे गाम का बवाल मचा, जवान और बुड्ढे सभी सिट्टी बजाये में लगे है , जब से पहिलवान जी कहिन है संसद में सिट्टी बजिहें तभी से सब होंठ गोल किये घूम रहे है, जो पाहिले से संसद में है और सिट्टी नहीं बजा पा रहे है वो अपने नौनिहालों के मूह से सिट्टी छीन कर भाग रहे है, ट्रेफिक वाले जवान,मैच रेफरी तो पहले ही खुश है हमको तो सिट्टी बजाना खूब आता है,

अखाड़ों में कसरत की बजाये सिट्टी बज रही है, ये नारी मुक्ति वाले बेचारे सोफ्ट नेताजी की बातों का गल अर्थ निकाल लिए है और हर चैनल पर ऐसी तैसी करने में लगे है किसी ने भावार्थ तो समझा ही नहीं, अब हम ठहरे नेताजी के पडोसी जिले के तो इत्ता तो फ़र्ज़ हमारा भी बनता है



अब तैतीस प्रतिशत आरक्षण के बाद... चारो ओर महिलाओं को देख कर मन में जलन की चिंगारी तो पैदा हुइहे ही , चिंगारी से आग ,आग से भाप ,और भैया बहिनों अब ये मन की भाप निकालिए कैसे "सिट्टी " से. और सब शांत ..आप लोग भी सिट्टी बजाइए और देखिये कैसे आपका गुस्सा शांत होता है



बेकार ही आप लोग राशन पानी लेकर चढ़ गए...

Wednesday, March 24, 2010

त्राहिमाम !!!!

त्राहिमाम !!!!


आजकल ब्लॉग जगत पर धर्म-चर्चा पर महासंग्राम मचा है ,लोग लैपटॉप मोबाइल लेकर जुट गए है ,ऐसी-तैसी करने में और करवाने में, अपन को तो ये एकदम हिट टोपिक लगता है बीड़ू, वो क्या कहते है हिंग लगे ना फिटकरी और रंग चोखा..गूगल उठाओ और ऐसी हज़ारों मेल में से कोई सी भी उठा लो जो विवादस्पद हो ...जो विवादों में आ गया उसके तो १०० दिन क्या सौ हफ्ते पूरे...

अगर देखा जाए तो अश्लील चर्चा के बाद लीगों धर्म और राजनीति की चर्चा में मज़ा आता है ... भैया ऊपर वाला तो आने से रहा इनकी कही बातों का खंडन और समर्थन करने तो ज़मीन वाले लगे है अपनी कहानिया गढ़ने में , समर्थन और विरोध का आन्दोलन चलाने में...

ज्ञान तो इतना बाँट रहे है मानो जगद्गुरु,पैगम्बर साहिब और सभी पूजनीय विद्वान् इनको व्यक्तिगत रूप से लिखवा कर गए है

मान गए

अच्छी कहानिया और चर्चा तो आजकल गायब है शुक्र है चिट्ठाचर्चा जैसे अच्छे ब्लॉग कुछ पढने के लिए दे देते है वरना तो बस वही.

कुछ अच्छे ब्लॉगरगण इन चक्करों में पड़ कर बढिया-बढिया लिखना भूल गए है वापस आजाओ..

अब लगता है दिमाग का ज्वालामुखी फट ही जाएगा इससे पहले मेरे छोटे से दिमाग (मेरा मानना है की है ) की बरात निकल जाए या तो चिट्ठाजगत इन महानुभावों को अलग से पोर्टल दे दे या हमें अधिकार की ये सब हमको दिखे ही ना

"रंग स्याह हांथो में उठाये घूम रहे है

किसको कितना काला करे

इसकी लगी है होड़

जहाँ इनकी हद ख़त्म हो

कोई बताये मुझे

कितनी दूर है वो मोड़ "

