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Thursday, August 31, 2017

इन आँखों में बारिश कौन भरता है ..






बेतरतीब मैं  
(३१.८.१७ )

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कुछ पंक्तियाँ उधार है मौसम की मुझपर ,  इस बरस पहले तो बरखा बरसी नहीं ,अब बरसी है तो  बरस रही ,शायद ये पहली बारिशों का मौसम है ,जब मैंने भीगने की इच्छा नहीं की ,पिछली शाम गाडी तक जाना असंभव सा था , बादल झूमकर नहीं टूटकर बरस रहे थे, मैं हैरान सी गाडी तक जाने का उपाय सोच रही थी ,
भीतर किसी ने बोला ,क्या हुआ पगली , बारिशों से घबराने वाली ये लड़की कौन है , आसमान में घटा देखकर दीवानी होने वाली बावरी कहाँ चली गई ,बारिशों पर कम से कम १०० कविताएं लिखने वाली ,इस लड़की ने इस बरस दो पंक्तियाँ भी नहीं लिखी ,आखिर हुआ क्या है ?

सच आखिर हुआ क्या है , कितनी तेज दौड़ रही हूँ कि एक लम्हा ठहर कर बारिशों को निहारने की भी फुर्सत नहीं है.

एक माँ बनने के बाद का ठहराव है क्या , जो बोलता है अगर बीमार हो गई तो बच्ची को कौन संभालेगा , उफ़ ऐसा भी क्या , 

अब शायद एक दिन थोड़ा ठहरना है ,तनहा रहना है ,अपने साथ समय बिताना है , भीतर दबी नन्ही लड़की को वापस लाना है ,ताकि बारिश ,रोमांस और रोमांच भीतर बचे रहे
 
कुछ पुरानी पंक्तियाँ खुद को याद दिलाने के लिए , बारिशें ईंधन है तुम्हारे लिए लड़की , ऑक्सीजन है तुम्हारे फेफड़ों के लिए ,उम्र के किसी भी मोड़ या पड़ाव पर ,बारिशों से पुनर्जीवित  हो उठना 


बारिशों में अक्सर उबासियाँ आती है 
चादर लपेटकर सोने का जी करता है 
समन्दर-भाप से बनते बादल सुना है 
इन आँखों में बारिश कौन भरता है ....

#हिंदीब्लॉगिंग 

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Tuesday, July 4, 2017

प्रेम करती हूँ तुमसे

 
यमुना  किनारे उस रात
मेरे हाँथ की लकीरों में 
एक स्वप्न दबाया था ना  
उस क्षण की मधुस्मृतियाँ 
तन को गुदगुदाती है 
उस मनभावन रुत में 
धडकनों का मृदंग

बज उठता  है 
मयूर पंख फैलाए

नृत्य करता है 
सलोना मेघ तकता है

यह मोहक  उत्सव 
इस स्वप्न के 

आवेश में डूबकर 
आँखे मुखर हो उठती हैं  
अधखुले मादक अधरों से 
मौन  प्रीत बरसती है 
जहां गूँज उठता है 

बस उसी पल 
प्रेम करती हूँ तुमसे 

...बस तुमसे 

#हिंदी_ब्लॉगिंग 

Saturday, July 1, 2017

बेटी बचाओ




स्वतंत्र अणु  
मुक्त जग में  
रहा  विचरता 
नभ से थल तक 
अपरिमित शक्ति
 भरी थी 
ओज भरा था 
अंत:स्थल तक 
नियत समय में 
स्रष्टि ने फिर 
उसके जीवन को 
अर्थ दिया 
मानव रचना हेतु उसको 
भावी माँ का 
गर्भ दिया 
उत्साहित था 
पा शरीर को 
देखूंगा अब
 दुनिया सारी 
था प्रतीक्षारत व्याकुल 
कब गूंजूंगा 
बन किलकारी 
अनायास जो 
हुआ आक्रमण 
कुछ भी ना
 समझ पाया 
बदला रक्त 
औ मांस पिंड में 
कैसी ये 
स्रष्टि की माया 
प्रश्नों का बोझ
 था मन में 
पुन: देह से 
अणु हुआ 
मादा होने के कारण वह 
नवजीवन ना 
देख सका