Tuesday, March 23, 2010

माफ़ कर दे कृति

कृति अपने हाँथ गौर से देख रही थी आँखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे ,कोई तो बता दे कौन सी है किस्मत की रेखा ...उसने तो नहीं खिची तो फिर काकी क्यों कोसती है उसको, कृति के माँ पिताजी एक दुर्घटना में नहीं रहे थे जब वो सिर्फ तीन साल की थी ,इश्वर का आशीर्वाद था या कोई अभिशाप इतनी भयानक दुर्घटना के बाद भी वह बच गई. उसके काका अपने साथ ले आये,शुरू में तो काकी का व्यवहार अच्छा था ममता भी मिली पर समय और काकी के परिवार के बढने के साथ काकी ममता बाटने में कृपण हो गई...


उसे किताबे समझ में कम आती थी आज परीक्षा का परिणाम आने के बाद घर में कोहराम मचा था , पांचवी कक्षा में फेल हुई थी, काकी की आवाज़ कानो में पिघले शीशे की तरह उतर रही थी " पता नहीं हाँथ में कौन सी रेखा लेकर जन्मी है ,सूरत शकल तो ऊपर वाला देता है इसके दिमाग में भी गोबर भरा है ,सब तो यही कहेंगे बिना माँ बाप की लड़की को ठीक से नहीं रखा ...साल की फीस गई ,कापी पेन्सिल का खर्चा अलग ...अगर पढ़ लिख जाती तो कही ब्याह कर छुटी पाए बेपढ़ी को कौन ब्याहेगा आज के ज़माने में "

काका कम बोलते थे पर उनकी आँखों में रोष साफ़ दिख रहा था..

कृति कोने में खड़ी अपने पैर के अंगूठे से ज़मीन पर पता नहीं कौन सी आड़ी तिरछी रेखाए खीच रही थी,कितना तो पढ़ा था पर लिख नहीं पाई परीक्षा में हाय भगवान् क्या करूँ .

शाम को दूध पीने के लिए काकी कृति को ढूँढने लगी याद आया लड़की ने तो स्कूल से आकर कुछ खाया भी नहीं है..आवाज़ लगे पर कृति का जवाब नहीं आया सारे कमरे देख डाले कृति कही नहीं थी

किसी अनिष्ट की आशंका से काकी का कलेजा मुह को आ गया" कुछ कर करा ना लिया हो ,मुझे भी इतना नहीं डांटना चाहिए था बच्चो के आत्महत्या के समाचार आँखों के आगे घूमने लगे, पढ़ाई में कमजोर है पर बेचारी गौ की तरह शांत है,बाकी सब तो जल्दी सीख लेती है,एक मैं भी कहाँ ध्यान देती हूँ उसकी पढ़ाई पे , एक tution लगा दूं तो सब ठीक हो जाए ...ढूंढते हुए ना जाने कितने देवी देवता मान डाले ...कृत को खोने के एहसास से काकी की ममता पर पड़ी धूल मानो हट गई तीन साल की मासूम कृति की छवि आँखों के आगे तैर गई, स्वर्गवासी जेठानी मनो पूछ रही हो मेरी छोटी बिटिया का ध्यान नहीं रख पाई...

सारा घर देख लिया था पर कही नहीं थी कृति अचानक ध्यान आया छत तो छुट गई...दौड़ते हाफ्ते दुमंजिल चढ़ गई..कोने में कृति ज़मीन पर पड़ी थी डरते हुए उसको गोद में उठाया,गलों पर आंसुओं की लकीरे सूख गई थी रोते रोते भूखी प्यासी सो गई थी ...

काकी ने ने गले से लगाया और आंसू फूट पड़े कृति ने आँखे खोली अपनी हथेली काकी की और बढ़ा दी पेन से गहरी लकीर खिची हुई थी कृति बोली उसके आँखों में अजीब सी चमक थी

"काकी मैंने किस्मत की रेखा बना ली है ठीक है ना अब मैं कभी फेल नहीं होउंगी "

काकी ने उसे जोर से गले लगाकर बोला "बेटा तू नहीं तेरी काकी फेल हुई है , माफ़ कर दे "

Monday, March 22, 2010

वो जिद पे अड़ा है

वो जिद पे अड़ा है


वो सबसे बड़ा है

मुद्दत से यही तो

वो दोहरा रहा है



दुनिया का बोझ लिए

अपने दिमाग पर

अपने ही घर को

भूला जा रहा है



बात करता है हरदम

वो मजहब खुदा की

इंसानियत तो उसको

याद ही नहीं है



चुन चुन कर निशाना

वो साधे हुए है

किसी की सुनने को

तैयार ही नहीं है



पैगम्बरों ने हमेशा

जोड़ा है दिलो को

बेबसों को हर दम

गले से लगाया



मोहब्बत तो हर

दीन का फलसफा है

ये नफरत के किस्से

कहाँ से सीख़ आया



वो जिद पे अड़ा है

बिन पानी सब सून

अभी अभी पता चला , २२ मार्च अंतरास्ट्रीय जल दिवस है , तो हमने सोचा जल से जुड़े कुछ मुहावरे याद किये जाए


१. जल में रहकर मगर से बैर

२.आँखों का पानी मरना

३. चुल्लू भर पानी में डूब मरना

४. पानी पी पी कर कोसना

५. पानी उतर जाना

बाकी कुछ आपलोग योगदान कीजिये , रहीम जी तो कह गए

"रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून " पर बताया नहीं कौन सा पानी रखे RO वाला ,बिसलरी वाला या मुनिस्पल्टी के नलों वाला, पहले कहीं कहीं प्याऊ भी दिख जाते थे पर अब तो बीती बात है ,पानी कीमती हो गया है इसका नदाज़ आप इस बात से लगा सकते है ...जो जल पहले लोग बिना किसी स्वार्थ के पिला देते थे आज उसी के १० से १५ रुपये तक वसूल हो रहे है ,

अभी कुछ दिन पहले माल में एक बच्चे को बोलते सूना "मम्मी मुझे कोल्ड ड्रिंक की प्यास लगी है " हम तो हक्के बक्के मियाँ पानी की प्यास तो समझे पर ये कौन सी प्यास है ..

अभी तो ये पानी क्या क्या रंग दिखाएगा

पानी ही नहीं होगा जो बंधू

तू कैसे धोएगा और कैसे नहायेगा



सार तो यही है पानी सहेजो व्यर्थ ना करो चाहे नलों से आ रहा हो ,आँखों से बह रहा हो .....

Sunday, March 21, 2010

इनकार करती हूँ

चलो तुमको यकीं तो हुआ
कि मैं इसमें तनहा मुजरिम नहीं थी
कुछ हालत थे कुछ मजबूरी थी
बेवफाई मेरी फितरत में शामिल नहीं थी

चाहती तो पहले भी बता सकती थी तुम्हे
अपनी मजबूरी कि भी लम्बी कहानी थी
पर तब शायद तुमको यकीं नहीं आता
मेरी बेगुनाही ज़माने पर ज़ाहिर नहीं थी

पर अब तुमको यकीन दिलाने के बाद
मेरा यकीं तुमपर डगमगा गया है
ज़रा सी हवा से ढहा जाते है रिश्तों के महल
मुहब्बत से भी कुछ हासिल नहीं है

देने के बाद अग्निपरीक्षा
इनकार करती हूँ तुम्हारे साथ से
वापस नहीं आता कभी दरिया का पानी
जो निकल गया हाँथ से

Saturday, March 20, 2010

जितनी बार टूटी मैं

"मैं तो खुश थी अपनी गुडिया के साथ

कहाँ माँगा था सारा आकाश

गुड्डे के साथ डोली चढ़ बैठी

नन्ही सी गुडिया गोद में आ बैठी



मैं तो फिर भी खुश थी

अपने नन्हे सोते जागते खिलौनों के साथ

मैंने तो नहीं माँगा था

कभी कोई पारिजात



तुमने हाँथ  बढ़ाये तो

मुझे पाँव निकलने पड़े

अपने नन्हे मुन्हे पूरा दिन

दूसरों के पालने में डालने पड़े



बाहर  संभाला घर भी देखा

चकरी की तरह घूमी भी

किसी को कोई कमी रहे ना

अपनी सेहत पीछे छूटी भी


पर तुम्हारा छिद्रान्वेषण

छलनी करता है मन को

इतने कांच कभी  न चटके

जितनी बार टूटी मैं

मुर्दे परेशान हैं !