#हिंदी_ब्लॉगिंग 

Wednesday, November 30, 2016

जो भी है खूबसूरत है

जो भी है खूबसूरत है

पीली पत्तियों ने हरी कोंपलों को स्थान दिया है ,इस तरह पुराने पड़े पेड़ नए लग रहे हैं ,सांस ले रहे है ,हवा कुछ और ठंडी हो चली है पर अभी मफलर बाँधने  नहीं हुई है ,तुम्हारा हाँथ थामने में अब मेरी हथेलियां पसीजती नहीं , याद है ना पहली बार जब तुमने हाँथ थामा था ,इक सनसनाहट सी पूरे शरीर में दौड़ गई थी ,गाल दहक उठे थे , आरक्त ये शब्द कितने उपन्यासों में पढ़ा था ,पर अर्थ उस पल समझ में आया था। 

तुम मेरा पहला प्यार नहीं थे, पर तुमसे मिलने के बाद ये जाना प्यार बस प्यार होता है ,पहला प्यार कच्चे आम सा पर दुबारा होने वाला प्यार मादक ,बेहद मादक ,पूर्वाग्रहों से परे ,बंधनो से भरा हुआ नहीं। 

तुमसे जब मिली तो मैं मुक्त नहीं थी , सही गलत ,भला बुरा , पाप पुण्य अपने भीतर कई पाले खींच रखे थे, जिनकी लक्ष्मण रेखा को पार करना मेरे बस का नहीं था ,हर वक़्त मैं एक कटघरे में खड़ी अपने से सवाल करती खुद को दोषी ठहराती और सज़ा देती 

मेरा चेहरा ,मेरी आँखों के नीचे पड़े गहरे गड्ढे ,पीलापन कुल मिलाकर किसी सज़ायाफ्ता की तस्वीर बना रहे थे. क्यों उन गठरियों को ढो रही थी ,शायद परवरिश ,समाज और उसके मापदंड ,जो एक मध्यमवर्गीय इंसान को साहसी नहीं होने देता, मैं कायर बन रही थी, अपने आप से भागती हुई 

उम्र के एक दौर में दौड़ते भागते किसी माइलस्टोन पर थम कर सोचने लगी ,मैं कौन हूँ ,मैं क्या कर रही हूँ और एक वर्जित सवाल मन में बिजली की तरह कौंध गया , "आखिर मुझे चाहिए क्या ". 

बस इसी समय तुम आये होठों पर हलकी सी मुस्कान लिए ,बड़ी से बड़ी समस्या को मुस्कुरा कर हल करने का ज़ज़्बा लिए ,सब वही था तुमने मेरा नजरिया बदला , और वो बदलते ही मैं बदल गई एक एक करके बंधन ढीले पड़ने लगे ,गठरिया हलकी होने लगी , झुकी कमर कुछ सीधी हुई। 

अभी मैं नहीं जानती मैं तुमसे आकर्षित हूँ या दोस्ती में हूँ या प्यार में पर जो भी है खूबसूरत है 


Thursday, October 20, 2016

कहानियों की तलाश



यूँही एक लिंक से दुसरे लिंक घूमते हुए कुछ पुरानी कहानियों में पहुँच गई , शिवानी मेरे बचपन की प्रिय लेखिका, एक ही कहानी उम्र के अलग अलग दौर में अलग अलग असर पैदा करती है, शायद बड़े होते होते हमारी मानसिक परिपक्वता भी अलग हो जाती है। 
 एक नशा सा था शिवानी को पढ़ने में बेहद सहज ,सपनो सा प्रेम पर उन सबमें गड़ा हुआ दुःख या कष्ट का एक ऐसा दंश जो या तो आँखों की कोर भिगो दे या बहुत देर तक सहज ना होने दे। 

शिवानी की नायिकाएं शिवानी के आँगन से उत्तराँचल से निकली ,परियों सी सुन्दर ,भोलेपन से भरी पर उनकी सुंदरता के साथ शापित भाग्य ,दुखांत ,लाइलाज बीमारी ,धोखा तेजी से बदलते घटनाक्रम जो आपके भीतर सिहरन भर दे , मुंह से निकल जाए "भगवान्  दुश्मन को भी ये ना दिखाए "

कविताओ के समुद्र में अच्छी कहानियों के प्यासे हम , बस तरस के रह जाते हैं , आपके पास कुछ अच्छी कहानियों के लिंक हो तो शेयर करें 

Wednesday, August 31, 2016

छुटकी रानी





छुटकी रानी मस्त कलंदर 
बिल्ली रखती पेट के अंदर 
गटगट पीती ठंडा पानी  
दूध देख ले उठे बवंडर 
एकबार जो गई पार्क में 
आती ना है घर के अंदर 
बच्चों से तो लडे लड़ाई 
साथी उसके डॉगी बन्दर

बात बात पे गाल फुलाये 
ज्यों दो लड़डू हो अंदर 
जो रूठूँ तो गले लगाए 
मेरी मम्मा कित्ती सुन्दर