मरघट जी गए है


रौनक है कब्रिस्तान में

गलियाँ सूनी है

जलसा है शमसान में



रात में रौनक है

या रौनक की रात है

चहल पहल है सन्नाटे में

कोई तो बात है



चिता में जलकर

अब चिंता में घिरे है

सारे,रूह जिन्न प्रेत

एक साथ मिले हैं



इतनी बढ़ गई तादाद

कम पड़ती है जगह

आने वाले कहाँ जायेंगे

मुर्दे परेशान हैं !






Wednesday, March 17, 2010

बादल और अश्क

बादल समेट लिए हमने की मुश्किल में काम आयें


सूख गई है आँखें इतने गम के मौसम छाये

रोने को बस बादलों का ही सहारा है

जब बरसे तो समझो ये अश्क हमारा है


आप खुशनसीब है की आपकी आँखों में अभी नमी है

हमको तो इस नमी की भी कमी है

हसे या रोये हर वक्त बस तन्हाई थी

आईना भी हैरान है आखिरी बार कब तू मुस्काई थी



 
 
 
 
 
 

Tuesday, March 16, 2010

नव स्पंदन स्वीकार करो

इस नव वर्ष के अभिनन्दन को
मैं बोलो क्या श्रिंगार करूँ
पुष्प सजाऊं धुप जलाऊं
चन्दन अंगीकार करूँ


नूतन वर्ष है नूतन योवन
नूतन भाव सजे हैं स्वप्न
स्वप्नों में तुम आन बसे प्रिय
नव स्पंदन स्वीकार करो

नव क्षण का उत्साह अमित है
सब कुछ शुभ शुभ लगता है
इस पावन अवसर पर तुमको
नेह अपना उपहार करूँ

नव वर्ष  मंगलमय हो

Sunday, March 14, 2010

लायक बच्चे- पर हो कैसे ?

लायक बच्चे पर हो कैसे

चचा कल्वे जरा बतलाईयेगा

बच्चे जनना हमे पता है

लायक कैसे बने समझाइएगा



जब से सुना है दुविधा में है

अज्ञानी है ज्ञान नहीं है

आपके शब्दकोष में भी

शिक्षा को भी स्थान नहीं है



एसा कोई मंत्र बता दे

हर बच्चा हम योग्य जने

सब बने डॉक्टर इंजिनियर

न कोई निठल्ला बेकार रहे



ये आविष्कार गर आप करे चचा

तो कमाल हो जाएगा

नोबेल,आस्कर योग्य सुतों को

आपको भारत रत्न मिल जाएगा

Friday, March 12, 2010

आप नहीं समझेंगे


आप नहीं समझेंगे ,


आपको कभी किसी ने घर से निकलने से पहले रोका नहीं ,

आपके कुरते के गले की गहराई पर किसी ने टोका नहीं

जब आप सड़क पर निकले किसी ने सीटी बजाई नहीं

बिना बात आपके चरित्र पर कभी ऊँगली उठाई नहीं

आप नहीं समझेंगे ......


आपको किसी ने बोझ की तरह देखा नहीं

कभी सरे राह तेज़ाब आप पर फेंका नहीं

किसी ने आपको जड़ से उखाड़ा नहीं

बदला न आगन चौखट चौबारा कभी

आप नहीं समझेंगे ........


देह ने क्या कभी इतने परिवर्तन सहे

एक नव जीवन कोख में नौ माह तक लिए

खोया अपना रस-रूप-यौवन सभी

अपने मन से और तन से कभी विवश हुए

आप नहीं समझेंगे ........


इतना है काफी आप साथ चलते है

आपके साथ हम अपने पल बाँट सकते है

पर नारी जीवन को नारी ही जाने

ये नारी विमर्श है सब मीमांसा के बहाने



अंत में आप नहीं समझेंगे

Thursday, March 11, 2010

इतना सा फलसफा.................

इतना सा फलसफा है इतनी सी ज़िन्दगी है'



,करना है काम बहुत पर वक़्त कि कमी है ,


हमने बहुत सोचा क्या क्या न कर गए हम ,


अपनी तरक्की के खातिर हद से गुज़र गए हम


,उचाईयों पर जाकर पीछे जो हमने देखा ,


रह गए थे तनहा परछाई भी नहीं थी ......


एक वो भी दौर था जब भीड़ से घिरे थे,


न जाने कितने लम्हे बाहों में आ गिरे थे,


हमको कहाँ थी फुर्सत उनको गले लगाते


आज सूनी हैं बाहें और आँख में नमी है


इतना सा फलसफा है .......................

Wednesday, March 10, 2010

ज़िन्दगी रुकी क्यों है !

कल खुदा से मेरी मुलाक़ात हुई

पता नहीं उसकी सूरत मेरे सनम सी क्यों थी
चेहरा तो रोशन चिराग सा था
आँखों के कोनों में नमी सी क्यों थी

वो करता रहा मुझसे बात
और मेरे दर्द भी बांटता रहा
जो भी कहा सुना उसने गौर से
मेरे दिल में भी झाकता रहा

गर उससे  नहीं है कोई भी रिश्ता
ज़िन्दगी उस लम्हात पर रुकी क्यों है ......

Monday, March 8, 2010

पहचानो मुझे ....


मैं देवी नहीं हूँ मैं माँ हूँ तुम्हारी


मैं बेटी हूँ,पत्नी और हूँ सखी भी

हँसती हूँ जब मुस्कुराते हो तुम

तुम्हारी एक शिकन से होती हूँ दुखी भी



जब थी परीक्षा तो जागी थी मैं भी

दही चीनी लेकर पीछे भागी थी मैं ही

जब चमका तेरे भाग्य का सितारा

मुट्ठी भर मिर्चें नज़र भी उतारी



सप्तपदी के वचन को निभाया हमेशा

हर रिश्ते को तेरी नज़र से ही देखा

तेरी सांस से जोड़ ली अपनी साँसे

अग्निपरीक्षा देने को वेदी चढ़ी मैं



तेरी गोद में नन्ही कली सी महकी

मुझे पा के तेरी बगिया थी महकी

तुम्हारी मर्यादा को कन्धों पे ढोया

हुई विदा पर ये रिश्ता न खोया



कई रूप मेरे सभी तो निभाये

संस्कार,शील, मर्यादा सभी सर झुकाए

करती गई जो जब भी था चाहा

तेरे साथ से कभी ज्यादा ना माँगा



तो फिर आज क्यों भृकुटी तनी है तुम्हारी

पहचानो मुझे संग खड़ी हूँ तुम्हारे .......


Saturday, March 6, 2010

बहुत दिन हुए.......

बहुत दिन हुए.......

कच्ची अमियों की फांकों पे बुरके नमक

पतंग को हवा में उडाये हुए

झूले पे पींगे बढाए हुए

हाँ बहुत दिन हुए ठहाका लगाये हुए



आखिरी बार कब .....

लिखा था ख़त

निहारा था चाँद को

तनहा बैठे थे छत पर

हाँ बहुत दिन हुए ग़ज़ल गुनगुनाये हुए



पता नहीं क्यों ......

बेर उतने मीठे नहीं

कनेर भी दीखते नहीं

गलिया सूनी सी रहती है

हाँ बहुत दिन हुए मोहल्ले में मजमा जमाये हुए